मलिक असगर हाशमी
वैज्ञानिक एवं खुले विचारों वाली शख्यितों को लेकर भ्रम की एक लंबी दीवार खड़ी कर दी गई है. नतीजतन, आम समझ बन गई है कि ऐसे लोग पूजा, इबादत से परे हैं. इसपर विश्वास नहीं करते. व्यवहारिक होते हैं. इनका स्वभाव अधर्मी और नास्तिक होता है.
हालाकि, मिसाइल मैन से चर्चित डाॅक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के जीवन का गहनता से अध्ययन किया जाए तो वैज्ञानिकों को लेकर खड़ी की गई भ्रम की दीवार भुरभुराकर गिर जाएगी.
उनके जीवन काल में इन पंक्तियों के लेखक को तीन कार्यक्रमों में उनके करीब रहने का मौका मिला था. इस दौरान उनमें आम मुसलमानों जैसा रोजा-नमाज के प्रति ललक देखा. एक बार राष्ट्रपति रहते कलाम साहब हरियाणा के गुरुग्राम के मानेसर स्थित नेशनल सेक्युरिटी गार्ड को कलर सौंपने आए थे.
इस कार्यक्रम में इन पंक्तियों का लेखक भी मौजूद था. उस दिन रमजान का पहला रोजा था. वह रोजा से थे. उनकीे डाइस पर रखा पानी से भरा गिलास जब उन्होंने पूरे कार्यक्रम में नहीं छूआ तो बड़ी जिज्ञासा हुई. उनके अंगरक्षक से पूछने पर बताया गया कि कलाम साहब रोजा रखे हुए हैं. रमजान के दिनों में वह अपने खर्चे से राष्ट्रपति भवन में इफ्तार की दावत दिया करते थे.
उनपर या उनके द्वारा लिखी गई किताबों का अध्ययन करने पर अचंभित रह जाएंगे. जैसे वे स्वदेशी मिसाइल के निर्माण में दक्ष थे. इस्लाम,हदीस को लेकर भी वह बेहद गंभीर थे. इसकीं उन्हें गहरी समझ थी और इसका वो हमेशा जिक्र भी किया करते थे.
एपीजे अब्दुल कलाम ने अरुण तिवारी के साथ अक्षरधाम के प्रमुख स्वामी पर एक पुस्तक लिखी है-ट्रांसेंडेंस. इस पुस्तक में उन्होंने इस्लाम और अन्य धर्मों के बारे में अपने तर्क दमदार तरीके से रखने के लिए कुरान शरीफ के कई आयतों का जिक्र किया है.
कलाम साहब जब राष्ट्रपति थे, उनकी मीडिया का काम एसएम खान देखा करते थे. उन्होंने भी कलाम साहब पर ‘द पीपुल्स प्रेजिडेंट’ नाम से एक पुस्तक लिखी है. इस पुस्तक में खान साहब
की कलाम के साथ कई तस्वीरें हैं. उनमें प्रमुख तौर से दिल्ली की फतेहपुरी मस्जिद में जुमा की नमाज पढ़कर आते एक तस्वीर है.
इसके अलावा अन्य तस्वीरों में कलाम साहब अहमदाबाद में सूफी संत शेख अहमद की दरगाह पर चादर चढ़ाते और दाउद बोहरा मुसलमानों के अध्ययामिक गुरू सैयदना बुरहानुद्दीन से बातचीत करते नजर आ रहे है.
कलाम साहब पायलट बनने के लिए इंटरव्यू देने जब पहली बार चेन्नई से दिल्ली आए थे तो उस दौरान के कई किस्सों का जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक-विंग्स ऑफ फयर‘ में किया है. इस पुस्तक में वह किसी ऐतिहासिक इमारत को दिल्ली की पहचान बताने की जगह एक जगह दिल्ली को ‘हजरत निजामुद्दीन का शहर’ कहकर संबोधित करते हैं.
आचार्य महाप्रज्ञा एवं एपीजे अब्दुल कलाम ने मिलकर एक पुस्तक लिखी है-‘द फैमली एंड द नेशन’. इस पुस्तक में पेज नंबर 122 पर नमाज और उसकी रूहानियत का खास जिक्र है. इसी तरह कलाम ने अपनी एक अन्य पुस्तक ‘यू आर बॉर्न टू ब्लाॅसम’ के पहले चैप्टर- द वूइंग ऑफ ग्रेन एंड क्ले’ में इस्लाम, तौहीद और कुरान का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया है.
कलाम के सचिव रहे पीएम नायर ने भी उनपर ‘ द कलाम इफेक्ट’ नाम से पुस्तक लिखी है, जिसमें उन्हें धर्मभीरू बताया है.
कलाम साहब के जीवन का अध्ययन करने पर समझा जा सकता है कि उन्होंने मजहब को बहुत हद तक व्यक्तिगत रखा. वह मुसलमान हैं और आम मुसलमानों की तरह रोजा, नमाज करते हैं, कभी इसे प्रदर्शित करने की कोशिश नहीं की. जबकि वह अपने पैतृक शहर रामेश्वरम के मदरसे के पढ़े हुए थे.
उनके पिता वहां की मस्जिद के इमाम थे. कलाम ने कुरान का पूरा अध्ययन किया था. उन्हें खुदा पर कितना यकीन था इसकी बानगी उनकी पुस्तक‘विंग्स आफ फायर’ के पेज नंबर 49 पर मिलती है. वह लिखते हैं- आई हैव ऑलवेज बीन ए रिलिजीयस पर्सन विथ सेंस दैट आई मैनटेन ए वर्किंग पार्टनशिप विथ गाॅड.’
एक पुस्तक में वह लिखते हैं कि जब वो किसी गंभीर समस्या में उलझ जाते हैं तो फजर की नमाज में उसका हल उन्हें सूझ जाता था.
कलाम साहब को समझना वैसे तो किसी मामूली व्यक्ति के बूते की बात नही. फिर भी उनकी और उनपर लिखी गई 27 पुस्तकांे को पढ़ने के बाद इस नजीते पर पहुंचा हू कि उनके जीवन पर कुरआन, हदीस का गहरा प्रभाव था.
इसे एक उदाहरण से भी समझ सकते हैं. कलाम अपनी पुस्तक -टर्निंग प्वाइंट’ में एक घटना का जिक्र करते हुए लिखते हैं. उनके पिता, इलाके का सरपंच चुने जाने के बाद कोई अनजान व्यक्ति उनके घर आकर उनके हाथ में कुछ उपहार दे गया.
पिता उस समय घर पर मौजूद नहीं थे. वह जब लौटकर घर आए तो कलाम ने उपहार उन्हें सौंप दिया. इसपर वह बेहद गुस्सा हुए. उन्होंने एक हदीस का हवाला देते हुए ‘पोजीशन का दुरूपयोग’ न करने की सख्त नसीहत दी.
उस नसीहत का प्रभाव कलाम साहब की पूरी शख्यिसत पर दिखता है. राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने और उनके मृत्यु के बाद व्यक्तिगत संपत्ति के नाम पर केवल चंद हजार किताबें, कुछ जोड़े कपड़े मात्र ही बचे थे.
कलाम साहब आचार्य और सूफी-संतों के बेहद करीब थे. उनकी जीवनी पढ़ने पर दक्षिण भारत, गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, यूपी के कई संत, फकीर और पादरियों का जिक्र मिलता है. सूफी संत रूमी को उन्होंने खूब पढ़ा था. उनके पिता भी रामेश्वरम मंदिर के प्रमुख पुजारी और वहां के चर्च के पादरी के बेहद करीबी थे.कलाम साहब को भी दूसरे धर्मों का सम्मान करने की प्रेरणा कुरान और हदीस से ही मिली है.