हिना / कोलकाता
ऐसे समय में जब दुनिया के कई हिस्सों में समुदायों के बीच धार्मिक ध्रुवीकरण और संघर्ष अपने चरम पर है, भारत की धरती से एक युवा परिवर्तनकर्ता चुपचाप शांति, संवाद और सह-अस्तित्व का संदेश फैला रहा है.कोलकाता के ओवैज़ असलम, जिन्होंने इंडिया प्लूरलिज़्म फ़ाउंडेशन की स्थापना की, सिर्फ़ एक संगठन नहीं चला रहे, बल्कि अगली पीढ़ी के लिए आस्थाओं को जोड़ने वाले एक पुल का निर्माण कर रहे हैं.उनका यह मिशन एक ऐसे समय में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब राजनेता मंदिरों और मस्जिदों पर बहस करते हैं, लेकिन ओवैज़ असलम जैसे लोग चाय की दुकानों और कक्षाओं से दिलों को जोड़ने का काम कर रहे हैं.
एक अनूठी विरासत: आस्थाओं की बुनियाद
ओवैज़ असलम का यह सफ़र किसी संयोग का परिणाम नहीं, बल्कि उनकी अपनी विरासत का सार है.उनकी रगों में तीन महान आस्थाओं की विरासत बहती है—यहूदी, ईसाई और इस्लामी। वे बताते हैं, "मेरी दादी यहूदी थीं, दादा मुस्लिम और परदादा ईसाई.
मैंने अपने घर में ही सद्भावना और आपसी सम्मान का वातावरण देखा, जिसने मुझे इसे समाज में और आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया." यह एक ऐसा दुर्लभ संगम है, जिसने उन्हें यह सिखाया कि आस्थाएँ एक-दूसरे से लड़ने के लिए नहीं, बल्कि जुड़ने के लिए होती हैं.
इस अनमोल पारिवारिक शिक्षा ने ही उन्हें संवाद की शक्ति पर अटूट विश्वास दिलाया है.वह कहते हैं कि हर समस्या का हल सहानुभूति और शिक्षा में निहित है, और यही वह शक्ति है जो उन्हें शांति के लिए अथक प्रयास करने को प्रेरित करती है.उनकी यह प्रेरणा सिर्फ़ एक आदर्श नहीं, बल्कि उनके जमीनी कामों की बुनियाद है.
संवाद की शक्ति और जमीनी स्तर पर प्रयास
असलम का मानना है कि सच्चा संवाद औपचारिक बैठकों में नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में होता है.उनकी प्रमुख पहलों में से एक "अंतरधार्मिक अड्डा: मिर्ची, मसाला और पारस्परिक सम्मान" है, जो कोलकाता की सड़कों पर शुरू हुई है.
यह पहल दिखाती है कि शहरों के ठेले वालों और चाय की दुकानों पर असली अंतरधार्मिक संवाद होता है, जहाँ भोजन, आस्था और दोस्ती अक्सर किसी भी औपचारिक मंच से ज़्यादा सहजता से जुड़ जाते हैं.
अपनी "अपने धर्म को जानो" पहल के तहत, असलम छात्रों को विभिन्न धर्मों—हिंदू, इस्लाम, यहूदी, ईसाई और जैन—के अनुयायियों और विद्वानों से सीधे सीखने के लिए आमंत्रित करते हैं.इसका उद्देश्य रूढ़िवादिता को तोड़ना और धार्मिक विविधता के प्रति एक सच्ची समझ विकसित करना है.इन कार्यशालाओं के माध्यम से पूजा स्थलों के धार्मिक नेताओं को भी संवेदनशील बनाया जाता है.
गाजा और इज़राइल के बीच मौजूदा तनाव को देखते हुए, उन्होंने "सलाम शालोम" जैसी पहल की शुरुआत की, जो यहूदी-विरोधी और मुस्लिम-विरोधी भावनाओं का मुकाबला करने के लिए यहूदी-मुस्लिम अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ावा देती है.
वह कहते हैं, "धर्म के नाम पर इतना ध्रुवीकरण और रक्तपात देखना दुर्भाग्यपूर्ण है.जीवन बचाने का शाश्वत ज्ञान यहूदी और इस्लाम दोनों का मूल है." अपने इस दर्शन को स्पष्ट करने के लिए, उन्होंने पवित्र कुरान (5:32) और तलमुद (मासें 37A) के समान संदेशों का हवाला दिया, जो कहते हैं कि यदि किसी ने एक जीवन बचाया तो यह ऐसा होगा जैसे उसने पूरी मानवता का जीवन बचाया हो.
यहूदियों और मुसलमानों को इब्राहिम (PBUH) की संतान मानते हुए, वह दोनों समुदायों से करुणा और न्याय के मूल संदेश को आत्मसात करने का आग्रह करते हैं.पिछले साल, उन्होंने रचनात्मक संवाद स्थापित करने के लिए कोलकाता के एक आराधनालय का दौरा किया और शांति के प्रतीक के रूप में वृक्षारोपण भी किया.
महिलाओं और युवाओं का सशक्तिकरण: शांति का नया अध्याय
ओवैज़ असलम दृढ़ता से मानते हैं कि भारत में अंतरधार्मिक कार्य महिलाओं के नेतृत्व के बिना पूरा नहीं हो सकता, खासकर सामुदायिक स्तर पर। उनकी "शांति सलाम" पहल हिंदू और मुस्लिम युवाओं, विशेषकर महिलाओं और धार्मिक नेताओं को एक साथ लाती है ताकि वे सहिष्णुता से आगे बढ़ते हुए सक्रिय सह-अस्तित्व की ओर बढ़ सकें.
यह फ़ाउंडेशन महिलाओं को जमीनी स्तर पर अंतरधार्मिक प्रयासों का नेतृत्व करने के लिए सशक्त बनाता है और उन्हें संवाद व संघर्ष प्रबंधन में शामिल होने के लिए प्रशिक्षित करता है.युवाओं के प्रशिक्षण के लिए, इंडिया प्लूरलिज़्म फ़ाउंडेशन ब्रिटिश उप-उच्चायोग और रूबरू के साथ मिलकर एक वार्षिक अंतरधार्मिक युवा नेतृत्व कार्यक्रम का आयोजन करता है.
इस कार्यक्रम के तहत हर साल 100से ज़्यादा युवा परिवर्तनकर्ताओं को समुदाय-केंद्रित सामाजिक कार्य परियोजनाओं को डिज़ाइन करने का प्रशिक्षण दिया जाता है.यह पहल अंतरधार्मिक शिक्षा को संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के साथ जोड़ती है, जिससे शांति निर्माण का कार्य एक व्यापक वैश्विक एजेंडे का हिस्सा बन जाता है.
साझा आध्यात्मिकता का उत्सव: भजन, बिस्मिल्लाह और भाईचारा
ओवैज़ असलम की पहल सिर्फ़ संवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि साझा आध्यात्मिक अनुभवों का उत्सव भी मनाती है.उन्होंने कोलकाता के श्री सत्य साईं सेवा केंद्र में आयोजित एक कार्यक्रम का ज़िक्र किया, जहाँ हिंदू और मुस्लिम नेता एकता और सेवा के संदेश का जश्न मनाने के लिए एकत्रित हुए थे.
उन्होंने कहा, "यह सभा भारत की बहुलवादी भावना का प्रमाण थी—जहाँ सभी धर्म साझा मानवता के माध्यम से जुड़ते हैं." इस कार्यक्रम में भावपूर्ण भजन और कुरान पाठ दोनों शामिल थे, जिससे एक-दूसरे के प्रति सम्मान का एक सशक्त वातावरण बना.
ओवैज़ असलम ने अपनी विशेषज्ञता को और गहरा करने के लिए कई प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से प्रशिक्षण प्राप्त किया है, जिनमें कैम्ब्रिज का वुल्फ इंस्टीट्यूट, ऑक्सफोर्ड इंटरफेथ और यूनिवर्सिटी फॉर पीस शामिल हैं.उनकी यह शिक्षा उनके जमीनी कार्यों को एक मजबूत दार्शनिक और व्यावहारिक आधार प्रदान करती है.
ओवैज़ असलम का मिशन ऐसे स्थान बनाना जारी रखने का है जहाँ आस्था संघर्ष का कारण नहीं, बल्कि जुड़ाव की शक्ति बन सके.अपनी पहल, 'मेरे धर्म को जानो', 'शांति सलाम', 'सलाम शालोम' और 'इंटरफेथ अड्डा' के माध्यम से, वह यह साबित कर रहे हैं कि भारत की विविधता ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है, और इस शक्ति का उपयोग कर हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं जहाँ सभी धर्म सद्भाव और सम्मान के साथ सह-अस्तित्व में रह सकें.