आवाज़ द वॉयस के प्रधान संपादक आतिर खान ने 46 वर्षों तक भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में सेवा दे चुके और कश्मीर में सेवा के अनुभव वाले वरिष्ठ नौकरशाह वजाहत हबीबुल्लाह से विशेष बातचीत की.यह बातचीत कश्मीर की अज्ञात कब्रों पर हुए नवीनतम शोध से लेकर भारतीय समाज के बहुलवादी मूल्यों और मुस्लिम समुदाय के मुद्दों तक कई महत्वपूर्ण विषयों पर केंद्रित रही.यहां प्रस्तुत है इस बातचीत के मुख्य अंश. इनकी पूरी बातचीत सुनने और अंजान कब्रों के रहस्य के बारे में जानकारी केलिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें.
कश्मीर की अज्ञात कब्रें: सच्चाई की खोज
कश्मीर घाटी में अज्ञात और अचिह्नित कब्रों पर एक रिपोर्ट के लोकार्पण समारोह में शामिल हुए वजाहत हबीबुल्लाह ने इस शोध के महत्व पर विस्तार से बात की.उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट का सबसे बड़ा महत्व निश्चित रूप से कश्मीरियों के लिए है.यह एक ऐसी समस्या है जो कई वर्षों से बनी हुई है, जहाँ कुपवाड़ा जैसे क्षेत्रों में अज्ञात कब्रों को लेकर लगातार खबरें आती रही हैं.
उन्होंने इस्लामी परंपरा के तहत कब्रों पर समाधि-पत्थर न रखने की बात स्पष्ट करते हुए कहा कि, उस समय अचिह्नित कब्रों ने उन्हें उतना विचलित नहीं किया जितना इस बात ने किया कि इन कब्रों को भारत सरकार या सुरक्षा बलों की ज्यादतियों के सबूत के रूप में पेश किया जा रहा था.तत्कालीन सरकार इस मामले में जाँच की अनुमति देने को लेकर उदासीन थी, जिससे कश्मीरियों में अपने ही लोगों के गायब होने और मारे जाने को लेकर गंभीर संदेह पैदा हो गया था.
मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में अपने कार्यकाल को याद करते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने आरटीआई अधिनियम के तहत लोगों को अपने लापता रिश्तेदारों के बारे में सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित किया.उन्होंने कहा कि सेना ने पता लगाने की कोशिश की, लेकिन 20-30साल पुराने मामलों का पूरी तरह पता नहीं लग पाया.हालांकि, इस शोध ने सैकड़ों या हजारों लोगों के गायब होने के निष्कर्ष को पुष्ट नहीं किया, लेकिन कुछ सौ लोग ज़रूर थे, जो अपने आप में गर्व करने लायक बात नहीं है.उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राज्य में उग्रवाद के दौरान हुई ज्यादतियों की जाँच होनी चाहिए थी और दोषियों को सज़ा मिलनी चाहिए थी.
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रिपोर्ट का महत्व और मानवाधिकारों पर दृष्टिकोण
वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा कि यह रिपोर्ट युवाओं के एक समूह द्वारा तैयार की गई है, जिन्होंने "युवा बचाओ, भविष्य बचाओ" की नींव रखी है.उन्होंने इस जाँच की अनुमति देने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार की सराहना की, क्योंकि यह जाँच दशकों पहले ही हो जानी चाहिए थी.उन्होंने कहा कि उस समय सरकार जाँच से कतराती थी,क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे सुरक्षा बलों का मनोबल गिरेगा, जबकि यह एक मूर्खतापूर्ण तर्क है.उनका मानना है कि यदि सुरक्षा बल किसी अवैध काम के दोषी हैं, तो उन्हें कानून का सामना करना ही चाहिए.
एक और उदाहरण देते हुए उन्होंने कुनान पोशपोरा में कथित बलात्कार के मामले का जिक्र किया, जिसकी उन्होंने कमिश्नर स्तर पर जाँच की थी.उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट का सबसे बड़ा खुलासा यह है कि इन कब्रों में दफ़न किए गए कई लोग पाकिस्तानी हैं, जिनकी पहचान डीएनए और अन्य वैज्ञानिक तरीकों से की गई है.यह एक ऐसा तथ्य है जिसे पाकिस्तान सरकार को भी स्वीकार करना चाहिए.उन्होंने कहा कि, "लगभग 3,000ऐसी कब्रें पाकिस्तान से आए आतंकवादियों की हैं, और यह डेटा स्थानीय पुलिस स्टेशन में दर्ज FIR से भी पुष्ट होता है." उन्होंने इस बात पर निराशा व्यक्त की कि पाकिस्तान भी इन तथ्यों को स्वीकार करने से कतरा रहा है.
हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कुछ मामलों में मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है, जिनकी जाँच होनी चाहिए.उन्होंने कहा, "मैं भारतीय सेना पर व्यक्तिगत रूप से गर्व करता हूँ,.लेकिन हाँ, गलतियाँ होती हैं, भारी भूल हो सकती है, लेकिन भारतीय सेना सामूहिक हत्या या सामूहिक बलात्कार जैसे अपराधों की दोषी नहीं हो सकती." उन्होंने जोर दिया कि मानवाधिकारों के उल्लंघन की आलोचना का हमें स्वागत करना चाहिए और इसकी जाँच करवानी चाहिए.
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कश्मीर का भविष्य: सत्य और सुलह आयोग की आवश्यकता
वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा कि अब जबकि उग्रवाद का दौर खत्म हो गया है, तो भी कश्मीर में असंतोष की भावना अभी भी है.उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में एक सत्य और सुलह आयोग की ज़रूरत है, जिसकी स्थापना का अधिकार अभी वहाँ की सरकार के पास नहीं है, लेकिन इसका गठन किया जा सकता है.उन्होंने बताया कि इस आयोग का उद्देश्य लोगों को सज़ा देना नहीं, बल्कि केवल सच्चाई को उजागर करना है.
उन्होंने कहा, "अतीत में की गई अपनी गलतियों को स्वीकार करना ही एक सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने का पहला कदम है." उनका मानना है कि सच्चाई सामने आने पर ही राज्य, भारत-पाकिस्तान के संबंध और भारत के लोगों तथा जम्मू-कश्मीर के लोगों के बीच संबंध बेहतर हो सकते हैं.उन्होंने कश्मीर के लिए सलाह देते हुए कहा, "उन्हें वह आज़ादी दें जिसके वे हकदार हैं, क्योंकि भारत का संविधान प्रत्येक भारतीय नागरिक को आज़ादी की गारंटी देता है."
भारतीय बहुलवाद: साझा विरासत की कहानी
हिंदू-मुस्लिम एकता में आई कमी के सवाल पर हबीबुल्लाह ने कहा कि हम एक साझा विरासत के उत्तराधिकारी हैं.उन्होंने अपने शहर लखनऊ का उदाहरण दिया, जहाँ के समाज में सदियों से बहुलवाद और गंगा-जमुनी तहज़ीब रही है.उन्होंने 1857के विद्रोह का ज़िक्र किया, जब बेगम हज़ात महल का समर्थन करने वाले अधिकांश तालुकदार राजपूत थे.
उन्होंने कहा कि मुगल साम्राज्य के शिखर पर भी सभी समुदाय एक साथ आए.उन्होंने सम्राट औरंगज़ेब का उदाहरण दिया, जिनके सेनापति और प्रमुख राजा जय सिंह थे.उन्होंने शिवाजी की भी बात की, जिनके पास भी मुस्लिम समुदाय से सेनापति थे.उन्होंने कहा, "यह बहुत मूर्खतापूर्ण है कि हम धर्म के आधार पर खुद को बाँटने की कोशिश करें." उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत को एक कृत्रिम तरीके से अलग किया जा रहा है और हमें अपनी साझा विरासत को याद रखना चाहिए.
मुस्लिम समुदाय और महिला सशक्तिकरण
वक्फ संशोधन अधिनियम पर सर्वोच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश को उन्होंने सकारात्मक बताया.उन्होंने कहा कि समुदाय को वक्फ संपत्तियों को उचित ढंग से प्रबंधित करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.मुस्लिम समुदाय में शिक्षा के सुधार के बारे में उन्होंने कहा कि 'दीनी तालीम' और 'दुनियावी तालीम' के बीच का अंतर एक कृत्रिम भेदभाव है.शिक्षा तो शिक्षा है.उन्होंने अपने परिवार का उदाहरण देते हुए कहा कि उनकी माँ और दादी सक्रिय राजनीतिज्ञ थीं.उन्होंने महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम किया.उनकी माँ ने लखनऊ में गवर्नमेंट कॉलेज की स्थापना की, जबकि उनकी दादी ने तालिबान इस्मा की स्थापना की थी.उन्होंने कहा कि उनके परिवार में महिलाएँ हमेशा से पुरुषों के बराबर शिक्षित और अक्सर ज़्यादा बुद्धिमान रही हैं.उन्होंने कहा कि अब मदरसों में भी सभी समुदायों को शामिल होना चाहिए.
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मेरा भारत और मेरी दिनचर्या
भारत के बारे में अपने विचार साझा करते हुए उन्होंने सिर्फ इतना कहा, "मुझे यह बस पसंद है.न केवल पसंद है, बल्कि मैं इसे प्यार करता हूँ,क्योंकि मैं एक भारतीय हूँ." उन्होंने कहा कि उन्हें अपने और अपने परिवार द्वारा देश के लिए किए गए हर काम पर गर्व है.
अपनी दिनचर्या के बारे में उन्होंने बताया कि वे सुबह घुड़सवारी और योग करते हैं.एक सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में, वे हमेशा सुलभ रहने की कोशिश करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि एक भारतीय और एक मुसलमान के रूप में यह उनका कर्तव्य है कि वे दूसरों की मदद करें.उन्होंने कहा, "मैं नहीं चाहता कि मुझ पर यह आरोप लगे कि मैं कभी भी किसी भारतीय से नहीं मिलूँगा.अगर कोई गैर-भारतीय भी मुझसे मिलना चाहता है और किसी तरह की परेशानी में है, तो मैं निश्चित रूप से मदद करने की कोशिश करूँगा."
प्रस्तुति: ओनिका माहेश्वरी