फिरोज़ ख़ान की जन्‍मतिथि : कुछ अनकहे किस्से और यादें

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 25-09-2025
Firoz Khan's Date of Birth: Some Untold Stories and Memories
Firoz Khan's Date of Birth: Some Untold Stories and Memories

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली

'हम करेंगे इंसाफ...' ये डायलॉग आपको भी जरूर याद होगा, 25 सितम्बर 1939 को जन्मे ज़ुल्फ़िकार अली शाह ख़ान, जिन्हें हम फिरोज़ ख़ान नाम से जानते हैं और ये डायलॉग भी उन्हीं की देन है. बॉलीवुड के ऐसे कलाकार थे जिन्होंने सिर्फ़ अभिनय ही नहीं किया, बल्कि अपने स्टाइल, व्यक्तित्व और फिल्म निर्माण में नए आयाम स्थापित किए. इस जन्मशती पर आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ खास किस्से, जो बताते हैं कि कैसे फिरोज़ ख़ान ने अपनी पहचान बनाई और आज भी उनका नाम आदर और प्रेरणा के रूप में लिया जाता है. 

बचपन और संघर्ष की शुरुआत

बेंगलुरु (तत्कालीन मैसूर राज्य) में जन्मे फिरोज़ का नाम जन्म के समय ज़ुल्फ़िकार अली शाह ख़ान था. उनके परिवार का जीवन रोज़मर्रा की चुनौतियों से भरा था, पर उनकी आँखों में बड़े सपने थे. फिरोज़ ने अपने शुरुआती करियर में सहायक भूमिकाएँ निभाईं, प्लेटेबाज़ (pool table) पर काम करने की कहानियाँ प्रसिद्ध हैं, जितनी कमाऊ हो सके उतनी कमाने की ज़िद थी. उनके भाई संजय ख़ान के मुक़ाबले शुरुआत में ज़्यादा बड़े नहीं थे, लेकिन फिरोज़ ने जो अंदाज़ और थीम फिल्मो में अपनाया, वह किसी और ने नहीं किया.
 
स्टाइल आइकॉन की उड़ान

फिरोज़ ख़ान की पहचान उनकी शान-ओ‌ शौकत, उनके पहनावे, उनके डॉन-टाइप अंदाज़ (काऊबॉय हाउस, लेदर जॅकेट्स, हैट्स, सिगार) और स्क्रीन पर उनका मिड इंग्लिश-हिंदी संवाद शैली से बनी. उन्हें “Clint Eastwood of India” कहा गया. फिल्म Qurbani (1980) सिर्फ़ एक ब्लॉकबस्टर ही नहीं थी, बल्कि उसमें फिरोज़ ख़ान ने खुद निर्देशन, प्रोडक्शन और अभिनय किया। यही उनकी प्रतिभा थी कि उन्होंने हर ज़रिए (भूमिका, निर्देशन, पटकथा) खुद को परखा और दर्शकों को एक नए फिरोज़ से परिचित करवाया.
 
बड़े किस्से अभिनेत्री मित्रों से

उनके जन्मदिन के अवसर पर ज़ीनेत अमान, साईरा बानू और मुमताज़ जैसी अभिनेत्रियों ने यादों के पन्ने खंगाले हैं. ज़ीनेत अमान बताती हैं कि Qurbani की शूटिंग के दौरान, उनका सेट जब उन्हें पसंद नहीं आया, तो फिरोज़ ने उसे तोड़वा कर नया सेट बनवाया, उनका आत्म-सम्मान और उनकी प्रतिबद्धता कम नहीं थी। मुमताज़ ने कहा कि अगर उन्होंने शादी कर ली होती तो शायद फिरोज़ की ज़िंदगी का अंदाज़ बदल गया होता, लेकिन दोस्ती बची. साईरा बानू ने याद किया कि फिल्म Aadmi Aur Insaan के सेट पर उनके बीच कैसे हंसी-मज़ाक का माहौल रहता था; फिरोज़ का सेंस ऑफ़ ह्यूमर और सहज व्यवहार भी उन पर गहरा असर डालने वाला अनुभव था.
 
 
परिजनों की यादें और विरासत

उनके बेटे फर्दीन ख़ान ने हर जन्मशती पर पिता की याद में भावुक पोस्ट की। उन्होंने बताया कि भले ही फिरोज़ के साढ़े पंद्रह वर्ष बाद भी उनकी उपस्थिति महसूस होती है. उनकी स्मृतियाँ उनके पोते-पोती और परिवार के युवा सदस्यों में जीवित हैं. फर्दीन ने लिखा है कि “उनके सशक्त दिल और अविस्मरणीय आत्मा के टुकड़े उनकी तीसरी पीढ़ी में ज़िंदा हैं.
 
 
एक किस्सा है कि फिरोज़ को फिल्मों में काम करने के लिए बड़े-बड़े क़रज़़ लेने पड़े थे, क्योंकि एक निर्देशक और अभिनेता के रूप में उनकी महत्वाकांक्षाएँ ज़्यादा थी लेकिन संसाधन कम थे. कभी-कभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर नहीं चलीं, और परिवार को आर्थिक तंगी झेलनी पड़ी, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. उनकी पहचान सिर्फ फ़िल्मों से नहीं, उस आत्मविश्वास से बनी है जो उन्होंने जन्म से ही अपने अंदर रखा था.
 
 
शैली और स्टोरीटेलिंग का नया दृष्टिकोण

फिरोज़ ने फिल्म बनाने का तरीका भी बदला. सिर्फ़ रोमांस-ड्रामा में नहीं, बल्कि एक्शन, ट्रेजेडी, थ्रिलर, सबमें अपनी ज़बान छोड़ी. फिल्मों जैसे Dharmatma, Qurbani, Dayavan आदि में उनका साहस दिखाई देता है. जब उन्होंने फिल्म Dayavan को बनाने का निर्णय लिया, तो वह एक तमिल थ्रिलर Nayakan के रीमेक के रूप में था. शुरुआत में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाने की योजना बनाई थी, लेकिन बाद में उन्होंने निर्णय बदला क्योंकि कहानी और भावनाएँ उन्हें बेहतर तरीके से प्रस्तुत करना थी, न कि केवल चमक-दमक के लिए.
 
 
जन्मशती की शक्ति और आज का अर्थ

जन्मदिन एक ऐसा मौका है जब हम सिर्फ याद नहीं करते, बल्कि उनसे सीखते हैं. फिरोज़ ख़ान की जन्मशती पर यह कहानी याद दिलाती है कि कैसे एक कलाकार ने बिना बड़ी फ़िल्मों के बजट के, बिना आधुनिक मार्केटिंग के, अपनी मेहनत, व्यक्तित्व और अद्वितीय स्वभाव से अपनी जगह बनाई. उनके जीवन के ये किस्से दर्शाते हैं कि सफलता सिर्फ़ ग्लैमर से नहीं आती, बल्कि दृढ़ इच्छाशक्ति, आत्मसम्मान और अपने काम के प्रति ईमानदारी से आती है.
 
 
फिरोज़ ख़ान आज नहीं हैं, पर उनकी फ़िल्में, उनका अंदाज़, उनकी बातें आज भी ज़िंदा हैं. हर 25 सितम्बर पर जब बॉलीवुड उनका जन्मदिन मनाता है, तो वह सिर्फ़ एक तारीख़ नहीं होती, बल्कि प्रेरणा का स्रोत होती है. इस जन्मशती पर याद आती है कि कैसे एक ज़ुल्फ़िकार अली शाह ख़ान ने न सिर्फ़ अपनी पीढ़ी को प्रभावित किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाया कि अपने सपनों की चिंता करो और उन्हें सच करने की हिम्मत भी रखो.