किसकी नजरे-बद से पामाल हुआ मेवात का भाईचारा ?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 02-08-2023
किसकी नजरे-बद से पामाल हुआ मेवात का भाईचारा ?
किसकी नजरे-बद से पामाल हुआ मेवात का भाईचारा ?

 

राकेश चौरासिया

हरियाणा के मेव मुस्लिम बहुल जनपद नूंह में विश्व हिंदू परिषद के तत्वावधान में बृज मंडल जलाभिषेक यात्रा निकल रही थी. यह जलाभिषेक यात्रा कई सालों से निकल रही है. इन दिनों सावन चल रहा है, जिसमें बाबा भोलेनाथ के जलाभिषेक का विशेष महत्व होता है. इसलिए, इस साल जब 31 जुलाई को यह यात्रा निकली, तो नल्हड़ महादेव मंदिर के पास अचानक इतनी बड़ी भीड़ ने यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं पर हमला कर दिया कि दर्जनों पुलिस कर्मी भी हमले को रोकने में नाकाम हो गए. आगजनी, पथराव हुआ. कई लोगों की मृत्यु और दर्जनों घायल हो गए. अचानक हुई यह हिंसा कुछ कहती है. मेवात के इतिहास और समाज में रुचि रखने के कारण मुझे पता है कि मेवात के हिंदू-मुस्लिम ताने-बाने में इतनी सहजता, वेग और गति है कि पहली बार हुई इतने बड़े पैमाने पर हुई हिंसा के बाद मन-मस्तिष्क चौंक पड़ा. इस इलाके में जब-तब छिटपुट घटनाएं तो दर्ज हुई हैं, लेकिन इतना विपुल हिंस्र घटनाक्रम कभी देखने-सुनने को नहीं मिला. क्योंकि यहां के हिंदू और मुस्लिम सदियों से एकरस होकर रहते, सहते और बसते आए हैं. उनके सुख-दुख एक हैं और वे साझी संस्कृति जीते हैं. यहां के हिंदुओं और मुसलमानों का एक ही डीएनए है, यहां के दोनों समुदाय का सिजरा यानी वंशावलि मिलती है, वे शादी-ब्याह और गम-खुशी के मौके पर नामचारे के लिए नहीं, वरन व्यापक स्तर पर एक-दूसरे को न्यौतते हैं, सहभोज करते हैं और सुख-दुख बांटते हैं.

सर सैयद अहमद खान कहा करते थे, ‘‘हिन्दू और मुसलमान भारत माता की दो आंखें हैं, अगर इनमें से किसी को भी कोई नुकसान होता है, तो हमारी भारत माता एक आंख से अंधी हो जाएगी.’’

हिन्दू और मुसलमान भारत माता की दो आंखें हैं. अगर, सचमुच यह देखना हो, तो मेवात से बेजोड़ उदाहरण कदाचित ही कोई और हो. इसे आप क्या कहिएगा कि मेवात के मुसलमानों को मेव मुस्लिम कहा जाता है. मगर, मेव मुसलमानों और मेवात के हिंदुओं के गोत्र तक मिलते हैं. उनकी पालें भी एक हैं. साथ ही, मेव मुसलमान सदा से गोत्र परंपरा को मानते आए हैं.

डीएनए की ऐतिहासिक बानगी

मेव मुस्लिम बड़ी शान से इस बात को सदैव उद्धृत करते हैं कि उनके मुस्लिम राजपूत राजा हसन खां मेवाती ने मुस्लिम होने के बावजूद, युद्ध में मुगल बादशाह बाबर का साथ नहीं दिया था, बल्कि हसन खां मेवाती, अपनी राजपूत बिरादरी के राणा संग्राम सिंह उर्फ राणा सांगा की तरफ से बाबर के खिलाफ युद्ध लड़े थे. बाबर ने हसन खां मेवाती को खत लिखा था कि तू भी मुसलमान और मैं भी मुसलमान. इस नाते हम बिरादरी भाई हुए. इसलिए युद्ध में मेरा साथ दो.

जवाबी खत में हसन खां मेवाती ने उत्तर दिया था कि तू भी मुसलमान और मैं भी मुसलमान. इस नाते हम बिरादरी भाई हैं, यह बात सच है. लेकिन राणा सांगा का क्या करूं, क्योंकि राणा सांगा से मेरा खून का रिश्ता है और हम चचाजात भाई हैं. गौरतलब है कि देशभक्त राजा हसन खां मेवाती अलवर के शासक अलावल खां के पुत्र थे और अलावल खां, हिंदू राजपूत राजा सांभरपाल की तीसरी पीढ़ी के वंशज थे.


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‘खानवा’ के मैदान में जब युद्धरत राणा सांगा के सिर में अचानक एक तीर लग गया, तो वे हाथी के ओहदे से नीचे गिर पड़े. ‘कहीं सेना हार मानकर पीछे न हट जाए’, यह सोचकर राजा हसन खां मेवाती ने राणा सांगा का  परचम उठा लिया. राजा हसन खां मेवाती के 12 हजार घुडसवार सिपाही बाबर की सेना पर टूट पडे.

उसी दौरान तोप का एक गोला राजा हसन खां मेवाती के सीने पर आ लगा और उसके बाद यह आखिरी मेवाती राजा 15 मार्च 1527 को मां भारती की गोद में चिरनिद्रा में विलीन हो गया. एक मेव मुस्लिम राजा ने एक हिंदू राजा के लिए स्वयं का सर्वोच्च बलिदान कर दिया. 

पौराणिकता

महाभारत कथा पूरे भारत में आंचलिक बोली-बानी में गाई-सुनी जाती है. इसी तरह मेवात के मेव मुस्लिमों के बीच मेवनी भाषा में महाभारत का गान-श्रवण होता है. हालांकि मेव मुस्लिम महाभारत की इस कहानी को अपने अंदाज में कहते हैं, जिसे हरियाणा के एक मुस्लिम शायर सादुल्लाह खान खान ने लिखा था.

इसे ‘पांडून का कड़ा’ कहा जाता है. जो कुछ इस तरह से है- ‘‘समय करे न नर क्या करे, समय बड़ा बलवान.’’ मेव मुस्लिमों में मान्यता है कि मथुरा से भगवान श्रीकृष्ण मेवात होकर कुरुक्षेत्र गए थे. 

सूर्यवंशी और चंद्रवंशी

देश के लगभग दो करोड़ मेव मुस्लिमों की आबादी आठ राज्यों में बसर करती है. इनकी सर्वाधिक करीब 60 लाख आबादी हरियाणा के गुरूग्राम, पलवल, नूंह जिलों के अलावा राजस्थान के अलवर, भरतपुर व उत्तर प्रदेश के मथुरा जिला में एक साथ आबाद है.

खास बात यह है कि मेव मुस्लिमों के रीति-रिवाज, गोत्र और पाल स्थानीय हिंदुओं के समान हैं. मेवात के हिंदूओं और मेवों की कुल 12 पालें और 52 गोत्र हैं. तोमर, तंवर, जादू गोत्र सूर्यवंशी, दंगहल व सींगल चंद्रवंशी और चौहान, राठौड़, कुशवाहा, बड़गूजर सहित कुल 6 वंश हैं. और पूरे देश में सिर्फ मेव मुस्लिम हैं, जो आज भी हिंदुओं की तरह अपना गोत्र बचाकर शादी करते हैं. यदि कोई मेव व्यक्ति एक ही गोत्र में शादी करता है, तो इलाके मेव मुस्लिम पंचायत द्वारा जातबाहर यानी उसका हुक्का-पानी बंद करके सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है.

हिंदुओं की तरह मेव मुसलमान भी खुद को सूर्यवंशी और चंद्रवंशी कहते हुए गर्व महसूस करते हैं. मेवात में यह किवदंती सामान्य है कि दिल्ली के समीप होने के कारण कई राजपूत राजाओं ने इस्लाम धर्म कबूल कर लिया था. हजारों वर्षों बाद भी उनके मेव वंशज अपने आप को राजपूत, छत्रीय, कृष्ण व राम का वंशज कहते हैं. यही बातें मेवात को आज तक सांप्रदायिकता के उन्माद से दूर रखे हुए हैं.

मेव औरतें बुर्का पहनने की बजाय घूंघट निकालती हैं. हालांकि पांच दशक पहले तक कुछ इलाकों में चोली, घागरे पहनने का चलन था. मगर अब मेव मुसलमानों में यह पहरावा समाप्त हो चुका है, लेकिन राजस्थान की कई मेव बुजुर्ग महिलाओं में यह पहनावा आज भी देखने को मिल जाता है.

देश के अन्य मुसलमानों में भात, छूतक, बारात की विदाई, खेत, गाना-बजाना जैसी रस्में नहीं है, लेकिन ये सभी रस्में हिंदुओं की तरह मेवात के मुस्लिमों में आज भी मौजूद हैं.

महात्मा गांधी 

1947 में बंटवारे के बाद मुस्लिम में पाकिस्तान जाने के लिए भगदड़ मची हुई थी. तब हिम्मत खां मेवाती के बुलावे पर महात्मा गांधी 19 दिसंबर 1947 को मेवात के गांव घासेड़ा पहुंचे. उनके साथ पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपी चंद भार्गव, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता रणबीर सिंह हुड्डा सहित कई नेता भी थे.

मेवात के मुसलमान भी पाकिस्तान जाने के लिए बोरिया बिस्तर बांध चुके थे. मगर महात्मा गांधी की एक आवाज पर उन्होंने पलायन रोक दिया. गांव घासेड़ा में गांधी जी ने अपने ऐतिहासिक भाषण में कहा, ‘‘आज मेरे कहने में वह शक्ति नहीं रही, जो पहले हुआ करती थी.

मगर मेरे कहने में पहले जैसा प्रभाव होता, तो आज एक भी मुसलमान ‘भारतीय संघ’ को छोड़कर जाने की जहमत नहीं करता, न ही किसी हिंदू-सिख को पाकिस्तान में अपना घर बार छोड़कर भारतीय संघ में शरण लेने की जरूरत पड़ती.’’ गांधी जी ने फिर मेव मुस्लिमों को पूर्ण सुरक्षा का आश्वासन दिया और मुस्लिमों का पलायन रुक गया. नहीं तो हरियाणा और राजस्थान में आज एक भी मुसलमान नहीं होता.

 

सफिया जुबैर

राजस्थान के अलवर जिले की रामगढ़ सीट से कांग्रेसी विधायक सफिया जुबैर मेव मुस्लिम हैं. वे कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव जुबैर खान की पत्नी हैं. उनके पिता मुहम्मद उस्मान भारतीय सेना में थे. सफिया जुबैर कहती हैं कि हम मेव मुस्लिम जरूर हैं, मगर हमारी रगों में राम और कृष्ण का खून है.

सफिया जुबैर का कहना है कि अलवर, भरतपुर, नूंह और मथुरा में मेव समाज के लोग रहते हैं. भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था. उन्होंने कहा कि उन्हें एक वंशावली से यह इतिहास मिला है. जानना चाहते हैं कि मेव समाज का अतीत क्या है? इतिहास से पता चलता है कि मेव मुस्लिम राम और कृष्ण की संतान हैं. धर्म जरूर बदल गया है, लेकिन खून नहीं बदला है. हमारा खून राम और कृष्ण का है.

मेवों का गो संरक्षण संकल्प

यहां के मेव मुस्लिम स्थानीय हिंदुओं के साथ सौहार्द से रहते आए हैं. वे हिंदुओं के लिए मां समान पूज्यनीय गौ माता के संरक्षण के लिए भी आगे आए हैं. 2022 के मई माह में पुन्हाना के शाह चोखा गांव में 6 गावों के प्रमुख लोगों की पंचायत आयोजित की गई, जिसमें औथा, फलेंडी, मुंढेता, शाह चोखा, नसीरपुरी और हिंगनपुर के गणमान्य जन मौजूद रहे.

पंचायत में मेव मुसलमानों ने नूंह जिले के अंतर्गत मुसलमानों ने गाय के संरक्षण के लिए संकल्प लिया. गौ नस्ल के पशु की हत्या एवं तस्करी में शामिल लोगों पर भारी जुर्माना का ऐलान भी किया गया है. पंचायत की अध्यक्षता कर रहे मुढ़ेता के सरपंच हाजी इसाक ने गायों को नुकसान नहीं पहुंचाने और गो तस्करी रोकने में अहम किरदार निभाने के लिए उन्हें शपथ दिलाई. गो संरक्षण एवं गौ तस्करी रोकने के लिए एक 31 सदस्य कमेटी का भी गठन किया गया.

हिंदू रखते हैं रोजा

मेवात में बहुलवाद की सुरमई तस्वीर देखने को मिलती है. यहां के हिंदू अपने मुस्लिम भाईयों की श्रद्धा में शिराकत करते हैं. यहां हिंदू मुबारक माहे-रमजान में रोजा भी रखते हैं. नूंह शहर निवासी मदन तंवर का रोजा रखना तो इस बार सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ.

मदन तंवर ने बताया कि उन्होंने शुक्रवार को पहला रोजा रखा. इसके लिए सुबह 4ः43 बजे सेहरी की, जिसमें उन्होंने दही खाया और पूरे दिन करीब 14 घंटे बिना खाए-पिए रोजे से रहे. शाम को मुसलमानों की तरह 6ः44 बजे मुस्लिम समाज के साथियों के साथ दस्तरखान पर बैठकर रोजा इफ्तार किया. उन्होंने कहा कि अल्लाह और ईश्वर एक हैं. ईश्वर हमें यह समझने की सद्बुद्धि प्रदान 

तब्लीगी जलसा में हिंदू भोज

यहां के मेव और हिंदुओं के बीच रोटी का नाता देखने को आमतौर पर मिल जाता है. फरवरी, 2023 में नूंह में तब्लीगी जमात का तीन दिवसीय जलसा आयोजित किया गया, जिसमें हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान सहित अन्य इलाकों के 10 हजार से अधिक लोग इकट्ठे हुए.

जलसे की सदारत तब्लीगी जमात के अंतरराष्ट्रीय अमीर हजरत मौलाना साद ने की. जलसे में हिंदू-मुस्लिम भाईचारा देखने को मिला. नगर पालिका नूंह के पूर्व चेयरमैन विष्णु सिंगला ने जलसे में शिकरत की. विष्णु सिंगला ने हजारों तब्लीगियों के लिए खाने का मुफ्त ढाबा चलाया. इसी तरह नगर पार्षद मदन ने भी तीन दिनों तक चाय और कॉफी के स्टॉल लगाकर लोगों की मुफ्त सेवा की. इस जलसे में बड़ी संख्या में हिंदू भी शरीक हुए.


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सेना में अफसर

मेव मुस्लिमों की राष्ट्रभक्ति कभी संदेह के घेरे में नहीं आई. यहां के युवा हमेशा सैन्य बलों में भर्ती होकर देश की रक्षा के लिए तत्पर रहे. हाल में मदरसे के पढ़े हुए चार मेवाती युवक सेना में भर्ती हुए हैं. इनमें नूंह के गांव ढकलपुर के मोहम्मद तल्हा, नूंह के देवाला गांव के मोहम्मद माजिद, अली हसन और नगीना के रानिका गांव के अब्दुल मजीद हौजरानी सेना में जूनियर कमीशंड आफिसर (जेसीओ) बने हैं.

इसी तरह नूंह जिले के खंड पुन्हाना के गांव इंदाना निवासी एवं दिल्ली की स्पेशल सेल में बतौर असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर शहजाद खान ने हिज्बुल मुजाहिदीन के दो आंतकियों को गिरफ्तार किया. इसके लिए वे पुलिस के सबसे बड़े अवार्ड पुलिस पदक (पीएमजी) से सम्मानित हुए. उन्हें यह सम्मान भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 16 फरवरी को प्रदान किया.

मेवात में मेव मुसलमानों और हिंदुओं के बीच इस तरह की सद्भावना, सौहार्द और भाईचारे की असंख्य मिसालें हैं, जो उनके मध्य सदियों पुराने मधुर साहचर्य को रेखांकित करती हैं.

किंतु अचानक नूंह भभक उठता है. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और गृह मंत्री अनिल विज का इस बारे में कहना है कि यह कोई बड़ी साजिश है और वे इसका पर्दाफाश करके रहेंगे. दोषियों को बख्शा नहीं जाएा. सूत्र भी कह रहे हैं कि आगजनी और पथराव करवाने बाहरी लोग थे, उनकी शिनाख्त जरूरी है.

सचमुच, नूंह में जिन ताकतों ने हिंसा का नंगा नाच किया है. उनका पर्दाफाश किया जाना चाहिए, जिन्होंने मेव-हिंदू रिश्तों में जहर घोलने की कोशिश की है.

एक और बात जो आहत कर रही है. कुछ नेता हिंसा की आग में रोटियां सेकने की फिराक में हैं. इन नेताओं ने उस समय-बिंदु में ‘सरकार की यह गलती है’, ‘खुफिया तंत्र फेल हो गया’, ‘सरकार को मेवात की चिंता नहीं है’ सरीखे सवाल खड़े करने में वक्त बर्बाद किया. तब, जब नूंह जल रहा था और उस समय छिद्रान्वेषण की कीमियागीरी के बजाय शांति बनाए रखने और अमन-चैन कायम करने की अपीलें किए जाने की दरकार थी.