आवाज विशेष । विश्व जनसंख्या दिवस
मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली
जब भी भारतवर्ष में गंगा नदी और इसके बेसिन की बात की जाती है, आपको असंख्य नरमुंड नजर आएंगे. गंगा के किनारे-किनारे आप चलते चले जाइए, हरिद्वार से गंगासागर तक चले जाइए. गंगा ही क्यों, इसकी हर सहायक नदी के तट पर भी आपको अपार जनसंख्या मिलेगी.
दुनिया की आबादी 7 अरब कब का पार कर गई. क्या हम ज़रूरत से ज्यादा हो गए हैं? अब बढ़ती आबादी पर कोई बात नहीं करता. राजनीति में बढ़ती आबादी पर रोक लगाना कोई मुद्दा नहीं है. इसमें धर्म का कोण भी आ जाता है.
लेकिन, हम चाहें लाख इस मुद्दे पर बात करने से कतराते रहें और अपनी जनसंख्या को अपने संसाधन बताते रहें, लेकिन कुछ अध्ययनों पर गौर करें तो नदियों और जल के संदर्भ में आने वाले संकट के संकेत दिखेंगे. हाल ही में, नीति आयोग ने संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक (कंपॉजिट वॉटर मैनेजमेंट इंडेक्स, सीडब्ल्यूएमआइ) विकसित किया है ताकि देश में जल प्रबंधन को प्रभावी बनाया जा सके. चेतावनी स्पष्ट है, साल 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति की तुलना में दोगुनी होने वाली है.
इस परिदृश्य में, हर राज्य की जनसंख्या वृद्धि को देखा जाए, जिसका पूर्वानुमान भारतीय राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग 2001-2026 ने 2006 में किया था. अब इसका पूर्वानुमान अब 2080 तक के लिए किया गया है. इसके अनुमान के मुताबिक, गंगा बेसिन में आबादी साल 2040 तक करीबन डेढ़ गुनी हो जाएगी.
चेतावनीः गंगा बेसिन में 2040 तक आबादी डेढ़ गुनी से भी ज्यादा हो जाने का अनुमान है
2011 की जनगणना के मुताबिक, इस बेसिन की आबादी 45.5 करोड़ थी जो 2040 में बढ़कर 70.6 करोड़ हो जाएगी. बढ़ती आबादी के साथ शहरीकरण भी बढ़ेगा. शहरी आबादी में करीब 70 फीसदी वृद्धि होगी.
शहरी आबादी मौजूदा 14.4 करोड़ से बढ़कर 24.3 करोड़ तक हो जाएगी. ग्रामीण आबादी में 35 फीसदी की बढोतरी होगी. यह मौजूदा (2011) के 34.1 करोड़ से पढ़कर 46.3 करोड़ हो जाएगी.
जाहिर है इस बढ़ी आबादी को खाने के लिए अनाज चाहिए होगा, नहाने और धोने के लिए पानी चाहिए होगा. अनाज उगाने के लिए पानी भी मौजूदा संसाधनों से ही खींचा जाएगा. असल में, पानी की मांग आबादी में बढोतरी के साथ उपभोक्ता मांग और विश्व बाजार के विकास से भी होता है.
बढ़ेगी मांगः आने वाले दशक में खाद्यान्नों की मांग में जबरदस्त तेजी आएगी
वॉटर रिसोर्स ग्रुप का पूर्वानुमान कहता है कि साल 2030 तक सिंचाई के लिए पानी की जरूरत सालाना 2.4 फीसदी की दर से बढ़ेगी. यानी 2040 तक की गणना की जाए, तो पानी की मांग आज की तुलना में 80 फीसदी बढ़ जाएगी. इसी शोध पत्र में कहा गया है कि औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादनों की जरूरतों के लिए पानी की मांग चौगुनी हो जाएगी.
विषय ऐसा है कि हमें और आपको चिंता करने की जरूरत है. दुनिया भर की मीठे पानी का महज 4 फीसद हिस्सा हमारे पास है. आबादी को बोझ उससे कई गुना ज्यादा. जैसा कि गांधी जी कहते थे, प्रकृति के पास हमारी आवश्यकता पूरी करने लायक बहुत है, पर हमारी लालच पूरी करने लायक नहीं.
हमें दो मोर्चों पर काम करने की जरूरत है. एक तरफ नदियों को बचाना होगा, दूसरी तरफ आबादी पर प्रभावी ढंग से लगाम लगानी होगी. वरना, तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए हो न हो, गृहयुद्ध जरूर हो जाएगा.