गुलाम कादिर
पड़ोसी देश पाकिस्तान से एक ऐसी खबर सामने आई जिससे उन देशों को सतर्क होने की जरूरत है, जहां लोकतंत्र बेहद कमजोर स्थिति मंे है. खबर है कि पाकिस्तान में खुफिया एजेंसियों अदालतों के कामकाज में हस्ताक्षेप कर रही हैं और यह बात यहां तक बढ़ गई है कि सियासत गरमाने के साथ अदालों को इसपर ठोस निर्णय लेना पड़ रहा है.
पिछले महीने सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल को लिखे एक पत्र में इस्लामाबाद हाई कोर्ट के 6 जजों ने खुफिया एजेंसियों द्वारा न्यायिक कार्यों में हस्तक्षेप और दबाव की शिकायत की थी. इसमें कुछ अवसरवादियों द्वारा जस्टिस मोहसिन अख्तर कयानी को कमजोर करने की भी बात दर्ज है.
परिणामस्वरूप, न्यायमूर्ति तारिक महमूद जहांगीरी, न्यायमूर्ति बाबर सत्तार, न्यायमूर्ति सरदार इजाज इशाक खान, न्यायमूर्ति अरबाब मुहम्मद ताहिर और न्यायमूर्ति तमन रिफत शाहबाज शरीफ द्वारा लिखे गए पत्र पर विचार करने के लिए पूर्ण न्यायालय की बैठक हुई जिसमें जांच आयोग के गठन का निर्णय लिया गया.
इस सदस्यीय जांच आयोग और न्यायमूर्ति (आर) तसदेक जिलानी को इसका प्रमुख नियुक्त किया गया, लेकिन उन्होंने इस जिम्मेदारी को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और मुख्य न्यायाधीश काजी ईसा ने पत्र पर ध्यान दिया और प्रारंभिक में सात सदस्यीय बड़ी पीठ का गठन किया.
एक संस्था के तौर पर सुप्रीम न्यायपालिका की प्रतिक्रिया पर 11 अप्रैल को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तान बार काउंसिल, सुप्रीम कोर्ट बार और संघीय सरकार से पूछा कि देश के इतिहास में यह अपनी तरह का पहला मामला है. इससे कैसे बचा जाए या भविष्य में ऐसी प्रवृत्तियों से कैसे निपटा जाए ? इसके लिए जिम्मेदार कैसे तय किए जाएं ? ये ऐसे सवाल हैं जो किसी के भी मन में उठ सकते हैं. नकारात्मक सोच और प्रवृत्तियों से बचने की जरूरत है .
इसका असर दूसरे देशों पर भी पड़ सकता है. देश और राष्ट्र के लिए खेद का कारण गुरुवार को तब बन गया जब कराची में सिंध हाई कोर्ट चीफ जस्टिस ने बार एसोसिएशन के समारोह में भाषण के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाएगा.
उन्होंने यह भी कहा कि मुझे हस्तक्षेप के संबंध में किसी भी न्यायाधीश से कोई शिकायत नहीं मिली है, और जो भी घटनाएं रिपोर्ट की गई हैं वे मेरे पद संभालने से पहले की हैं, जिसमें न्यायमूर्ति मंसूर अली शाह, न्यायमूर्ति जमाल मंडुखेल, न्यायमूर्ति अतहर मिनुल्लाह शामिल थे. न्यायपालिका में कथित हस्तक्षेप के खिलाफ मुख्य न्यायाधीश काजी फैज ईसा की अध्यक्षता में मुसरत हिलाली और न्यायमूर्ति नईम अख्तर अफगान कमेटी का गठन किया गया है जो 30 अप्रैल को इस मामले की सुनवाई करेगी.
नई पीठ में सुनवाई करने वाले न्यायमूर्ति याह्या अफरीदी शामिल नहीं हैं. पिछली सुनवाई में उन्होंने अपने लिखित नोट में खुद को बेंच से अलग कर लिया था. दूसरी ओर, अतीत में कुछ फैसलों को लेकर यह धारणा बनी है कि सरकारें अदालतों को प्रभावित कर रही हैं. इसमें कुछ प्रसिद्ध मामले भी शामिल हैं. इस संबंध में संसद की मदद से भविष्य के लिए एक प्रभावी नीति बनाई जा सकती है या पहले से संशोधित की जा सकती है.
सत्ता प्रतिष्ठान, राजनेताओं और न्यायपालिका के संबंध में आलोचकों की सकारात्मक राय के अनुसार, समस्या के समाधान का एक पहलू यह है कि सभी हितधारक एक खुले संवाद का आयोजन करें और ऐसे चार्टर पर रचनात्मक दृष्टिकोण से अतीत की गलतियों को स्वीकार करें.
भविष्य के लिए शासन की आम सहमति बनाई जानी चाहिए जिसमें भविष्य के लिए प्रत्येक पक्ष को अपने दायरे में रहते हुए सार्वजनिक विकास और समृद्धि पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिससे उन्हें आंतरिक दोषों को दूर करने में मदद मिले. इसके दायरे में रहकर बिना किसी अप्रिय स्थिति उत्पन्न हुए राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान किया जा सकता है.
यहां याद दिलाता चलूं कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को जेल जाने से रोकने और जेले भेजने के मामलों में भी पाकिस्तान की अदालतों में हस्ताक्षेप करने के आरोप लग चुके हैं. यहां तक कि मौजूदा पाकिस्तान सरकार भी इन आरोपों से बरी नहीं है.
-लेखक डब्ल्यूसीएल के उच्चाधिकारी रहे हैं.