वजूद-ए-जन से है तस्वीर-ए-काएनात में रंग

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 08-03-2021
वजूद-ए-जन से है तस्वीर-ए-काएनात में रंग
वजूद-ए-जन से है तस्वीर-ए-काएनात में रंग

 

dr rakshandaडा  रख्शंदा रूही मेहदी 

वजूद-ए-जन से है तस्वीर-ए-काएनात में रंग 
इसी के साज से है जिंदगी का सोज-ए-दरूँ 
 
अल्लामा इकबाल के इस शेेर में नारी के संपूर्ण व्यक्तित्व की सराहना इस वजदानी रूप में की गई है कि नारी के अस्तित्व ने संसार में रंग भरे हैं. उसकी सांसों के संगीत से जिंदगी का साज बजता है. 
अब ऐसी महत्वपूर्ण हस्ती के लिए क्या एक दिन का उत्सव मनाना उसके जीवन के असीम बलिदानों का बदल हो सकता है?
 
एक मां, एक बहन और अर्धांिगनी एक बेटी के बेहद ममता भरे व्यवहार के प्रति महिला दिवस में पुरस्कार अथवा उपहार से नवाज कर अपने उत्तरदायित्व को पूरा कभी नहीं किया जा सकता. 
 
जयशंकर प्रसाद नारी के मान सम्मान में नतमस्तक हो कह उठते हैं...

नारी! तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास-रजत-नग पगतल में.
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में।

बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां को महत्व देना कम कर दिया है. यह चिंताजनक पहलू है. सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं. परंतु जन्म देने वाली माता के रूप में नारी का सम्मान अनिवार्य रूप से होना चाहिए, जो वर्तमान में कम हो गया है. यह सवाल आजकल यक्षप्रश्न की तरह चहुंओर पांव पसारता जा रहा है. इस बारे में नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करना चाहिए.
 
धरती से लेकर पाताल तक हर क्षेत्र के निर्माण में महिलाओं का अतुलनीय योगदान है. महिलाएं ही बिजनस, उद्यमी कार्यों और वेतनरहित श्रम के रूप में अर्थव्यवस्था में काफी बड़ा योगदान देती हैं. कॉरपोरेट्स जगत की बात करें तो आज हर बड़े पद पर महिलाओं का ही वर्चस्व है. भारत से पुरुष प्रधान देश में भी महिलाओं ने अपने कौशल कार्य से अपनी अलग पहचान बनाई और साथ ही मां, बहन, बेटी, पत्नी, प्रेमिका और दोस्त के रूप में अहम् भूमिका निभाई है.
 
महिलाओं के रूप में लिया जाने वाला पहला महत्वपूर्ण कदम आत्मविश्वास बढ़ाकर आत्मसम्मान हासिल करना, अपना महत्व समझना एवं अपनी देखभाल कर अपना सम्मान करना है. एक स्वस्थ आत्मसम्मान के विकास में अपनी अंदरूनी आवाज को शक्तिशाली बनाना तथा ज्यादा प्रभावशाली विचारों के साथ अपने सोचने के नजरिए को परिवर्तित करना शामिल है. आपको खुद में विश्वास का निर्माण करना एवं ज्यादा प्रभावशाली बनने के लिए कौशल सीखना आवश्यक है.
 
शिक्षा, कौशल एवं आत्मविश्वास विकास की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण अंग हैं. शिक्षा महिलाओं को चयन करने की शक्ति देती है, जिससे उनका कल्याण, स्वास्थ्य, बच्चों की शिक्षा सुनिश्चित होती है एवं सतत परिवारों का विकास होता है. साथ ही शिक्षा महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरुक बनाती है, आत्मविश्वास बढ़ाती है और आपको अपने अधिकार हासिल करने का अवसर देती है.
 
 महिलाओं को अपनी प्रतिभा, दक्षता, क्षमता, अभिरूचि और रूझान को पहचानना है, ईश्वर ने हमें जिन गुणों से नवाजा है उन्हें निखारना है. यत्रवत कार्य करने के बजाय स्वयं को प्रसन्न रखने के लिए काम करना है आपको अपना परिवेश अपने आप प्रसन्न मिलेगा...दूसरे शब्दों में हर काम को प्रसन्नता से करें अपनी क्षमता का पूरा उपयोग करें.
 
भारत अपनी परंपराओं के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध रहा है, और अगर हम अपनी ही परंपराओं को सही मायनों में अपना लें, तो हमें कभी इस दिवस को मनाने कि जरूरत ही नहीं पड़ेगी. वेद पुराणों ने नारी को देवी रूप माना है तो कुरान ने मां के कदमों के नीचे जन्नत होने का इशारा दिया. 
 
1940 में सुप्रसिद्ध शायर असरसरूल हक मजाज ने कहा ......
 
तेरी नीची नजर खुद तेरी अस्मत की मुहाफिज है
तू इस नश्तर की तेजी आजमा लेती तो अच्छा था
दिले मजरूह को मजरूहतर करने से क्या हासिल
तू आँसू पोंछ कर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था
तेरे माथे का टीका मर्द की किस्मोत का तारा है
अगर तू साजे बेदारी उठा लेती तो अच्छा था
तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था.
    
समय गुजरने के साथ हमारे समाज ने नारी के योगदान और बलिदान को नकारते हुए उसे इश्तेहारी रूप देने का प्रयास किया और पुरूष प्रधान समाज का प्रभाव बढ़ता गया. मुझे ऐसा कहने में हिचकिचाहट नहीं है कि अगर पृथ्वी पर नारी नहीं बची तो मानव जाति का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा क्योंकि स्त्री जन्नी है, जन्मदात्री है.
 
हर महिला विशेष है चाहे वह घर पर या कार्यालय में काम कर रही हो या दोनों ही कर रही हो. वह बच्चों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और अपने घर को भी कुशलतापूर्वक प्रबंधित करती है. 
 
यदि हम भारतीय महिलाओं की कॉर्पोरेट सेक्टर में विश्व में स्थिति की बात करें तो आपके समक्ष एक चैंका देने वाला सच आएगा. ईएमए पार्टनर इंटरनेशनल के सर्वे के मुताबिक भारत में करीब 11 फीसदी महिलाएँ बड़ी-बड़ी कंपनियों में सीईओ जैसे उच्च पद पर काबिज हैं. वहीं अमेरिका जैसे विकसित देश में मात्र 3 फीसदी महिलाएँ अमेरिका की फार्च्यून 500 कंपनियों में कार्यरत हैं. यह अंतर कोई मामूली अंतर नहीं है.
 
वर्तमान समय में भारतीय महिलाओं की प्रगति पुरूषों के उदार दृष्टिकोण व महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना का परिणाम है. आज बहुएं शादी के बाद अपनी शिक्षा पूरी कर लेती हैं इसमें उनके पति व सास-ससुर के सहयोग का बहुत बड़ा हाथ हैं. 
 
 अन्य देशों में भी महिलाओं कि स्थिति कुछ खास नहीं थी, पर वहां के लोगों ने महिलाओं के महत्व को समझते हुए उनके उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए, और नतीजन आज वे विकसित देशों की सूची में अव्वल स्थान पर बैठे हैं. और हम उनकी नकल करते हुए महिला दिवस तो मनाते हैं परंतु असल मायनों में अभी बहुत पीछे हैं.
 
(लेखक परिचयः
जन्म: कस्बा देवबंद ज़िला सहारनपुर
शिक्षा: पी0 एच0 डी0 हिंदी
हिंदी- उर्दू में कहानियां लेखन
हंस, नया ज्ञानोदय, लमही, कथाक्रम, अहा ज़िंदगी, निकट, अभिनव इमरोज़ आदि पत्रिकाओं में कहानियां प्रकाशित
आॅल इंडिया रेडियो के विविध भारती,उर्दू सर्विस,राजधानी चैनल से कहानियां प्रसारित
अनुवादित उर्दू-हिंदी कहानियां एवं  समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं के लिए लेखन
डीडी उर्दू पर ‘चिल्मन के पार‘ कहानी पर टेलिफिल्म
एवं अन्य टाॅक शोज़ प्रसारित

रचनात्मक लेखन के लिए इक़बाल सम्मान से सम्मानित
कहानी संग्रह ‘एक ख़्वाब जागती आंखों का‘ प्रकाशित
शोध कार्य पुस्तकाकार ‘अलखदास‘ प्रकाशन
इंडियन एम्बेसी स्कूल रियाद, सउदी अरब में आठ साल अध्यापन कार्य करने के बाद अब दिल्ली के जामिया सीनियर 
सैकेंडरी स्कूल में अध्यापक के पद पर कार्यरत)