बहिष्कार की अपीलों का फैलता मर्ज

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 21-08-2023
Economic Boycott Targeting Muslims
Economic Boycott Targeting Muslims

 

harjinderहरजिंदर

पिछले दिनों हरियाणा के नूंह और उसके आस-पास हुए दंगों के बाद एक महापंचायत हुई थी. महापंचायत में मुस्लिम समुदाय के आर्थिक बहिष्कार का ऐलान किया गया था. हालांकि जब इसकी काफी आलोचना हुई तो बहिष्कार का यह ऐलान वापस ले लिया गया, लेकिन चंद रोज बाद ही पलवल में कुछ संगठनों ने फिर से ऐसे ही बहिष्कार का फैसला कर लिया. वैसे इसके काफी पहले हरियाणा के ही हिसार की एक सभा में भी बहिष्कार की अपील की गई थी. हालांकि बजरंग दल के जिस नेता ने यह अपील की थी उनके खिलााफ मामला दायर कर दिया गया है.

ऐसा भी नहीं है कि यह सिर्फ हरियाणा में हो रहा है. ऐसी अपील की खबरें कोविड महामारी के दौरान पूरे देश से सुनाई दीं थीं. चंद रोज पहले उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में बहिष्कार के कुछ बैनर नजर आए थे. कुछ महीने पहले ऐसी ही एक अपील छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में की गई थी. इसमें मुसलमानों के अलावा इसाइयों के बहिष्कार के लिए भी कहा गया था.
 
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इस समय कर्नाटक से आ रही खबरें भी सांप्रदायिक आधार पर बहिष्कार के ही एक दूसरे रूप को सामने ला रही हैं.कर्नाटक में एक अभियान चलाया जा रहा है जिसमें मंदिरों का संचालन करने वाली संस्थाओं से कहा जा रहा है कि इन मंदिरों में धार्मिक मेलों के दौरान जो बाजार लगते हैं, उनकी दुकानों की नीलामी में मुसलमानों को भाग लेने से रोका जाए.
 
जबकि इन मेलों में सदियों से बिना किसी धार्मिक भेदभाव के दुकाने लगाई जा जाती रही हैं. कुछ समय पहले ही कर्नाटक सांप्रदायिक तनाव के एक लंबे दौर से गुजरा है. अब जब वहां कुछ हद तक शांति दिख रही है तो इस आग को भड़काने की कोशिशें भी जारी हैं.
 
इसी राज्य में कुछ महीने पहले इस पर एक अलग तरह की प्रतिक्रिया भी दिख चुकी है. कुछ सिरफिरे ने सोशल मीडिया पर एक मैसेज चलाया था कि रमजान के महीने में गैर-मुसलमानों का बहिष्कार किया जाए. हालांकि कुछ मुस्लिम संगठनों ने आगे बढ़कर इसके खिलाफ बयान जारी किए और यह अपील भी की कि लोग ऐसे मैसेज पर ध्यान न दें.
 
हमेशा से जब भी समाज में भाईचारा बढ़ाने की बात होती है, कहा जाता है कि सार्वजनिक स्तर पर ऐसे अवसर पैदा किए जाएं जिनमें विभिन्न समुदायों के लोग एक दूसरे से मिल सकें, उनके साथ इंटरैक्ट कर सकें. इससे वे एक दूसरे को समझेंगे, उनके पूर्वाग्रह खत्म होंगे और उनमें प्यार भी पनपेगा. पहले किसी भी सांप्रदायिक तनाव के बाद ऐसी ही चीजों पर जोर दिया जाता था.
 
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लेकिन अब बहिष्कार की अपील की जाती है, जो एक तरह उस नफरत को बरकरार रखने और अक्सर बढ़ाने की ही कोशिश होती है जो तनाव का कारण बनती है. यह रोग अब फैलता जा रहा है. इसके इलाज की कोशिश न तो देश के राजनीतिक दल कर रहे हैं और न ही सरकारें.
 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )