विभाजन के दर्द ने कितना मांजा हमें

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 14-08-2023
country partition movie gadar 2
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harjinderहरजिंदर

आज 14 अगस्त को तीसरा विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस है. तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिवस की घोषणा की थी. बाद में बाकायदा इसका गजट नोटीफिकेशन भी जारी हुआ. उसके बाद से यह सवाल लगातार बहुत से लोगों को मथता रहा है कि इस दिवस को कैसे मनाया जाए ?

कईं बार शब्दों की भी अपनी विडंबना होती है. खुशिया मनाई जाती हैं, दुख मनाए नहीं जाते. दुख अगर भयावह हों तो वे मनाए तो नहीं ही जा सकते. उन्हें बस कुरेदा जा सकता है.कुरेदना कोई अच्छी बात नहीं मानी जाती.फिर विभाजन की उन जहरीली स्मृतियों के साथ आज 76 साल बाद क्या बर्ताव किया जाना चाहिए ?
 
ऐसे स्मृतियां भी ढेर सारी हैं. जितने लोग विभाजन से सीधे प्रभावित हुए, जिन लोगों को जमीन पर खींची गई एक नई लकीर को पार करना पड़ा, जिन्होंने अपने सगे संबंधियों, दोस्तों वगैरह को खो दिया, जो हिंसा के शिकार हुए, वे औरतें जिनके साथ सबसे ज्यादा अत्याचार हुआ.
 
इन सबमें से हर एक के पास अपना एक अनुभव है, अपनी स्मृति है. ऐसे स्मृतियां सीमा के दोनों ओर बिखरी पड़ी हैं. इश्तियाक अहमद और उर्वशी बुटालिया जैसे कईं लोगों ने इन स्मृतियों को अपने-अपने तरीके से संकलित करने और किताबों की शक्ल देने का काम भी किया है.
 
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तो क्या इन स्मृतियों को लोगों की यादों में और किताबों में बंद रहने दिया जाए ? या फिर उन्हें झाड़ पोछकर निकाला जाए और अपने वर्तमान में कोई खास जगह दी जाए ? या उनकी जगह-जगह नुमाइश लगाई जाए ? उन जख्मों की नुमाइश जिनकी टीस समय के साथ धुंधली होती जा रही है.
 
हम हर साल स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं. गणतंत्र दिवस मनाते हैं. गांधी जयंती भी मनाते हैं. इतने साल में इन्हें मनाने की एक परंपरा भी विकसित हो गई है. स्कूलों, संस्थानों और सरकारी दफ्तरों को अब यह नहीं बताना पड़ता कि इस दिन वे क्या करें? विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस की अभी ऐसी कोई परंपरा नहीं बनी है, इसलिए इस पर सवाल पूछे जा सकते हैं. सबसे बड़ा सवाल यही है कि इस दिवस को किस भावना से मनाया जाए ?
 
इस बार जब विभाजन विभीषिका दिवस आया है तो इस मौके पर एक और बात यह हुई है कि सिनेमाघरों में सन्नी देओल की फिल्म गदर-2 रिलीज़ हुई है. दो दशक पहले जो गदर फिल्म आई थी, वह पूरी तरह से विभाजन विभीषिका पर ही थी.
 
नई फिल्म उसका सीक्वेल है. लोगों की भावनाओं को कैसे भुनाया जाए यह मुंबई की फिल्मी दुनिया वाले बहुत अच्छी तरह जानते हैं. इसका एक मतलब यह भी है कि लोगों में इसकी भावना इतनी तो है ही कि वह फिल्म को कामयाब बना सकती है.
 
लेकिन हमारा विभाजन विभीषिका समृति दिवस वैसा तो नहीं  हो सकता जैसी हमारी फिल्में होती हैं.उन स्मृतियों को और उनके सबक को किस तरह जिंदा रखा जाए इस पर एक समझ बनाना बहुत जरूरी है.
 
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हिंदी के मशहूर कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यानन अज्ञेय की एक कविता है- ‘दर्द सबको मांजता है, और जिन्हें वह मांजता है उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें.' हम इस स्मृति दिवस को किस तरह मनाते हैं यह इस पर निर्भर करेगा कि विभाजन के उस दर्द ने हमें कितना मांजा है ?
 
कितना परिपक्व बनाया है ? यह एक संकल्प दिवस हो सकता है, जिसमें हम यह शपथ लें कि आइंदा समाज को या समाज के किसी हिस्से को उस जहर को न पीना पड़े जिसे कभी लाखों करोड़ों लोगों को भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय पीना पड़ा था.अगर हम ऐसा कर सके तो फिर इस देश में न तो कोई मणिपुर होगा और न ही कोई नूंह होगा.
 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )