26 /11, प्रिंस बोरवेल और सुरंग हादसे में समानता

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 28-11-2023
Similarity between 26/11, Prince borewell and tunnel accident
Similarity between 26/11, Prince borewell and tunnel accident

 

hashmiमलिक असगर हाशमी

इंसानी फितरत है. जब समस्या आती है तभी कुछ सीखने की कोशिश करता है. विरले ही ऐसे होते हैं जो भविष्य की चिंता करते हैं और कुछ ऐसा कर जाते हैं कि दुनिया हमेशा उन्हें याद रखती है. इस सूची में हम तमाम वैज्ञानिकों को रख सकते हैं. इसी नजरिए से आप 26 /11, प्रिंस बोरवेल घटना और अब सुरंग हादसे देखें.

ये तीनों हादसे आपदा प्रबंधन के बेहतर उदाहरण हैं. आपदा भी ऐसी, जो इंसानी गलतियों की ओर इंगित करती है. अलग बात है कि ऐसे हादसों से हमने जो सीखा वह अब न केवल उदाहरण बन चुका है. दुनिया ऐसी मुसीबत आने पर हमारी ओर देखने भी लगी है.
 
तकरीबन 13 साल पहले हरियाणा के कुरुक्षेत्र के हलदेहेड़ी गांव में प्रिंस नामक एक नन्हा सा बच्चा खुले बोरवेल में गिर गया था. यह बोरवेल ऐसा था कि जलस्तर गिरने के बाद इसे बिना भरे छोड़ दिया गया था.
 
इसमें ही प्रिंस गिरकर अंदर फंस गया. उसे निकालने के लिए तकरीबन 52 घंटे का एक आपदा अभियान चला और भारी मशक्कत के बाद उसे जीवित निकाल लिया गया. इस घटना के बाद अब ऐसी घटनाएं न के बराबर होती हैं.
 
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प्रिंस अब ऐसा दिखता है

यदि होती भी हैं तो प्रिंस की घटना की तजुर्बा काम आते हैं और झटपट बच्चे को निकाल लिया जाता है. आम लोग भी अब जल स्तर गिरने के बाद बोलवेल के लिए खोदे गए गड्ढे बिना भरे नहीं छोड़ते.
 
इससे पहले देश को 26 /11 जैसा पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी हमला झेलना पड़ा. हालांकि इससे पहले भी भारत पर आतंकवादी हमले होते रहे हैं, पर तकरीबन 15 साल पहले मुंबई पर हुआ यह आतंकवादी हमला बेहद डरावना और चौंकाने वाला था.
 
पाकिस्तान के 10 हथियारबंद आतंकवादियों ने मुंबई के मुख्य स्थान पर न केवल खुले आम आतंक मचाया, बल्कि हमले में 166 लोग निर्ममतापूर्वक मारे भी गए थे. हरियाणा के मानेसर में एनएसजी और ब्लैक कैट से चर्चित नेशनल सेक्युरिटी गाॅर्ड का हेडक्वार्टर है. इसके एक हिस्से में नेशनल बम डाॅटा सेंटर स्थित है,
 
mumbai
 
जहां बम ब्लास्ट की घटनाओं का अध्ययन किया जाता है. प्रत्येक वर्ष इसकी स्थापना दिवस पर बस धमाकों को लेकर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किए जाते है. 26 / 11 हमले के कई वर्षों के बाद यहां ऐसे मौके पर जुटने वाले एक्सपर्ट इसी बात पर चर्चा किया करते थे कि ‘‘ सुरक्षा एजेंसियां जहां से सोचना बंद कर देती हैं, वहां से आतंकवादी सोचना शुरू करते हैं.’’
 
मगर अब ऐसा नहीं है. इस तरह की घटनाओं ने सुरक्षा एजेंसियों को बहुत कुछ सिखाया है. पहले के मुकाबले सुरक्षा एजेंसियां अब बेहद चौकस हो गई है. यहां तक कि उनके पास बेहद आधुनिक हथियार और सुरक्षा में काम आने वाले आला दर्जे के यंत्र भी आ गए हैं.
 
वाराणसी बम धमाके के समय बम डाॅटर सेंटर ने अपने अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में चिंता प्रकट की थी कि देश के हवाई अड्डों पर लगे स्कैनर इस दर्जे के नहीं हैं कि किसी संगीन सामान को पकड़ा जा सके.
 
ऐसे सेमिनार में सुरक्षा एजेंसियों के मिलने वाले कम बजट को लेकर भी सवाल उठाए जाते थे. मगर अब एयर पोर्ट पर अवैध और खतरनाक सामानों के पकड़े जाने की जिस तरह की खबरें आती हैं, वह बताती हैं कि न केवल हमारा स्कैनर आला तकनीक हुआ है.
 
हमारे सुरक्षा और सूचना तंत्र भी पहले की तुलना में बेहद मजबूत हुए हैं. 26 11 के समय में देश ने एहसास किया था कि हमारी बंदरगाहें और इससे लगते शहर असुरक्षित हैं. इसका लाभ उठाकर पाकिस्तान के आतंकवादी मामूली सी कश्ती पर सवार होकर मुंबई में घुस आए थे.
 
मगर इस वक्त ऐसा संभव नहीं. आईबी ने अलग से पोर्ट सिक्योरिटी की व्यवस्था की हुई है.अधिकारियों का कहना है कि अब मुंबई सहित देश के तमाम बंदरगाहों के शहर के चारों ओर एक सुरक्षा कवच तैयार कर दिया गया है, जो भविष्य में ऐसे किसी भी हमले को तेजी से विफल कर सकता है.
 
इसके तहत विशिष्ट फोर्स वन, त्वरित प्रतिक्रिया टीम, मुंबई पुलिस समुद्री इकाई, पुलिस के साथ मिलकर भारतीय नौसेना (आईएन) और भारतीय तटरक्षक (आईसीजी) द्वारा संयुक्त रूप से समुद्र और तटीय सुरक्षा में वृद्धि की गई है. यही नहीं
 
पुलिस बल को बेहतर और आधुनिक हथियार दिए गए. संबंधित विभागों से खुफिया जानकारी साझा की जाती है. उन्नत उपकरणों के साथ तटों की गहन निगरानी की जाती है. कंधार हाईजैक की घटना के बाद से ही हवाई जहाजों में ‘एयर मार्शल’ तैनात करने की परंपरा शुरू हुई है.
 
गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर आतंकी हमले के बाद ही हमने ब्लैक कैट कमांडो को विशेष विमान से किसी भी स्थान पर तुरंत पहुंचाने की व्यवस्था सीखी है.मुबई आतंकी हमले के बाद हमें देश के तमाम छोटे-बड़े शहरों में सीसीटीवी कैमरे का जाल बिछाने का ख्याल आया.
 
लंदन स्टेशन पर ब्लास्ट करने वालों को स्काॅट लैंड याॅर्ड पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे की मदद से पकड़ा था. इस मामले में हम भी इतने स्वावलंबी हो गए हैं कि छोटी से छोटी वारदात भी सीसीटीवी की मदद से छट-पट सुलझा ली जाती है.
 
पिछले एक दशक में सुरक्षा के क्षेत्र में व्यापक काम हुआ है. कई संदिग्ध तंजीमें वारदात करने से पहले की ध्वस्त कर दी गई. सीमा क्षेत्रों को छोड़ दें तो अब देश के अंदर आतंकवादी वारदातें न के बराबर होती हैं.
 
सुरक्षा एजेंसियां को कैसे हर दम चौकस रहना चाहिए यह हमने 26 11 से ही सीखा है. तब कहा गया था सुरक्षा एजेंसियां सुसुप्त अवस्था में थी, इसलिए पाकिस्तानी आतंकवादी मुंबई में हिंसा फैलाने में कामयाब रहे. अब ऐसी शिकायतें न के बराबर आती हैं.
 
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रही बात उत्तराखंड के उत्तरकाशी के सुरंग हादसे की तो इससे भी हम सीखने के दौर में हैं. हाल के वर्षों में देश में टनल का जाल बिछा है. जम्मू से कश्मीर के रास्ते में ऐसे तकरीबन 10 लंबे-लंबे सुरंगीय रास्ते बन रहे हैं.
 
देश की मेट्रो ट्रेन भी कई जगह टनलों से होकर चलती हैं. खुदाना खास्ता इन टनलों में कोई बड़ा हादसा हो जाए तो इससे कैसे जल्दी निपटा जा सकता है, ताकि कोई बड़ी कैचुएल्टी न हो ? यह अभी हमें सीखना है.
 
देश ने इसकी वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की है. शायद इसलिए भी कि कोलकाता मेट्रो की स्थापना से लेकर अब तक देश में ऐसी कोई बड़ी दुर्दघटना नहीं हुई है. मगर सब कुछ भाग्य भरोसे नहीं चलता.
 
हिकमत अमली जरूरी है. दिल्ली-एनसीआर के कई हिस्से सिस्मिक जोन तीन और चार में आते हैं. यानी भूकंप के लिहाज से ये बेहद संवेदनशील क्षेत्र हैं. इसी इलाके में अधिक मेट्रो ट्रेन दनदनाती फिरती हैं.
 
हमें समय रहते इसके बारे में सोचना और सीखना होगा. उत्तराखंड का सुरंग हादसा टनल के निर्माण में सुरक्षा और बचाव की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं करने का नजीता है. यही वजह है कि अब तक बचाव के सारे उपाय बेकार गए हैं. यहां तक कि विदेशी एक्पर्ट इस मसले को अब तक सुलझा नहीं पाए हैं. ऐसे में हमे सीखने की प्रक्रिया और तेज करनी होगी.
 
( लेखक आवाज द वाॅयस हिंदी के संपादक हैं)