बांग्लादेशः शाहबाग चौराहे का जोरदार नारा 'जॉय बांग्ला'

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] • 1 Years ago
शाहबाग प्रदर्शन की फाइल तस्वीर
शाहबाग प्रदर्शन की फाइल तस्वीर

 

सलीम समद

5 फरवरी 2013 को, अचानक शाहबाग चौराहा जीवंत हो गया क्योंकि बांग्लादेश के क्रूर जन्म के दौरान युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराध के लिए दोषी ठहराए गए युद्ध अपराधियों को कड़ी सजा दिलवाने की मांग करते हुए हजारों गुस्साए नौजवान सड़कों पर उतर आए.

बांग्लादेशी राष्ट्रवाद के युद्धघोष 'जॉय बांग्ला' के पुनरुद्धार के लिए याद किए जाने वाले गण जागरण मंच की दसवीं वर्षगांठ महत्वपूर्ण थी. इस्लामवादियों को दी गई उम्रकैद की सजा का विरोध करने के लिए जीवन के सभी क्षेत्रों के हजारों युवा सामने आए हैं.

पाकिस्तान के सशस्त्र बलों के कब्जे वाले बांग्लादेश में जन्मे गुर्गों पर मुकदमे और सजा के मंच ने लाखों युवाओं को आज़ादी की लड़ाई के बाद पैदा होने के बावजूद आत्मसात कर लिया. वे यह नहीं भूले कि इन युद्ध अपराधियों ने अपनी मातृभूमि के साथ क्या सुलूक किया है.

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लोकप्रिय धारणा बताती है कि बांग्लादेश एक रूढ़िवादी सुन्नी मुस्लिम बहुसंख्यक है. चौक पर हजारों युवतियों की हाथापाई इस बात को झुठलाती है. महिलाएं आधी रात के बाद अपने बच्चों को गोद में या कंधे पर लिए बाहर निकली थीं.

ढाका में विरोध के केंद्र शाहबाग चौराहे पर युवाओं की गगनभेदी दहाड़ विस्मयकारी है. मुख्य रूप से इसलिए कि एक लाख से अधिक युवाओं ने दिन और रात में "जॉय बांग्ला" (लॉन्ग लाइव बांग्लादेश) का नारा लगाया.

जॉय बांग्ला 1971 के खूनी मुक्ति संग्राम के दौरान मुक्ति बाहिनी (बांग्लादेश लिबरेशन फोर्स) का युद्ध नारा था.1975 में स्वतंत्रता नायक शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद जॉय बांग्ला नारा वर्जित हो गया.

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पत्रकार और लेखक शम्सुद्दीन अहमद ने मुझे बताया, "आज मैं सड़कों पर बिना किसी डर, पूर्वाग्रह या संकोच के यह नारा लगाता हूं." "देश आजाद होने के 40 से अधिक वर्षों में मैंने वह नारा नहीं सुना है."

बांग्लादेशी राष्ट्रवाद के युद्धघोष का पुनरुत्थान महत्वपूर्ण है. बांग्लादेश अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण द्वारा एक इस्लामवादी युद्ध अपराधी को उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के विरोध में हजारों की संख्या में जीवन के सभी क्षेत्रों के युवा शामिल हुए हैं.

यदि ट्रिब्यूनल कायम रहता है, तो बांग्लादेश राजनीतिक इस्लाम को एक बार और सभी के लिए खत्म करने वाला दुनिया का पहला मुस्लिम राष्ट्र बन सकता है. यह एक शैतान है जिसे खत्म करने की आवश्यकता है. और इसीलिए वे शाहबाग में थे.

मार्च 1971 में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत इसके पूर्ववर्ती पूर्वी प्रांत में हुई थी. नौ महीने बाद, लाखों मुसलमानों, हिंदुओं, ईसाइयों और बौद्धों और आदिवासियों के लिए एक जैसे खूनी भीषण युद्ध के बाद, बांग्लादेश के नए राष्ट्र का उदय हुआ.

पाकिस्तान की लुटेरी सेना ने अपने स्थानीय गुर्गों के साथ नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध और स्वतंत्रता संग्राम के नौ महीनों तक जबरन अपहरण किया, लगभग 4.5 लाख महिलाएं युद्ध के हथियार के रूप में बलात्कार की शिकार हुईं और बुद्धिजीवियों की हत्या और अपहरण कर लिया गया.

बांग्लादेश युद्ध के इतिहासकार प्रो. मुंतसिर मामून ने तीस लाख लोगों के नरसंहार का दावा किया है. ये वे लोग थे जिनका एकमात्र अपराध बांग्लादेश की स्वतंत्रता में विश्वास करना था. नरसंहार के लिए लूटपाट करने वाली पाकिस्तानी सेना और उनके गुर्गों को दोषी ठहराया गया था.

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किसानों और छात्रों ने पाकिस्तान के कुलीन सैन्य बलों और उनके सहायक बलों से लड़ाई लड़ी, जो देश में बंगाली मुस्लिम आबादी के बीच से बड़े पैमाने पर भर्ती हुए थे.उनके हौसले पस्त नहीं हुए और हमने इन गुर्गे, युद्ध अपराधों के सहयोगियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की है. चालीस साल तक हमारी आवाज नहीं सुनी गई. लेकिन अधिकांश ने नई पीढ़ी को कम आंका.

उनकी कर्कश पुकार सिर्फ शाहबाग चौराहे तक ही नहीं सुनाई देती. यह सोशल मीडिया, ट्विटर और फेसबुक पर गूँजता है. यह न्याय की मांग करने वाली एक क्रोधित आवाज है.अरब वसंत में, विरोध सरकार विरोधी थे. अरब प्रदर्शनकारी का उद्देश्य लोकतंत्र, स्वतंत्रता और न्याय प्राप्त करना था. बांग्लादेश में, परिदृश्य नाटकीय रूप से भिन्न है.

प्रदर्शनकारी की खोज 1971 में किए गए अपराधों के लिए न्याय की तलाश है, जब बांग्लादेश, पूर्व में पाकिस्तान का पूर्वी प्रांत, अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कर चुका था. भीड़ घंटों तक कोरस, कविता पाठ और संक्षिप्त भाषणों को धैर्यपूर्वक सुनती है. हजारों बार-बार नारे लगाते हैं.

आंदोलन के आसपास के विवाद और मिथकों के बावजूद आज गोनो जगरोन मोंचो, जो लाखों युवाओं को बांधता है, एक इतिहास है. अपने कठिन जन्म के बयालीस साल बाद, बांग्लादेश ने शाहबाग स्क्वायर में एक पुनर्जन्म देखा.

सलीम समद, एक पुरस्कार विजेता स्वतंत्र पत्रकार, मीडिया अधिकारों के रक्षक, अशोक फैलोशिप और हेलमैन-हैममेट पुरस्कार के प्राप्तकर्ता हैं. उनका ट्विटर हैंडल @saleemsamadहै.