अजमेर शरीफ की पवित्रता का संरक्षण: न्याय और एकता का आह्वान

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 30-11-2024
Preserving the sanctity of Ajmer Sharif: A call for justice and unity
Preserving the sanctity of Ajmer Sharif: A call for justice and unity

 

salmanहाजी सैयद सलमान चिश्ती

अजमेर स्थित सुल्तान-उल-हिंद ख्वाजा गरीब नवाज (आरए) की 11वीं शताब्दी की सूफी दरगाह शरीफ, जो दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए शांति, बिना शर्त प्यार और आध्यात्मिक शरण का प्रतीक रही है, एक पवित्र स्थल है.यह दरगाह न केवल भारत के गौरवमयी इतिहास का हिस्सा है, बल्कि इसकी समन्वित आध्यात्मिक विरासत का जीवंत प्रतीक भी है.सदियों से, यह समावेशिता, सार्वभौमिक भाईचारे और मानवता की सेवा के चिश्ती सूफ़ी दृष्टिकोण का प्रमाण रही है.

हालाँकि, हाल के दिनों में, कुछ नफरत फैलाने वाले और सांप्रदायिक भड़काने वाले तत्वों द्वारा इस पवित्र स्थल को खुलेआम चुनौती दी जा रही है.दरगाह शरीफ के संदर्भ में अजमेर की निचली अदालत में एक झूठी और भ्रामक याचिका का स्वीकार किया जाना, कानूनी और संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करके विभाजनकारी एजेंडों को बढ़ावा देने की एक नई घटिया कोशिश को दर्शाता है.

यह कृत्य न केवल इस प्रतिष्ठित दरगाह को बदनाम करता है, बल्कि भारत के सांप्रदायिक सद्भाव और सामाजिक ताने-बाने को भी गंभीर खतरे में डालता है.ख्वाजा गरीब नवाज (र.अ.) ने अपनी शिक्षाओं और जीवन के माध्यम से समावेशिता और प्रेम पर बल दिया.

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उनकी दरगाह हमेशा से ही जाति, पंथ या धर्म से परे सभी साधकों के लिए एक शरणस्थल रही है.आज, इसी समावेशिता पर ऐसे तत्वों और समूहों द्वारा हमला किया जा रहा है, जो धार्मिक भावनाओं का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश में अजमेर शरीफ और पूरे भारत की पवित्रता को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

हाल ही में मीडिया रिपोर्ट्स में यह सामने आया कि कैसे नफरत से प्रेरित व्यक्तियों के एक समूह ने ऐतिहासिक विकृतियों का झूठा आरोप लगाते हुए एक निराधार और तुच्छ याचिका दायर की.सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस याचिका पर बिना उचित जांच-पड़ताल के विचार किया गया और न्याय और गुण-दोष के सिद्धांतों की पूरी तरह अनदेखी की गई.

इस तरह की हरकतें हमारी न्यायिक प्रणाली की विश्वसनीयता को कमजोर करती हैं और हमारे लोकतंत्र में निहित संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन करती हैं.यह घटना अकेली नहीं है, बल्कि यह एक बड़े पैमाने पर फैल रही प्रवृत्ति का हिस्सा है, जहां सांप्रदायिक ताकतें सामाजिक कलह फैलाने के लिए ऐतिहासिक और धार्मिक आख्यानों का दुरुपयोग कर रही हैं.

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इन याचिकाओं और झूठे आरोपों के पीछे का मकसद समुदायों को विभाजित करना और श्रद्धेय सूफी दरगाहों की विरासत को कलंकित करना है.नफरत फैलाने वाले वकील और समझौता करने वाले न्यायिक फैसले इस खतरनाक प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं.न्याय, सत्य और सद्भाव के मूल्यों की बजाय, ये लोग सांप्रदायिक संघर्ष को भड़काने का कार्य कर रहे हैं.

इस तरह की गतिविधियों के दूरगामी परिणाम होंगे, न केवल अजमेर शरीफ के लिए, बल्कि देश की सामूहिक अंतरात्मा के लिए भी.इस कठिन समय में, हम ख्वाजा गरीब नवाज़ (र.अ.) और चिश्ती सूफी संप्रदाय की शाश्वत शिक्षाओं से शक्ति प्राप्त करते हैं.हमें पैगंबर मूसा (मूसा अ.स.) की कहानी याद आती है, जिन्होंने एक असंभव परिस्थिति का सामना करते हुए, पूरी उम्मीद और समर्पण के साथ अल्लाह की ओर रुख किया.

तवक्कुल (अल्लाह पर भरोसा) के इस उदाहरण ने न केवल एक चमत्कारी समाधान प्रदान किया, बल्कि विश्वास और लचीलेपन के महत्व को भी उजागर किया.इसी प्रकार, हमें भी सत्य और न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता में दृढ़ रहना चाहिए.

अजमेर शरीफ़ की पवित्रता और उसकी आध्यात्मिक विरासत को न तो मनगढ़ंत कहानियों से धूमिल किया जा सकता है और न ही विभाजनकारी एजेंडों से.हम अल्लाह की इच्छा पर विश्वास करते हैं और ख्वाजा गरीब नवाज़ (र.अ.) की दिव्य शिक्षा से शक्ति प्राप्त करते हैं, जो आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है.

हम भारत के सम्माननीय सर्वोच्च न्यायालय और हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से विनम्र अपील करते हैं कि वे उन लोगों के खिलाफ कठोर कदम उठाएं, जो नफरत और झूठी जानकारी फैलाने के लिए कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग करते हैं.हमारे देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है.

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न्यायपालिका को, एक न्याय के संरक्षक के रूप में, संवेदनशील धार्मिक मामलों से जुड़े मामलों में सावधानी और तत्परता बरतनी चाहिए.सांप्रदायिक तनाव को रोकने के लिए, बिना किसी योग्यता या दुर्भावना से प्रेरित तुच्छ याचिकाओं को तुरंत खारिज किया जाना चाहिए.हमारे नेताओं की भी यह जिम्मेदारी है कि वे भारत की आध्यात्मिक संस्कृति की पहचान बनाए रखें और सद्भाव को बढ़ावा दें.

झूठ फैलाने वालों से, हम आपसे ख्वाजा गरीब नवाज़ (र.अ.) की आध्यात्मिक विरासत पर पुनः विचार करने का आग्रह करते हैं.उनका संदेश था बिना शर्त प्यार, करुणा और मानवता की सेवा.विभाजन और घृणा फैलाने वाली कथाएँ उनकी शिक्षाओं के ठीक विपरीत हैं और अंततः हमारे समाज के ताने-बाने को नुकसान पहुँचाएँगी.

अजमेर शरीफ़ के प्रति श्रद्धा रखने वाले लाखों भक्तों और साधकों से, हम आपसे इस पवित्र स्थल की पवित्रता को बनाए रखने में एकजुट होने का आह्वान करते हैं.आइए हम नफरत का मुकाबला प्यार से, झूठ का मुकाबला सत्य से और विभाजन का मुकाबला एकता से करें.मिलकर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि शांति और भाईचारे का शाश्वत संदेश आने वाली पीढ़ियों तक गूंजता रहे.

अजमेर शरीफ़ केवल एक ऐतिहासिक स्थल नहीं है; यह भारत की आध्यात्मिक धरोहर का जीवंत उदाहरण है.इस पवित्र विरासत के संरक्षक के रूप में, हमारा कर्तव्य है कि हम इसे उन लोगों से बचाएँ जो इसे बदनाम करना और विभाजित करना चाहते हैं.हम न्याय, करुणा और विविधता में एकता के मूल्यों को बनाए रखते हुए ख्वाजा गरीब नवाज़ (र.अ.) की शिक्षाओं का सम्मान करें.

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ईश्वरीय प्रेम का प्रकाश इन कठिन समय में हमारा मार्गदर्शन करेऔर हम इसे शांति और सद्भाव के साथ फैलाने में सक्षम हों.

( लेखक  गद्दी नशीन, दरगाह अजमेर शरीफ, अध्यक्ष, चिश्ती फाउंडेशन हैं )