मौलाना महमूद मदनी और आमिर इदरीसी की सकारात्मक पहल

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 22-05-2022
मौलाना महमूद मदनी और आमिर इदरीसी की सकारात्मक पहल
मौलाना महमूद मदनी और आमिर इदरीसी की सकारात्मक पहल

 

प्रो. अख्तरुल वासे
 
एक ऐसे समय में जब कुछ शरारती तत्व हमारे प्यारे देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने ‎को टुकड़े-टुकड़े करना चाहते हैं, ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब किसी मस्जिद, मकबरे या ‎दरगाह के खिलाफ उपद्रव न होता हो. मुसलमानों से ज्यादा हमारे देशवासी इसको लेकर ‎चिंतित हैं.

ऐसे समय में मुसलमानों का भी चिंतित होना एवं उनमें बेचैनी पैदा होना ‎स्वाभाविक है, लेकिन यह अच्छी बात है कि मुसलमान धैर्य नहीं खो रहे हैं. अधिकांश ‎लोग इस संबंध में सराहनीय किरदार अदा कर रहे हैं.
 
इसी परिप्रेक्ष्य में जमीयत ‎उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने एक बहुत ही समझदारी भरी ‎अपील की है, जिसमें उन्होंने कहा हैः‎
1. ज्ञानवापी मस्जिद के मुद्दे को सड़कों पर न लाया जाए और सभी प्रकार के ‎सार्वजनिक प्रदर्शनों से बचा जाए.

‎2. इस मामले में मस्जिद प्रबंधन समिति एक पक्ष के रूप में अलग-अलग अदालतों ‎में मुकदमा लड़ रही है. उनसे उम्मीद है कि वे इस मामले को अंत तक मजबूती से लड़ेंगे. ‎देश के अन्य संगठनों से आग्रह करते हैं कि वे सीधे तौर पर हस्तक्षेप न करें. जो भी मदद ‎करनी हो प्रबंधन समिति के माध्यम से ही की जाए.

‎3. विद्वानों, वक्ताओं, प्रचारकों और टीवी दर्शकों से आग्रह है कि वे इस मुद्दे पर ‎टीवी बहस और चर्चा में भाग लेने से बचें. मामला कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए ‎पब्लिक डिबेट में भड़काऊ बहस और सोशल मीडिया पर भाषण देना किसी भी तरह से ‎कौम और देश हित में नहीं है.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद महमूद असद मदनी की इस ‎अपील का हम तहेदिल से समर्थन करते हैं. हमारा दृढ़ विश्वास है कि मुस्लिम विरोधी ‎‎शरारती तत्वों को हराने का इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है.
 
इस समय देश और ‎मुसलमानों को बंधक बनाने की जो कोशिशें चल रही हैं और सरकार जिस तरह ‎मूकदर्शक बनी हुई है. उसका मकसद यही है कि मुसलमान उग्र हो जाएं. अपना आपा ‎‎खो दें ताकि शरारती तत्वों और सरकार को मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई का मौका मिल ‎जाए.‎
 
जहां तक ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा दोबारा उठाए जाने की कोशिशों का प्रश्न है, सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले दो फैसलों में साफ कर दिया कि धार्मिक स्थलों का ‎संरक्षण अधिनियम 1991 यथावत है और उसके होते हुए किसी भी धार्मिक स्थल पर सवाल ‎नहीं उठाया जा सकता.
 
जो भी हो, हम यह नहीं समझते हैं कि 1991 के कानून के लागू ‎होने के सात साल बाद, इस देश में पहली भाजपा सरकार बनी, जिसमें अटल बिहारी ‎वाजपेयी प्रधानमंत्री और लाल कृष्ण आडवाणी उप प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री थे, लेकिन उन्होंने ‎कभी कानून का उल्लंघन नहीं किया और 2004 में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने किसी ‎को भी इस तरह का हंगामा करने और माहौल खराब करने की अनुमति नहीं दी, जैसा कि ‎हम आज देख रहे हैं.
 
masjid
 
हमारा यह दृढ़ विश्वास है कि ऐसे सभी प्रयासों को केवल धैर्य रखने ‎से ही विफल किया जा सकता है. इसीलिए मौलाना महमूद असद मदनी की सलाह ‎अच्छी और बेहतर है.
 
‎एक ऐसे वक्त में जब देश में कहीं न कहीं उपर्युक्त शरारत का माहौल है, ए.एम.पी. ‎‎(एसोसिएशन ऑफ मुस्लिम प्रोफेशनल्स) के संस्थापक आमिर इदरीसी ने पूरे भारत से कुछ ‎गैर सरकारी संगठनों को दिल्ली आमंत्रित किया कि वह आएं.
 
एक साथ बैठ कर सोचें कि ‎किस तरह से इंजीनियरिंग और मेडिकल आदि में प्रवेश के लिए जो कोचिंग कराई जा रही ‎है उसको आपसी सहयोग से ज्यादा बेहतर एवं फायदेमंद बनाया जाए.
 
आमिर इदरीसी ‎डिग्री के हवाले से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं. पेशे से एक व्यवसायी हैं, लेकिन एक ‎समाजसेवी के रूप में ईमानदारी और जुनून से भरे हुए हैं. उन्होंने 2008 में यह फैसला ‎किया कि वह गैर सरकारी संगठनों और सामाजिक नेताओं के साथ मौलवियों और ‎मदरसों के बीच समन्वय के लिए काम करेंगे,
 
ताकि मुसलमानों की शैक्षणिक, आर्थिक और ‎सामाजिक स्थिति में सुधार किया जा सके. उन्होंने एक बड़ा नेटवर्क बना भी लिया जिसके ‎तहत वह रोजगार मेलों का आयोजन करते हैं और अब तक 30,000 से ज्यादा जरूरतमंद ‎लोगों को अच्छी कंपनियों में रोजगार दिला चुके हैं.
 
इसके अलावा वह अब तक ए.एम.पी के ‎‎द्वारा 5,000 से अधिक युवाओं को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करके बेहतर आर्थिक जीवन के ‎अवसर पैदा करने में सफल हुए हैं.
 
उन्होंने अब तक कई जॉब फेयर ऑनलाइन और ‎ऑफलाइन पूरे देश में आयोजित किए हैं. उन्होंने एक काम वह भी किया जो आज के दौर ‎में सबसे जरूरी है, लेकिन हम सब इस पर ध्यान नहीं देते.
 
वह है एक ऐसा डाटाबेस जिससे ‎‎यह पता चले कि किस तरह की डिग्री रखने वाले कितने नौजवान कहां-कहां बेरोजगार हैं.फिर उनको सही प्रकार से मार्गदर्शन किया जा सके. इसके अलावा ए.एम.पी. ने जिस ‎तरह से जागरूकता अभियान चलाया और विशेष रूप से कोरोना काल में जिस तरह लोगों ‎के काम आए और उनकी मदद की वह भी सराहनी एवं काबिले तारीफ है.
 
बात कहां से शुरू हुई और कहां जा पहुंची. बात यह थी कि ए.एम.पी. ने एक ऐसे ‎माहौल में जब मुसलमान और इस्लाम दोनों को निशाना बनाए जा रहे हों, सड़कों पर आने, ‎नारेबाजी करने, अखबारों में विरोधी बयानों को छपवाने के बजाय इस बात को प्राथमिकता ‎दी कि मुस्लिम लड़के और लड़कियां किस तरह से ज्यादा से ज्यादा संख्या में अच्छी से ‎अच्छी कोचिंग लेकर मेडिकल, इंजीनियरिंग, बिजनेस मैनेजमेंट, लॉ और साइंस के सर्वश्रेष्ठ ‎संस्थानों में प्रवेश पा सकें,,
 
अच्छी शिक्षा ही वह कुंजी है जो वास्तव में हमारे जीवन ‎को सांसारिक खुशियां प्रदान कर सकती है. हमारे लिए प्रतिष्ठा और गौरव का स्रोत ‎बन सकती है.
 
‎(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज) हैं.)‎