विपक्ष की सियासत का मतलब सचाई पर परदा डालना नहीं

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 25-07-2022
असदुद्दीन ओवैसी
असदुद्दीन ओवैसी

 

मलिक असगर हाशमी

नागपुर के एक साहब हैं, जो वेस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड के उच्च पद से सेवानिवृत होने के बाद एक गैर-सरकारी संगठन से जुड़कर मुस्लिम युवाओं की शिक्षा और उनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए पिछले चार-पांच साल से काम कर रहे हैं.

उन्हें जिम्मेदारी दी गई है मुंबई और पटना के हज हाउस में छात्रों के लिए चल रहे कोचिंग संस्थान की तरह एक ऐसा ही संस्थान नागपुर में स्थापित करने की. इस योजना को सिरे चढ़ाने के लिए वह अब तक सड़क परिवहन मंत्री तथा नागपुर के सांसद नितिन गडकरी एवं मुंबई-पटना के हज हाउस में कोचिंग इंस्ट्यूट के प्रबंध कमिटी के पदाधिकारियों से मिल चुके हैं और अब नागपुर में भी ऐसा ही एक कोचिंग इंस्टीट्यूट स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है.

इस तरह के कोचिंग संस्थानों में मुस्लिम छात्रों को खास तौर से तैयार किया जाता है ताकि वे राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में सफल होकर कामयाब जीवन जी सकें. ऐसी परीक्षाएं पास कर हज हाउस से निकलने वाले अब तक सैंकड़ो बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर या बड़े अधिकारी बन चुके हैं.

इन बातों की चर्चा यहां पर इसलिए क्योंकि हाल ही में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का एक बयान आया है, जिसमें एक आरटीआई के हवाले से आरोप लगाया गया कि भारत सरकार स्वनिधि योजना के अंतर्गत रेहड़ी और पटरी पर दुकान लगाने वालों को लोन देने में भेद-भाव कर रही है.

आरोप लगाया गया है कि केंद्र सरकार ने 32 लाख लोगों को इस योजना के तहत लोन दिए, जिसमें मुसलमानों का प्रतिशत मात्रा 0.0102 है. यानी 32 लाख कर्जधारकों में से मुस्लिम लाभार्थियों की संख्या केवल 331 है.

ओवैसी का यह आरोप इसलिए बेहद गंभीर हो जाता है कि उनके बयानों से ऐसा आभास होता है कि केंद्र की मोदी सरकार जब पटरी पर दुकान लगाने वाले निम्न आय वर्ग के मुस्लिमों को फलने-फूलने नहीं दे रही है तो बाकी क्षेत्र में कितनी बदतर स्थिति होगी. क्या ऐसा ही है?

यदि ओवैसी का इल्जाम वाकई सही है तो फिर पटना-मुंबई के हज हाउस या नागपुर के कोचिंग सेंटर में मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई का कोई मतलब नहीं रह जाता.

लेकिन सरकार को क्लीन चिट देने के लिए नहीं, बल्कि इस आरोप की जांच के लिए यह खबर बेहद जरूरी हो जाती है. गलत को गलत, और सही को सही कहना एक जागरूक नागरिक की जिम्मेदारियों में शुमार है.

ओवैसी हमेशा से भड़काऊ राजनीति करते रहे हैं. जमीनी स्तर पर मुसलमानों के मुद्दे को लेकर लड़ने की बजाए चुनावी मंचों और सोशल मीडिया पर भड़काऊ बयान देते रहे हैं. उनके ऐसे ही बयानो का नतीजा है कि ऐन चुनाव के समय जबर्दस्त धार्मिक ध्रुवीकरण हो जाता है और मुस्लिम वोटर अपने उन उम्मीदवारों को जिताकर विधानसभा या लोकसभा नहीं भेज पाते, जिसे भेजना चाहते हैं.

हकीकत यह है कि नरेंद्र मोदी के पिछले आठ वर्षों के कार्यकाल में उनपर ऐसा कोई बड़ा आरोप नहीं लगा कि मुलमानों को आगे बढ़ने से रोका गया हो. नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी एक खास तरह की राजनीति करती है, जिसमें वह खुद को एक खास वर्ग का हितैषी दिखना चाहती है. इस चक्कर में वह सियासत में अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों को खास तरजीह देती नहीं दिखना चाहती.

जबकि हकीकत यह है कि पिछले आठ सालों में मोदी सरकार में किसी भी क्षेत्र में मुसलमानों को आगे बढ़ने से नहीं रोका गया. बल्कि, कई योग्य मुस्लिम अधिकारी मोदी सरकार में खास स्थान पर बने हुए हैं.

फ्रांस से युद्धक विमान राफेल भारत लाने की जिम्मेदारी एक मुसलमान ने ली थी. सरकार में सुरक्षा के क्षेत्र में लगे एक उच्चाधिकारी का कहना है कि मोदी सरकार में तीनों सेनाओं में मुसलमानों की जितनी भर्तियां हुईं, इससे पहले किसी सरकार में नहीं हुईं. मगर इसे जाहिर कर मोदी या भाजपा अपने जनाधार में सेंध लगाना नहीं चाहती. इसलिए इसका सार्वजनिक प्रचार करने से बचती है.

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के दौरान ही यह खुलासा हुआ था कि सरकारी आवासीय योजना का लाभ जिनता दूसरे समुदाय के गरीबों को मिला, उतना ही मुसलमानों को भी मिला. बल्कि इस बात का चुनाव के दरमियान बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा और मुस्लिम मोर्चा के माध्यम से जोर-शोर से प्रचार कराया गया था.

ओवैसी के आरोप में यदि दम होता तो क्या यूपी में मुस्लिमों को सरकारी आवास मिलना संभव था? मुसलमानों की तरफ से क्या प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना में गैस कनेक्शन के बंटवारे में कोई बड़ी शिकायत सामने आई है?

ओवैसी साहब को यह भी याद दिलाने की जरूरत है कि हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अल्पसंख्यकों के कल्याण और उत्थान के लिए 15 सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की है. इसके तहत मोदी सरकार का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा, आर्थिक सशक्तिकरण के अवसरों को बढ़ाना, बुनियादी ढांचा विकास योजनाओं में उनके लिए उचित हिस्सेदारी सुनिश्चित करना और सांप्रदायिक वैमनस्य और हिंसा की रोकथाम और नियंत्रण करना है.

मुसलमान देश की दूसरी बड़ी आबादी है और अल्पसंख्यकों में 71 प्रतिशत मुसलमान हैं. ऐसे में क्या कोई सरकार इतनी बड़ी आबादी को नजरअंदाज कर सकती है या हाशिए पर धकेल सकती है?

देश के मुसलमानों के साथ सबसे बड़ी समस्या यही है कि सियासतदानों ने केवल उनकी भावनाओं से खेला है. कभी उन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया. ओवैसी भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं. आज तक मुसलमानों की बुनियादी सवाल पर सड़क पर लड़ने के लिए आगे नहीं आए हैं. मुसलमानों के जज्बात भड़काकर हमेशा वोट बटोरने की सियासत की है.

इनकी इसी खोखली सियासत का नतीजा है कि बिहार में एआईएमआईएम के पांच विधायकों में से चार राजद में शामिल हो गए. जज्बाती सियासत ज्यादा टिकाऊ नहीं होती. जो लोग आज उनके पीछे नारे लगाते घूम रहे हैं, कल को वास्तविकता का पता चलने का एहसास होते ही कांग्रेस की तरह मतदाता उन्हें भी दरकिनार कर देंगे.