हमारा स्वतंत्रता संग्राम और मुसलमान

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 25-08-2022
हमारा स्वतंत्रता संग्राम और मुसलमान
हमारा स्वतंत्रता संग्राम और मुसलमान

 

wasayप्रो. अख़्तरुल वासे

आज़ादी की लड़ाई में जहां एक तरफ कांग्रेस के साथ ख़ुदाई-ख़िदमतगारों (ख़ान ‎अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान का संगठन) ने अहम भूमिका निभाई, वहीं दूसरी तरफ़ मजलिस ‎अहरार, नेशनल कांफ्रेंस, मौलाना मुहम्मद अली जौहर, हकीम अजमल ख़ान, डॉ. ‎मुख़्तार अहमद अंसारी ने असाधारण भूमिका निभाई.

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को ‎‎1923में दिल्ली में कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष और फिर कांग्रेस के सबसे लंबे ‎समय तक अध्यक्ष रहने का सम्मान मिला. जब आज़ादी मिल गई तो अंग्रज़ों ने इस मुल्क ‎को जहां छोड़ा था वहां से इसको आगे बढ़ाने और हिंदुस्तानियों को नई ऊंचाइयों पर ले ‎जाने के लिए जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, ‎डॉ अंबेडकर, राज गोपालाचार्य, बाबू राजेंद्र प्रसाद और रफ़ी अहमद क़िदवई ने एक ऐसी ‎‎योजना तैयार की जो भारत को बहुत आगे ले गई.

हालांकि अचानक महात्मा गांधी की ‎‎शहादत, 1948, 1965, 1971और 1999में पाकिस्तान के साथ भारत के युद्ध और चीन की ‎‎धोखेबाज़ नीति के तहत 1961में भारत के साथ युद्ध ने हमारे विकास के बढ़ते क़दमों को ‎रोकने की कोशिश की, लेकिन हमारे नेतृत्व को सलाम, और उनसे भी ज़्यादा उन भारतीयों ‎की महानता को और अधिक सलाम, जिन्होंने देश के निर्माण और विकास के सपने को हर ‎नाज़ुक दौर से गुज़रने के बावजूद कभी भी बिखरने नहीं दिया.

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सबसे पहली बात तो यह ‎हुई कि अगर कुछ आवाज़ें उठी भी होंगी कि भारत को पाकिस्तान जैसा धार्मिक राज्य ‎बनाया जाए, लेकिन एक बार फिर सलाम महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार ‎पटेल, बाबू राजेंद्र प्रसाद, सी. राज गोपालाचार्य और डॉ. अम्बेडकर को, जिन्होंने इन ‎आवाज़ों पर कान नहीं धरे और न ही भारत को एक धार्मिक राज्य बनने दिया बल्कि इसके ‎विपरीत भारत को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में विकसित किया.

दूसरी ओर, इस ‎स्वतंत्रता के परिणामस्वरूप, भारतीय मुसलमानों को भी एक नया और सुखद अनुभव प्राप्त ‎हुआ. अब तक वे इस देश में या तो शासक या शासित थे, लेकिन अब नए और स्वतंत्र ‎भारत में वे न तो शासक थे और न ही शासित, बल्कि सत्ता में समान भागीदार थे.

‎विभाजन के बाद उन्होंने जो धैर्यपूर्ण वातावरण पाया, उसमें उन्होंने बड़े सब्र और विनम्रता के ‎साथ नई स्थिति के अनुकूल होने का भरसक प्रयास किया. मुसलमानों के नेता अपने देश में ‎राष्ट्रविहीनता की भावना से बाहर अपने सह-धर्मियों की हिम्मत और साहस बंधाने में लगे ‎हुए थे, उन्हें प्रोत्साहित किया और सांप्रदायिक दंगों के मौक़ों पर फायर ब्रिगेड के रूप में ‎भी काम किया.‎

आज़ाद हिंदुस्तान में तीन मुस्लिम राष्ट्रपति, तीन उप राष्ट्रपति, एक कैबिनेट सचिव, ‎‎एक गृह सचिव, एक विदेश सचिव, एक निदेशक ख़ुफ़िया ब्यूरो, एक वायु सेना प्रमुख, सुप्रीम ‎कोर्ट के चार मुख्य न्यायाधीश, दो मुख्य चुनाव आयुक्त. कश्मीर में तो सभी लेकिन बिहार, ‎महाराष्ट्र, राजस्थान, असम, मणिपुर, पांडिचेरी और केरल में एक-एक मुस्लिम मुख्यमंत्री ‎रहे हैं.

इसके अलावा न जाने कितने गवर्नर, केंद्र और राज्यों में मंत्री रहे. उच्चतम ‎न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश एक मुस्लिम जस्टिस फातिमा बीवी बनीं, जबकि ‎भारतीय संसद के उच्च सदन की सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाली उपसभापति डॉ. ‎नजमा हेपतुल्ला थीं.

अंटार्कटिका (दक्षिणी ध्रुव) के लिए भारत के पहले अभियान दल का ‎नेतृत्व डॉ. एस. जेड. क़ासिम ने किया था, जिन्होंने वहां नए युग की गंगोत्री का निर्माण ‎किया था और यह भी एक अच्छा संयोग है कि उनके डिप्टी लीडर भी स्वर्गीय डॉ. सिद्दीक़ी ‎थे. इसी तरह डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को हमेशा मिसाइल मैन के रूप में याद किया ‎जाएगा.

इसी तरह देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों में ब्रिगेडियर ‎उस्मान, हवलदार समित और कैप्टन सैफ़ी जैसे अनगिनत शहीदों को भुलाया नहीं जा ‎सकता. नए युग के महर्षि व्यास बन कर जिस तरह डॉ. राही मासूम रज़ा ने महाभारत की ‎रचना टेलीविज़न धारावाहिक के लिए की उसे कौन भुला सकता है.

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इसी तरह, भारतीय ‎फिल्म उद्योग हो या खेल की दुनिया, हर क्षेत्र में देश को शोहरत और प्रसिद्धि दिलाने वाले ‎मुसलमानों के नाम और कार्य किसी से छिपे नहीं हैं. भारत में विप्रो वाले अज़ीम प्रेमजी हों ‎‎या सिपला के ख़्वाजा हमीद साहब के परिवार के सदस्य, इसी तरह हमदर्द के हकीम ‎अब्दुल हमीद हों या हिमालय के मनाल परिवार, आज कोई भी भारतीय उन्हें नहीं भूल ‎सकता.‎

अंत में यह कहते चलें कि आज जब हम आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर ‎पूरे देश में घर-घर तिरंगा फहराने का अभियान बड़े गर्व के साथ चला रहे हैं, ‎हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस तिरंगे को एक मुस्लिम महिला बेगम सुरैया तैय्यबजी ने ‎‎यह रूप दिया था जिसे हमारे नेताओं ने सहर्ष स्वीकार किया था.‎

आइए आज संकल्प लें कि हम इस देश में देशद्रोह और दंगे, सांप्रदायिक तनाव और ‎किसी भी तरह के सामाजिक कलह को पनपने नहीं देंगे और अपने देश की महानता और ‎राष्ट्रीय एकता के लिए हम सब भारत की महानता को बढ़ाने के लिए एकजुट होकर काम ‎करेंगे. आज़ादी का अमृत महोत्सव की हार्दिक बधाई.‎

(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफ़ेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज़) हैं.