'ऑपरेशन सिंदूर ने दिखाया कि आत्मनिर्भर भारत कैसे चुनौतियों के बीच काम करता है'

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 30-05-2025
'Operation Sindoor showed how self-reliant India works amidst challenges'
'Operation Sindoor showed how self-reliant India works amidst challenges'

 

जॉन स्पेंसर

भारत का आधुनिक रक्षा शक्ति में परिवर्तन 2014में शुरू हुआ , जब प्रधानमंत्री मोदी ने "मेक इन इंडिया" पहल शुरू की.लक्ष्य स्पष्ट था.विदेशी हथियारों के आयात पर निर्भरता कम करना और विश्व स्तरीय घरेलू रक्षा उद्योग का निर्माण करना.नीति ने संयुक्त उद्यमों को प्रोत्साहित किया. रक्षा क्षेत्र में 74%तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए रास्ता खोला और सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के निर्माताओं को घर पर ही परिष्कृत सैन्य हार्डवेयर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया.

कुछ ही वर्षों में, ब्रह्मोस मिसाइल, K9वज्र हॉवित्जर और AK-203राइफल जैसी प्रणालियाँ भारत के अंदर बनाई जाने लगीं- इनमें से कई का उत्पादन प्रौद्योगिकी साझेदारी के साथ किया गया, लेकिन घरेलू नियंत्रण बढ़ता गया.

फिर दूसरी लहर आई.2020में, कोविड-19महामारी और चीन के साथ गलवान घाटी में हुई झड़प के संयुक्त झटके ने विदेशी आपूर्ति श्रृंखलाओं की कमज़ोरी और परिचालन आत्मनिर्भरता की ज़रूरत को उजागर किया.

जवाब में, मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का अनावरण किया - जिसका अर्थ है "आत्मनिर्भर भारत." एक आर्थिक नीति से ज़्यादा, यह एक राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत बन गया.भारत ने प्रमुख रक्षा आयातों पर चरणबद्ध प्रतिबंध लगाए, सशस्त्र बलों को आपातकालीन खरीद शक्तियाँ दीं और स्वदेशी अनुसंधान, डिज़ाइन और उत्पादन में निवेश किया.2025तक, भारत ने रक्षा खरीद में घरेलू सामग्री को 30%से बढ़ाकर 65%कर दिया था, जिसका लक्ष्य दशक के अंत तक 90%करना था.

22अप्रैल, 2025को उस सिद्धांत का परीक्षण किया गया, जब पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर की बैसरन घाटी में एक आतंकी हमले में 26भारतीय नागरिकों को मार डाला.जवाब में, भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया - एक तेज़, बहु-क्षेत्रीय सैन्य अभियान जिसने न केवल सीमा पार के आतंकी नेटवर्क को ध्वस्त किया बल्कि भारत के रक्षा परिवर्तन की पूर्ण पैमाने पर पुष्टि भी हुई.

ऑपरेशन सिंदूर में भारत की स्वदेशी रूप से विकसित हथियार प्रणालियों का मुकाबला पाकिस्तान द्वारा चीन से आपूर्ति किए गए प्लेटफॉर्म से हुआ.और भारत ने सिर्फ़ युद्ध के मैदान में ही जीत हासिल नहीं की - उसने प्रौद्योगिकी जनमत संग्रह भी जीत लिया.

जो सामने आया वह सिर्फ़ जवाबी कार्रवाई नहीं थी, बल्कि मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के दोहरे सिद्धांतों के तहत निर्मित संप्रभु शस्त्रागार की रणनीतिक शुरुआत थी.

रूस के साथ संयुक्त रूप से विकसित लेकिन बड़े पैमाने पर भारत में निर्मित, ब्रह्मोस दुनिया की सबसे तेज़ और सबसे सटीक क्रूज मिसाइलों में से एक है.

290-500किलोमीटर की रेंज के साथ मैक 2.8-3.0पर उड़ान भरने वाली, इसका इस्तेमाल रडार स्टेशनों और कठोर बंकरों जैसे उच्च-मूल्य वाले लक्ष्यों पर हमला करने के लिए किया गया था.इसकी गति और कम रडार क्रॉस-सेक्शन इसे रोकना लगभग असंभव बनाता है.

डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, भारत की प्रमुख सैन्य अनुसंधान एवं विकास एजेंसी) और भारत डायनेमिक्स द्वारा विकसित आकाश सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल, 25-30किलोमीटर की रेंज वाली एक सभी मौसम में काम करने वाली मोबाइल वायु रक्षा प्रणाली है.

इसे आकाशतीर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम के साथ एकीकृत किया गया था, जो एक एआई-संवर्धित वायु रक्षा नेटवर्क है जो वास्तविक समय में डेटा फ़्यूज़न प्रदान करता है, जिससे ड्रोन, क्रूज़ मिसाइल और विमान सहित कई हवाई खतरों के लिए समन्वित प्रतिक्रिया सक्षम होती है.

भारत की पहली स्वदेशी रूप से विकसित एंटी-रेडिएशन मिसाइल, रुद्रम-1दुश्मन के रडार उत्सर्जन को पकड़ लेती है और वायु रक्षा नेटवर्क को बेअसर कर देती है.इसे पाकिस्तानी ज़मीनी रडार को शांत करने और नियंत्रण रेखा (एलओसी) के प्रमुख क्षेत्रों में स्थितिजन्य जागरूकता को कम करने के लिए तैनात किया गया था.

डीआरडीओ द्वारा एम्ब्रेयर प्लेटफॉर्म पर निर्मित, नेत्र भारत का स्वदेशी हवाई प्रारंभिक चेतावनी और नियंत्रण विमान है.इसने दुश्मन के विमानों और मिसाइलों की वास्तविक समय पर ट्रैकिंग की, भारतीय जेट विमानों को गहरे हमले के मिशन के लिए निर्देशित किया.इसकी प्रभावशीलता तब स्पष्ट हुई जब पाकिस्तान के स्वीडिश साब 2000 AEW&C को एक लंबी दूरी की मिसाइल द्वारा नष्ट कर दिया गया.

भारत ने हारोप और स्काईस्ट्राइकर ड्रोन तैनात किए हैं - सटीक-निर्देशित "कामिकेज़" हथियार जो युद्ध के मैदान में घूमते हैं और दुश्मन के ठिकानों पर गोता लगाते हैं.

हारोप का निर्माण इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) उर्फ ​​IAI-BEL द्वारा लाइसेंस के तहत किया जाता है; स्काईस्ट्राइकर को एल्बिट JV के माध्यम से घरेलू स्तर पर असेंबल किया जाता है.इनका उपयोग मोबाइल रडार, काफिले और उच्च-मूल्य वाले दुश्मन के बुनियादी ढांचे को कम से कम नुकसान के साथ नष्ट करने के लिए किया गया था.

स्वदेशी मल्टी-लेयर ड्रोन डिफेंस सिस्टम जिसमें रडार, रेडियो फ्रीक्वेंसी (आरएफ) जैमर, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल/इन्फ्रारेड (ईओ/आईआर) सेंसर और काइनेटिक किल ऑप्शन शामिल हैं.

भारत के ड्रोन डिटेक्ट, डिटर और डिस्ट्रॉय सिस्टम (डी4एस) ने दर्जनों चीनी निर्मित पाकिस्तानी ड्रोन को निष्क्रिय कर दिया.यह सिस्टम भारत के प्रतिक्रियाशील वायु रक्षा से सक्रिय इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रभुत्व में परिवर्तन को दर्शाता है.

अमेरिका से आयातित लेकिन भारतीय पर्वतीय युद्ध सिद्धांत में एकीकृत इस हॉवित्जर का इस्तेमाल एक्सकैलिबर प्रिसिज़न-गाइडेड गोले के साथ एलओसी पार किए बिना आतंकवादी शिविरों पर हमला करने के लिए किया गया था.इसकी हवाई परिवहन क्षमता और तेजी से तैनाती ने इसे उच्च ऊंचाई वाले अभियानों के लिए आदर्श बना दिया.

भारत ने नियंत्रण रेखा पर निगरानी के लिए उन्नत टी-72तैनात किए हैं.ज़ोरावर, एक नया हल्का टैंक जो उच्च ऊंचाई वाले इलाकों के लिए अनुकूलित है, का विकास किया जा रहा है.ये प्रणालियाँ चुनौतीपूर्ण हिमालयी इलाकों में गतिशीलता और मारक क्षमता में भारत के निरंतर निवेश का संकेत देती हैं.

भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अपने कुछ सबसे उन्नत लड़ाकू विमानों को तैनात किया.फ्रांस में निर्मित बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान राफेल ने दुश्मन के गढ़वाले ठिकानों पर हमला करने के लिए SCALP लंबी दूरी की क्रूज मिसाइलों का इस्तेमाल करते हुए सटीक हमले किए.

इसमें मेटियोर एयर-टू-एयर मिसाइलें भी थीं, जो 100किलोमीटर से अधिक दूरी तक के लक्ष्यों को भेदने में सक्षम थीं - जिससे भारत को हवाई युद्ध में निर्णायक बढ़त मिली.

रूस द्वारा डिजाइन किया गया, भारत में लाइसेंस के तहत निर्मित, दोहरे इंजन वाला भारी लड़ाकू विमान Su-30MKI तथा एक अन्य बहुमुखी फ्रांसीसी जेट मिराज 2000, मारक क्षमता और लचीलापन प्रदान करते थे. कई हमले कर सकते थे तथा हवाई क्षेत्र पर नियंत्रण सुनिश्चित कर सकते थे.

ये जेट नेत्रा एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (AEW&C) सिस्टम की सुरक्षा छतरी के नीचे उड़े, जो आसमान में एक आँख की तरह काम करता था - दुश्मन के विमानों पर नज़र रखता था.

युद्धक्षेत्र का समन्वय करता था.इस बीच, रुद्रम एंटी-रेडिएशन मिसाइलों का इस्तेमाल दुश्मन के वायु रक्षा (SEAD) मिशनों के दमन में किया गया, जिससे सुरक्षित हवाई संचालन सुनिश्चित करने के लिए दुश्मन के रडार और वायु रक्षा प्रणालियों को निष्क्रिय कर दिया गया.

पाकिस्तान में निर्मित लेकिन चीन के AVIC द्वारा डिजाइन और निर्मित, JF-17चीनी एवियोनिक्स, रडार, इंजन (RD-93) और हथियारों पर निर्भर करता है.सिंदूर के दौरान, ये विमान हवाई श्रेष्ठता हासिल करने या भारतीय हमलों का मुकाबला करने में विफल रहे.उनका सीमित पेलोड, पुराना रडार और खराब उत्तरजीविता भारतीय EW और वायु रक्षा दबाव के तहत स्पष्ट थी.

हालांकि तकनीकी रूप से जेएफ-17से बेहतर, पाकिस्तान के एफ-16विमानों पर अमेरिकी एंड-यूजर समझौतों के तहत प्रतिबंध है, जिसके तहत भारत के खिलाफ उनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.नतीजतन, सिंदूर के दौरान उन्हें दरकिनार कर दिया गया - जिससे पाकिस्तान को फ्रंटलाइन एयर डोमिनेंस प्लेटफॉर्म से हाथ धोना पड़ा.

रूस के एस-300और बुक सिस्टम की चीनी नकल, HQ-9और HQ-16को भारतीय हवाई और मिसाइल हमलों को रोकने के लिए तैनात किया गया था.हालांकि, वे भारत के जैमिंग और धोखे के अभियानों के तहत विफल हो गए.इन प्रणालियों को ब्रह्मोस और लोइटरिंग ड्रोन द्वारा आसानी से दरकिनार कर दिया गया, जिससे गंभीर कमजोरियाँ सामने आईं.

पुरानी छोटी और मध्यम दूरी की SAM प्रणालियाँ भी चीन में ही बनी थीं.दोनों ही भारत के कम ऊंचाई पर उड़ने वाले ड्रोन और सटीक हथियारों का पता लगाने या उन्हें रोकने में असमर्थ थीं.इससे पाकिस्तान को किसी विश्वसनीय गतिज प्रतिक्रिया के बजाय निष्क्रिय वायु रक्षा पर निर्भर रहना पड़ा.

पाकिस्तान द्वारा ISR और हल्के हमले की भूमिकाओं के लिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जाने वाले CH-4को बार-बार गिराया गया या जाम कर दिया गया.भारत के D4S सिस्टम के वर्चस्व वाले इलाके और इलेक्ट्रॉनिक वातावरण में उनका प्रदर्शन खराब रहा.

रिपोर्ट्स में सामने आया कि UAV को मैनेज करने के लिए तुर्की के ड्रोन ऑपरेटरों को लाना पड़ा - जिससे उपकरण और कर्मियों दोनों पर निर्भरता का पता चलता है.

पाकिस्तान का प्रमुख हवाई पूर्व चेतावनी मंच.इनमें से एक को नष्ट कर दिया गया - संभवतः एस-400प्रणाली द्वारा - जिससे पाकिस्तान की हवाई क्षेत्र की जानकारी समाप्त हो गई और कमांड और नियंत्रण कार्य अवरुद्ध हो गए.

अभियान के अंत तक, पाकिस्तान ने प्रमुख रडार स्टेशन, अपने प्रमुख AEW&C विमान, दर्जनों ड्रोन और भारतीय हवाई क्षेत्र पर आक्रमण करने की अपनी क्षमता खो दी थी.

भारत ने एक संप्रभु शक्ति के रूप में युद्ध लड़ा - उसने अपने द्वारा डिजाइन किए गए, बनाए गए और तैनात किए गए सटीक उपकरणों का इस्तेमाल किया, जिसका युद्धक्षेत्र पर बेजोड़ नियंत्रण था.

पाकिस्तान ने एक छद्म शक्ति के रूप में युद्ध लड़ा, जो चीनी हार्डवेयर पर निर्भर था, जो उत्कृष्टता के लिए नहीं, बल्कि निर्यात के लिए बनाया गया था.जब चुनौती दी गई, तो ये प्रणालियाँ विफल हो गईं - जिससे इस्लामाबाद की रक्षा मुद्रा के पीछे की रणनीतिक खोखलीपन उजागर हुई.

वैश्विक बाजार ने प्रतिक्रिया व्यक्त की.भारत के रक्षा शेयरों में उछाल आया - मई में पारस डिफेंस एंड स्पेस में 49%की वृद्धि हुई, जबकि MTAR टेक्नोलॉजीज और डेटा पैटर्न ने निवेशकों का भरोसा जीता.इसके विपरीत, ऑपरेशन के बाद चीनी रक्षा शेयरों में भारी गिरावट आई.AVIC, NORINCO, CETC - सभी को झटका लगा क्योंकि युद्ध के मैदान ने उनके विपणन को गलत साबित कर दिया.

ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ़ एक सैन्य अभियान नहीं था.यह एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन, एक बाज़ार संकेत और एक रणनीतिक खाका था.भारत ने दुनिया को दिखाया कि आधुनिक युद्ध में आत्मनिर्भरता कैसी होती है - और यह साबित किया कि  " आत्मनिर्भर भारत" आग में भी काम करता है.

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जॉन स्पेंसर को शहरी युद्ध के मामले में दुनिया के अग्रणी विशेषज्ञों में से एक माना जाता है.वे वेस्ट पॉइंट स्थित मॉडर्न वॉर इंस्टीट्यूट में शहरी युद्ध अध्ययन के अध्यक्ष, शहरी युद्ध परियोजना के सह-निदेशक और शहरी युद्ध परियोजना पॉडकास्ट के होस्ट हैं-