जमात-ए-इस्लामी के नए अध्यक्ष और दस करोड़ पाकिस्तानियों की तीन हजार रूपये में ईद मनाने की मजबूरी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 07-04-2024
The new president of Jamaat-e-Islami and the compulsion of ten crore Pakistanis to celebrate Eid for three thousand rupees.
The new president of Jamaat-e-Islami and the compulsion of ten crore Pakistanis to celebrate Eid for three thousand rupees.

 

 
pakistan madmood sham
महमूद शाम

 
52 वर्षीय हाफ़िज़ नईम-उर-रहमान को नियमित चुनाव प्रक्रिया के माध्यम से जमात-ए-इस्लामी का 82 वर्षीय अमीर चुना गया. क्या जमात और पाकिस्तान में बदलाव की कोई संभावना है? सबसे पहले, अनिश्चितता, चिंता, स्वार्थ, क्रूरता के बावजूद, ईद-उल-फितर की शुभकामनाएं, अल्लाह हमारी सभी प्रार्थनाओं, पाठ और उपवास को स्वीकार करे.

ईद का आगमन ग़ज़ा में भी होगा. जहां रमजान के मुबारक दिनों को भी बर्बरता का सामना करना पड़ा है. घर उजड़ गए और गोद सूनी हो गई. गाजा और रीफा की सड़कें वर्तमान से बोल रही हैं कि यह 21वीं सदी क्रूर, नवजात शिशुओं का गला घोंटने वाली, मां की हत्यारी, भाइयों की दुश्मन, लोकतांत्रिक नियम, मानवाधिकार, जानने का अधिकार बन गई है.
 
जीने के लिए सुबह-शाम सब रौंद रहे हैं. मीडिया चुप है. मुस्लिम Country अपनी ज़ुबान पर काबू पा रहे हैं. कहीं डॉलर नाचता है, कहीं दिरहम. इस्लाम के क़िलों में रूह कंपा देने वाली खामोशी है. इजराइल गाजा और आसपास के इलाके से फिलिस्तीनी लोगों को उखाड़ रहा है. कितने महीनों से उसे इंसानियत की मौत का नशा है. मुस्लिम राजधानियों में सुनाता.
 
गाजा की माताएं भी चांद देखेंगी

उन्होंने कहा, चांद अब उनकी गोद में है

एक दिन आएगा जब पचास से अधिक मुस्लिम देशों के राजा, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सेना प्रमुख मलिक हकीजी के दरबार में खड़े होंगे और एक अरब मुस्लिम प्रजा भी, वह दिन कभी भी आ सकता है. गाजा की चीखें आसमान तक जा रही हैं.
 
सोशल मीडिया सिर्फ दीवार पर लटका हुआ है. जरूरत इस बात की है कि दीवारें गिरा दी जाएं. इन खोखली दीवारों को ऐसा धक्का देना चाहिए कि सारी हेकड़ी, प्रोटोकॉल, सुरक्षा सब ढह जाएं. यह प्रलय से भी बड़ा प्रलय है. आज का हिटलर नेतन्याहू है. उसका संरक्षक व्हाइट हाउस है. अमेरिका के उन मुस्लिम संगठनों को सलाम जिन्होंने व्हाइट हाउस की तथाकथित इफ्तार पार्टी का बहिष्कार किया.
 
हिलाल ईद हमें हंसाने की तैयारी कर रही है. वाघा से ग्वादर तक पाकिस्तानियों की सांसें. भूलना नहीं चाहिए कि 24 करोड़ में से 10 करोड़ गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने को मजबूर हैं. यानी उनकी मासिक आय 3 हजार रुपये से भी कम है. अब आंकड़े बताते हैं कि एक करोड़ और पाकिस्तानी गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं.
 
मानवता की इस दरिंदगी का जिम्मेदार कौन? अर्थशास्त्रियों की नीतियाँ क्या हैं? जिसका परिणाम बहुत भयानक होता है. हुक्मरान कह रहे हैं कि आईएमएफ अगले दौर के लिए तैयार है. कोई भी ऐसा इरादा नहीं दिखा रहा है कि हम जल्द ही रेकोडिक से अपना सोना और तांबा निकालकर कर्ज़ चुका देंगे.
 
एक शासक की प्रशंसा करो. अमीर होते खेतों को यह याद नहीं रहता कि हम यहां प्रति एकड़ उत्पादन बढ़ाकर अपना खर्च चला लेंगे. देश भी आईएमएफ की किश्तों से सांस लेने का आदी हो गया है. एक स्वतंत्र राष्ट्र की तरह, कोई शासक, कोई अर्थशास्त्री, कोई विश्वविद्यालय अगले दस से पंद्रह वर्षों के मील के पत्थर निर्धारित नहीं कर रहा है.
 
अपनी ज़मीनें. हमारी नदियाँ, हमारे समुद्र, हमारे पहाड़, हमारी रेत, ये प्राकृतिक संसाधन हमें इस दुख से बचा सकते हैं. आईएमएफ का एक इंजेक्शन कुछ मिनटों के लिए दर्द से राहत दिला सकता है. उसके पास आपकी पुरानी बीमारी का इलाज नहीं है.
 
गौरवान्वित राष्ट्र आगे की चुनौतियों का सामना करने के लिए राष्ट्रीय संपत्ति का निर्माण करते हैं. समझदार उद्यमी अपने उद्योग और व्यापार को मजबूत करने के लिए संपत्ति खरीदते हैं. लेकिन 38 साल तक हमने अपनी संपत्ति बेचने या विदेशियों को सौंपने में ही अपनी ताकत मानी है. पिछले चालीस वर्षों के आँकड़े देखिये. देश पर कितना है कर्ज? चंद परिवारों की संपत्ति कितनी बढ़ गई है.
 
इन दिनों एक खबर आई है कि सोशल मीडिया पर खुशियां फैल रही हैं. हम हर राजनीतिक दल में लोकतंत्र और आत्म-जवाबदेही की मांग कर रहे हैं. लोकतंत्र की मजबूती राजनीतिक दलों में संगठन और कार्यकर्ताओं के सम्मान पर निर्भर करती है.
 
राजनीतिक दलों के वंशानुगत परिवार अपनी सभी विफलताओं का कारण सीमित कंपनी बनने को मानते हैं. केवल एक ही राजनीतिक दल है जहां नियमित चुनाव होते हैं. जहां कार्यकर्ताओं को हर पांच साल में अपना नेता चुनने का विकल्प दिया जाता है.
 
जहां निर्विरोध निर्वाचन का अनुभव नहीं है. जमात-ए-इस्लामी के 45,000 कार्यकर्ताओं ने कराची जमात के अमीर हाफिज नईमुर रहमान को अगले पांच साल यानी 8 अप्रैल 2029 तक के लिए अमीर चुना है. पार्टी का चुनाव आयोग भी नियमित रूप से चुना जाता है.
 
अन्य राजनीतिक दलों की तरह ये चुनाव दिखावटी नहीं हैं. इन 45 हजार में से 6 हजार माननीय माताएं, बहनें और बेटियां हैं. चुनाव प्रचार 19 फरवरी से शुरू हुआ था. चुनाव तीन उम्मीदवारों हाफिज नईमुर रहमान, सिराजुल हक और लियाकत बलूच के बीच होना था.
 
हाफ़िज़ नईमुर रहमान एक इंजीनियर हैं. गतिशील हैं. सक्रिय हैं. सोशल मीडिया का भी बड़े पैमाने पर उपयोग करते हैं. वे युवाओं को सशक्त बनाने के लिए प्रशिक्षण प्रदान करते हैं. जमात-ए-इस्लामी जैसी प्रतिक्रियावादी, परंपरावादी और धार्मिक पार्टी को भी समय की मांग का एहसास हो गया है.
 
 बेशक ये चाहत पीपीपी, पीएमएल-एन, एमक्यूएम और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के कार्यकर्ताओं में भी होगी. यदि उनके कार्यकर्ताओं को भी वास्तविक मौका दिया जाए तो उन्हें भी पारिवारिक राजकुमारों और राजकुमारियों के बजाय हाफ़िज़ नईम जैसे सक्रिय, दूरदर्शी, निडर नेता को चुनना चाहिए. 
 
सबसे अहम सवाल यह है कि क्या जमात-ए-इस्लामी लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर खरा उतरता है? जनसंपर्क और सार्वजनिक सेवाओं के क्षेत्र में इसके जैसी कोई दूसरी पार्टी नहीं है.' अरबों रुपये की मानवीय सेवाएँ दान के माध्यम से की जाती हैं.
 
फिर भी, पाकिस्तानी उन्हें 1970 के बाद से चुनावों में शासन करने का जनादेश क्यों नहीं देते? क्या हमारी चुनावी व्यवस्था इसमें बाधा है या जमात-ए-इस्लामी की पिछली नीतियां? क्या विरोध का आरोप पाकिस्तान की स्थापना का है? जनरल ज़िया का समर्थन.
 
साम्यवाद को परास्त करने में अमेरिका का पक्ष. उनकी अफगान नीति. इस्लामिक जमीयत के छात्रों का कठोर व्यवहार. यह उसे जनता के बीच लोकप्रिय नहीं होने देता. सामंतवाद, जमींदारी, सरदारी, पूंजी और तलवार का गठजोड़ उसे चुनाव में विजयी नहीं होने देता.
 
यह भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि अब तक जमात की प्रतिष्ठा सरकार गिराती रही है. अब लोगों को विश्वास दिलाएं कि वह भी सरकार बनाना चाहती है. सरकार इसी तरह मानवता की सेवा करती रहेगी. जैसा कि अब अल-खिदमत के माध्यम से होता है. हाफ़िज़ नईमुर रहमान में लोगों को यह समझाने की क्षमता है कि समस्या का एकमात्र समाधान तराजू है.
 
( लेख पाकिस्तान के ‘ जंग ’ अखबार से साभार. इसका सिर्फ शीर्षक बदला गया है. इसके विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं.)