हरजिंदर
यह एक संयोग ही था कि विदेश जाने के लालायित भारतीय नौजवानों पर बनी शाहरुख खान की फिल्म डंकी जिस समय रिलीज़ हुई ठीक उसी समय 276 भारतीयों के विदेश जाने का सपना पूरा करने वाली एक रोमानियन फ्लाइट फ्रांस में पकड़ी गई. इन सभी को वापस भारत रवाना कर दिया गया. यूरोप और भारत के अखबारों में इन दिनों इस पर काफी कुछ कहा और लिखा जा रहा है.
विदेश जाने की इस लालसा के तमाम कारण गिनाए जा रहे हैं और चिंताएं भी व्यक्त की जा रही हैं. जब से दुनिया भर में और खासकर यूरोप मे दक्षिणपंथी ताकतें मजबूत होना शुरू हुई हैं ऐसे मामलों पर हंगामा बढ़ने लगा है. यह हंगामा उस समय बहुत तेज हो जाता है जब शरण लेने वाले या रोजी रोटी की तलाश में आए लोग किसी इस्लामिक देश के हों.
तब इसे या तो रानजीतिक मामला मान लिया जाता है या फिर सांस्कृतिक हमला. इन 276 भारतीयों के मामले में ज्यादातर चिंताएं भारत में ही व्यक्त की गईं, फ्रांस में तो अधिकारियों को उनकी मुस्तैदी के लिए शाबासी ही दी गई.
मुस्लिम देशों से आए लोगों के बारे में वहां किस तरह की राय बन रही है इसे हम पिछले दिनों इटली की प्रधानमंत्री ज्यार्जिया मैलोनी के एक बयान से समझ सकते हैं. उन्होंने कहा था कि इस्लाम और यूरोप के मूल्य एक दूसरे से मेल नहीं खाते, इसलिए इस्लाम धर्म को मानने वालों के लिए यूरोप में कोई जगह नहीं है.
मैलोनी ने ‘ब्रदर्स आफ इटली‘ के जिस कार्यक्रम में यह बात कही वहां ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और अमेरिकी उद्योगपति व ट्व्टिर के कर्ताधर्ता एलन मस्क भी मौजूद थे.इसी कार्यक्रम में जब ऋषि सुनक बोले तो उन्होंने शरण लेने वालों की बढ़ती संख्या के बारे में चिंता व्यक्त की.
उन्होंने कहा कि कुछ दुशमन जानबूझ कर हमारे यहां लोगों की घुसपैठ करा रहे हैं, ताकि यहां कि समाज में अस्थिरिता पैदा की जा सके. उन्होंने कहा कि अगर हम कुछ नहीं करते तो यह संख्या बढ़ेगी. यह भी जोड़ दिया कि विश्वयुद्ध के बाद बने अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थी नियमों और कानूनों में बदलाव की जरूरत है.
इस कार्यक्रम में एलन मस्क भी बोले और उन्होंनें घुमा-फिराकर वही सारी बातें कहीं जो इन दोनों नेताओं ने कहीं थीं.अब जब अच्छे भविष्य के तलाश में फ्रांस पहंुचे 276 भारतीय लौट चुके हैं तो हमें इस मामले के कुछ और पक्षों को भी देखना होगा.
यूरोप में इस समय जिस तरह का हंगामा दिख रहा है कभी वैसा ही हंगामा हमारे यहां बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर होता था. इधर यह हंगामा थोड़ा कम हुआ है . पिछले कुछ समय में बांग्लदेश ने ठीक-ठाक आर्थिक तरक्की की है जिससे वहां भी रोजगार के अच्छे अवसर पैदा हो रहे हैं .
रोजगार के लिए भारत में घुसपैठ करने वालों की संख्या में कमी आई है. लेकिन इन दिनों कुछ ऐसा ही हंगामा म्यांमार के अभागे रोहिंग्या मुसलमानों के लेकर होता है.आर्थिक तरक्की की दौड़ में पिछड़ गए देशों से रोजगार की या आर्थिक सुरक्षा की तलाश में विकसित देशों में जाने का सिलसिला बहुत पुराना है.
इन दिनों एक फर्क यह आया है कि इसे मुद्दा बनाकर स्थानीय स्तर पर जोरदार राजनीति तकरीबन सभी जगह हो रही है और इसकी वजह से स्थानीय स्तर से लेकर विश्व स्तर तक एक तरह का नफरत का माहौल तैयार हो रहा है. इससे नए तरह के खतरे भी खड़े हुए हैं.
इस सबसे बचने का रास्ता अभी भी यही है कि जिन देशों से इस तरह का विस्थापन होता है उन्हें तेजी से आर्थिक विकास करते हुए अपने यहां रोजगार के अच्छे अवसर पैदा करने होंगे. साथ ही देश में समाज में वह ख्ुालापन लाना होगा जिसकी तलाश में भी लोग अक्सर पश्चिम का रुख करते हैं.
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )