गरीबी के विरुद्ध वैश्विक अनुभव: क्या बांग्लादेश सीख पा रहा है?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 12-09-2025
Global experience in fighting poverty: Is Bangladesh learning?
Global experience in fighting poverty: Is Bangladesh learning?

 

डॉ. सुल्तान महमूद राणा

मानव सभ्यता के इतिहास में गरीबी एक ऐसी स्थायी चुनौती रही है, जिसने न केवल आर्थिक विकास को बाधित किया है, बल्कि सामाजिक विषमता, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, और सांस्कृतिक पिछड़ेपन को भी जन्म दिया है.यही कारण है कि जब संयुक्त राष्ट्र ने 2030तक सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की घोषणा की, तो 'गरीबी उन्मूलन' को पहले लक्ष्य के रूप में रखा गया.दरअसल, अगर गरीबी ज्यों की त्यों बनी रही, तो कोई भी विकास लक्ष्य स्थायी नहीं हो सकता.

लेकिन मुख्य प्रश्न यह है कि गरीबी को कैसे मिटाया जाए? विभिन्न समयों पर अनेक अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों और नीति-निर्माताओं ने गरीबी उन्मूलन के लिए अलग-अलग सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं.कुछ असफल रहे, तो कुछ ने उल्लेखनीय सफलता दिलाई.इन सिद्धांतों और अनुभवों से दुनिया को बहुमूल्य सबक मिले हैं, जिनसे बांग्लादेश भी सीख सकता है.

ट्रिकल-डाउन सिद्धांत: सीमित लाभ, व्यापक असमानता

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका में 'ट्रिकल-डाउन सिद्धांत' काफी लोकप्रिय हुआ.इस सिद्धांत के अनुसार, यदि अर्थव्यवस्था के शीर्ष पर स्थित   अमीर और कॉर्पोरेट समूह समृद्ध होंगे, तो उनकी खपत और निवेश से रोजगार उत्पन्न होगा और इसका लाभ धीरे-धीरे गरीबों तक पहुँचेगा.

आंशिक रूप से यह मॉडल अमेरिका में सफल रहा — उद्योगों का विकास हुआ, मध्यम वर्ग मजबूत हुआ और उपभोक्ता संस्कृति का विस्तार हुआ.लेकिन इसका दूसरा पहलू भी सामने आया — आय विषमता में भारी वृद्धि हुई.अमीर और अमीर होते गए, जबकि गरीब वर्ग अपेक्षाकृत उपेक्षित रहा.

इससे यह निष्कर्ष निकला कि आर्थिक विकास आवश्यक तो है, लेकिन अगर यह शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक सुरक्षा जैसी नीतियों से समन्वित नहीं हो, तो असमानता और गरीबी बढ़ सकती है.अतः सरकार को आय वितरण में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, ताकि विकास का लाभ सभी तबकों तक पहुँच सके.

लैटिन अमेरिकी मॉडल: मानव पूंजी सिद्धांत की सफलता

ब्राज़ील और मेक्सिको जैसे देशों ने गरीबी उन्मूलन में मानव पूंजी सिद्धांत को अपनाया, जिसने उन्हें उल्लेखनीय सफलता दिलाई.ब्राज़ील का बोल्सा फ़ैमिलिया और मेक्सिको का प्रोग्रेसा/ओपोर्टुनिडाडेस कार्यक्रम इस सिद्धांत के श्रेष्ठ उदाहरण हैं.

इन योजनाओं के अंतर्गत गरीब परिवारों को वित्तीय सहायता दी जाती है, लेकिन इस शर्त पर कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजेंगे और स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेंगे.इससे केवल तत्काल आर्थिक राहत ही नहीं मिली, बल्कि दीर्घकालिक सामाजिक परिवर्तन भी संभव हुआ — बच्चे शिक्षित और स्वस्थ होने लगे, जिससे गरीबी का चक्र धीरे-धीरे टूटने लगा.विश्व बैंक ने इस मॉडल को "सबसे सफल सामाजिक नीति नवाचार" बताया है.

पूर्वी एशियाई मॉडल: विकासात्मक राज्य की भूमिका

दक्षिण कोरिया, ताइवान और सिंगापुर जैसे देशों ने ‘विकासात्मक राज्य सिद्धांत’ को अपनाया.इसमें राज्य केवल नीति-निर्माता नहीं होता, बल्कि सक्रिय विकास प्रेरक भी होता है.उदाहरण के लिए, 1960के दशक में दक्षिण कोरिया बांग्लादेश से भी गरीब था, लेकिन सरकार ने औद्योगीकरण, निर्यात, शिक्षा और तकनीकी विकास पर जोर दिया.

किसानों को सहायता दी गई और रोजगार सृजन की दिशा में नीति बनाई गई.इसके परिणामस्वरूप कुछ दशकों में देश गरीबी से बाहर निकलकर एक आधुनिक औद्योगिक राष्ट्र बन गया.

स्कैंडिनेवियाई मॉडल: कल्याणकारी राज्य का प्रभाव

स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क और फिनलैंड जैसे देशों ने गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में कल्याणकारी राज्य सिद्धांत को अपनाया.इस मॉडल के अनुसार, राज्य केवल आर्थिक वृद्धि का माध्यम नहीं, बल्कि नागरिकों की बुनियादी आवश्यकताओं — जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, बेरोजगारी भत्ता, वृद्धावस्था पेंशन — की पूर्ति का दायित्व भी निभाता है.

इन देशों में कर की दर ऊँची है, लेकिन नागरिक इसे सहर्ष चुकाते हैं, क्योंकि उन्हें बदले में सामाजिक सुरक्षा और गुणवत्ता जीवन प्राप्त होता है.इससे सामाजिक समानता बनी रहती है, और आय विषमता न्यूनतम होती है.अपराध दर कम होती है और नागरिकों में सरकार के प्रति विश्वास उच्च होता है.यही कारण है कि ये देश मानव विकास सूचकांक और विश्व खुशहाली रिपोर्ट में सर्वोच्च स्थानों पर आते हैं.

चीन का क्रमिक सुधार मॉडल: चरणबद्ध विकास की सफलता

चीन ने ‘क्रमिक सुधार सिद्धांत’ के तहत 1978से बाजार की दिशा में धीरे-धीरे कदम बढ़ाए.कृषि में परिवार आधारित उत्पादन पद्धति को अपनाया गया, उद्योग और तकनीकी क्षेत्र में सरकारी और निजी निवेश को बढ़ावा मिला.इसके परिणामस्वरूप चीन ने 80करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला.यह मानव इतिहास में गरीबी उन्मूलन की सबसे बड़ी सफलता है.

बांग्लादेश की स्थिति और आवश्यक नीतियाँ

हालांकि बांग्लादेश ने पिछले दशकों में गरीबी घटाने में प्रगति की है, लेकिन हालिया वर्षों में परिस्थितियाँ चिंताजनक बनी हैं.पावर एंड पार्टिसिपेशन रिसर्च सेंटर (PPRC) के एक अध्ययन के अनुसार, 2025तक देश की गरीबी दर लगभग 28प्रतिशत तक पहुँच सकती है, जबकि 2022में यह 18.7प्रतिशत थी.इसके साथ ही लगभग 18प्रतिशत परिवार कभी भी गरीबी रेखा के नीचे जा सकते हैं.अत्यधिक गरीबी की दर भी बढ़ रही है — 2022में यह 5.6प्रतिशत थी, जो 2025में 9.35प्रतिशत तक पहुँच सकती है.

इन परिस्थितियों में, बांग्लादेश को गरीबी उन्मूलन के लिए वैश्विक अनुभवों से सीखने की आवश्यकता है.उसे एक 'हाइब्रिड मॉडल' अपनाना होगा, जो विभिन्न सफल सिद्धांतों का संयोजन हो.प्रमुख सुझाव इस प्रकार हैं:

मानव पूंजी में निवेश बढ़ाना – शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में निवेश करके आने वाली पीढ़ियों को सक्षम बनाना (लैटिन अमेरिकी मॉडल)

राज्य की सक्रिय भूमिका – विकास नीतियों में सरकार की भागीदारी सुनिश्चित करना (पूर्वी एशियाई और चीनी मॉडल)

सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क मज़बूत करना – कमजोर तबकों के लिए सुरक्षा कवच विकसित करना (स्कैंडिनेवियाई मॉडल)

गरीबी उन्मूलन के लिए कोई एकमात्र सही मार्ग नहीं है.प्रत्येक देश को अपने सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक ढांचे के अनुरूप नीतियाँ बनानी पड़ती हैं.लेकिन वैश्विक अनुभव यह बताते हैं कि यदि सही सिद्धांतों को स्थानीय ज़रूरतों के अनुसार ढाला जाए, तो गरीबी को हराना संभव है.

संयुक्त राज्य अमेरिका ने जहां विकास की अहमियत दिखाई, वहीं लैटिन अमेरिका ने मानव पूंजी के महत्व को रेखांकित किया.पूर्वी एशिया ने राज्य की सक्रिय भागीदारी का उदाहरण प्रस्तुत किया, स्कैंडिनेवियाई देशों ने सामाजिक समानता और सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी, और चीन ने अपने विशाल जनसंख्या वाले देश में चरणबद्ध सुधारों से गरीबी पर विजय पाई.

आज, बांग्लादेश को भी इन अनुभवों से प्रेरणा लेकर, अपनी आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए एक सशक्त, समावेशी और व्यवहारिक रणनीति बनानी होगी.केवल तभी 'गरीबी मुक्त बांग्लादेश' एक सपना नहीं, बल्कि एक साकार हकीकत बन सकता है.

डॉ. सुल्तान महमूद राणा, प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग