चिप से शिप तक भारत में: आत्मनिर्भरता का संकल्प

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 26-09-2025
From Chip to Ship in India: A Pledge to Self-Reliance
From Chip to Ship in India: A Pledge to Self-Reliance

 

 

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डॉ. अनिल कुमार निगम

‘दूसरे देशों पर निर्भरता भारत का सबसे बड़ा दुश्‍मन’…प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन महज एक वक्‍तत्‍व नहीं,बल्कि इसका अत्‍यंत गंभीर और दूरगामी अर्थ है.वास्‍तव में यह केवल एक भावनात्मक अपील नहीं, बल्कि इसके आर्थिक, सामरिक, राजनैतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक मायने हैं.

आजादी के बाद भारत ने लंबी यात्रा तय की है.निस्‍संदेह, इस यात्रा में काफी उतार-चढ़ाव भी रहे.कभी लाइसेंस-कोटा राज ने भारतीय उद्योग और व्यापार को जकड़े रखा, तो कभी वैश्वीकरण के दौर में आयात-निर्भरता ने घरेलू उत्पादन को कमजोर किया.ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा, केवल एक राजनीतिक नारा नहीं बल्कि 21वीं सदी के भारत की रणनीतिक आवश्यकता है.

हाल में गुजरात दौरे के दौरान पीएम मोदी ने धोलेरा विशेष निवेश क्षेत्र और लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) की प्रगति की समीक्षा की.यह घटनाएं प्रतीकात्मक हैं, क्योंकि ये भारत के औद्योगिक और समुद्री सामर्थ्य को फिर से जीवित करने की कोशिश का हिस्सा हैं.प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा कि चिप हो या शिप, हमें सब कुछ भारत में ही बनाना होगा.यह आत्मनिर्भर भारत का व्यावहारिक खाका है.

आत्मनिर्भर भारत के संदर्भ में सबसे बड़ी चुनौती अमेरिका की दोगली एवं बदलती टैरिफ नीति है.अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोलाल्‍ड ट्रम्‍प एक तरफ भारत को अपना अच्‍छा मित्र कहते हैं, तो दूसरी तरफ व्यापारिक मोर्चे पर भारत को अपने हितों के अनुसार दबाव बनाने के लिए मनमानी टैरिफ लगाने की बात करता या उस पर थोप देता है.

जब अमेरिका समय-समय पर भारत से आयातित वस्तुओं पर ऊंचे शुल्क लगाता है.इससे भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होती है.हमने देखा कि अमेरिका ने भारत के अत्‍यंत पुराने मित्र रूस से तेल न खरीदने का दबाव बनाने के लिए 50फीसदी टैरिफ लगाने का दांव चल दिया.

निस्‍संदेह, भारत की टेक्नोलॉजी पर निर्भरता के चलते ही चिप, सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अमेरिका की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति भारत की आत्मनिर्भरता को चुनौती देती है.भारत-अमेरिका सामंजस्य की विडंबना यह है कि जहां सुरक्षा और इंडो-पैसिफिक रणनीति में दोनों देशों का मेल है, वहीं आर्थिक मोर्चे पर हितों का टकराव है.यही कारण है कि भारत को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अपने अन्‍य देशों पर पूर्ण निर्भर नहीं रहना चाहिए.इस परिप्रेक्ष्य में आत्मनिर्भर भारत केवल स्थानीय उत्पादन तक सीमित नहीं बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर संतुलित निर्भरता और विकल्प तैयार करने की योजना है.

दूसरी ओर, चीन भारत की आत्मनिर्भरता की सबसे बड़ी चुनौती है.चीन एक ओर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी पकड़ मजबूत कर चुका है, तो दूसरी ओर दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहा है.भारत और चीन के बीच व्यापार में भारी असंतुलन है.भारत चीन से 70अरब डॉलर से अधिक का व्यापार घाटा झेल रहा है। इसका सीधा मतलब है कि हमारी उत्पादन-क्षमता चीन के मुकाबले अभी भी कमजोर है.

साम्राज्‍यवादी चीन की भारत के पड़ोसी देशों के प्रति जो रणनीति है, वह भारत को नीचा दिखाने की होती है.चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” (BRI) और पड़ोसी देशों में निवेश कर भारत को दबाव में रखने की रणनीति अपनाता है.इस बात से इनकार नहीं किया जा सकताकि चीन की तकनीकी पकड़ काफी अच्‍छी है.मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, सौर पैनल, फार्मा-रॉ मटेरियल जैसे कई क्षेत्रों में चीन की पकड़ भारत के लिए खतरे की घंटी है.

यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी का स्वदेशी अपनाओ अभियान एक सामरिक उत्तर है.यदि भारत स्थानीय उद्योग को प्रोत्साहित करता है, तो चीन की पकड़ धीरे-धीरे कमजोर होगी.ऐसा नहीं है कि पीएम मोदी स्‍वदेशी का केवल नारा दे रहे हैं.वास्‍तव में केंद्र सरकार ने अनेक नई औद्योगिक पहल की हैं जिनका उल्‍लेख  भी करना उचित रहेगा। सरकार ने धोलेरा विशेष निवेश क्षेत्र विकसित किया है.

पश्चिमी मालवाहक गलियारे सेजुड़ा यह ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट भारत का एक वैश्विक औद्योगिक हब बनाने की दिशा में बड़ा कदम है.यहा इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा और हाई-टेक उद्योगों पर फोकस होगा। प्रधानमंत्री भी यह स्वीकार करते हैं कि आज भारत का केवल 5%व्यापार अपने जहाजों से होता है, जबकि 50साल पहले यह 40%था.शिपिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना आत्मनिर्भर भारत की रीढ़ है.

आत्मनिर्भर भारत की डगर बहुत सहज नहीं है.उसके सामने अनेक चुनौतियां हैं,भारत को अमेरिका और चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से प्रतिस्पर्धा करनी है.इसके लिए केवल नीतिगत घोषणाओं से काम चलने वाला नहीं है, बल्कि इसके लिए तीव्र गति से क्रियान्वयन की जरूरत है.सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रक्षा उत्पादन—इन क्षेत्रों में भारत को अभी भी भारी निवेश और अनुसंधान की आवश्यकता है.इसमें सचाई है कि भारत का उद्योग अभी भी घरेलू बाजार पर अधिक केंद्रित है.आत्मनिर्भर भारत तभी सार्थक होगा जब भारत वैश्विक निर्यात शक्ति बने। हमें बंदरगाह, लॉजिस्टिक्स, बिजली, डिजिटल कनेक्टिविटी को मजबूत करना होगा तभी आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होगा.

भारत की 146करोड़ की विशाल आबादी एक बड़ा बाजार है.युवाओं की ऊर्जा और स्टार्टअप संस्कृति आत्मनिर्भर भारत को नई उड़ान दे सकती है.अक्षय ऊर्जा, रक्षा उत्पादन और डिजिटल क्रांति में भारत वैश्विक नेतृत्व कर सकता है.

आत्मनिर्भर भारत केवल आर्थिक नीति नहीं, बल्कि यह भारत की भू-राजनीतिक और रणनीतिक मजबूरी है.अमेरिका की टैरिफ नीतियां भारत को यह सिखाती हैं कि हमें मित्र देशों पर भी पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहिए.वहीं, चीन की विदेश नीति और व्यापारिक दबदबा हमें यह याद दिलाते हैं कि यदि हमने अपने उद्योग और उत्पादन को मजबूत नहीं किया, तो हम हमेशा दबाव में रहेंगे.

पीएम मोदी का “चिप से लेकर शिप तक सब कुछ भारत में” बनाने का संकल्प 2047के विकसित भारत की दिशा तय कर सकता है.लेकिन इसके लिए केवल घोषणाएं नहीं, बल्कि नीति, उद्योग, शिक्षा, अनुसंधान और जनता के सहयोग का संगठित प्रयास चाहिए.

आत्मनिर्भर भारत कोई विकल्प नहीं, बल्कि भविष्य की अनिवार्यता है.यही एक मात्र मार्ग अथवा वह दवा है, जो भारत को विदेशी निर्भरता, व्यापार घाटे और आर्थिक असंतुलन जैसी अनेक समस्‍याओं से मुक्ति दिला सकती है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. यह उनके अपने विचार हैं)