देस-परदेस : भारत-पाक रिश्तों की व्यापार-बाधा

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 01-04-2024
Foreign countries: trade barriers in India-Pakistan relations
Foreign countries: trade barriers in India-Pakistan relations

 

permodप्रमोद जोशी

भारत-पाकिस्तान व्यापार फिर से शुरू करने की संभावनाओं को लेकर दो तरह की बातें सुनाई पड़ी हैं. पहले पाकिस्तान के विदेशमंत्री मुहम्मद इशाक डार ने लंदन में रहा कि हम भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू करने की संभावनाओं पर ‘गंभीरता से’ विचार कर रहे हैं. इसके फौरन बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने सफाई दी कि ऐसा कोई औपचारिक-प्रस्ताव नहीं है.

डिप्लोमैटिक-वक्तव्यों में अक्सर उसके अर्थ छिपे होते हैं. सवाल है कि क्या ये दोनों बातें विरोधाभासी हैं? या यह एक और यू-टर्न है? या इन दोनों बातों का कोई तीसरा मतलब भी संभव है? जवाब देने के पहले समझना होगा कि रिश्ते सुधारने की ज़रूरत भारत को ज्यादा है या पाकिस्तान को? पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था से भारत की अर्थव्यवस्था दस गुना बड़ी है.

सत्तर के दशक में पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय भारत के लोगों की प्रति व्यक्ति औसत आय की दुगनी थी, आज भारतीय औसत आय पाकिस्तानी आय से करीब डेढ़ गुना ज्यादा है.भारत को पाकिस्तान से सद्भाव चाहिए. पर, भारत का साफ कहना है कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चलेंगे. ऐसा नहीं होने के कारण हम पाकिस्तान के प्रति उदासीन हैं. इस उदासीनता को दूर करने की जिम्मेदारी पाकिस्तान पर है.

पाकिस्तानी शासक जब चाहें, जो चाहें फैसले कर लेते हैं. फिर चाहते हैं कि उसकी कीमत भारत अदा करे. व्यापारिक-रिश्तों को तोड़ना ऐसा ही एक फैसला है. इसके पहले भारत को ‘तरज़ीही देश’ मानने में उनकी हिचकिचाहट इस बात की निशानी है. 

एक और यू-टर्न

पाकिस्तान की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज ज़हरा बलूच ने कहा कि लंदन में विदेशमंत्री डार अनौपचारिक रूप से बात कर रहे थे. व्यापारिक संबंधों की बहाली के लिए कोई औपचारिक राजनयिक प्रस्ताव नहीं है. हम कश्मीर पर भारत के रुख के कारण उसके साथ डील नहीं कर रहे हैं.

वस्तुतः यह एक प्रकार का ‘यू-टर्न’ है. उन्होंने यह भी कहा कि अपनी नीतियों पर पुनर्विचार का काम हम यों भी करते रहते हैं. भारत में पाकिस्तान का डिप्लोमेट भेजने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ऐसा कोई विचार नहीं है. हाल में इस आशय की खबरें थीं कि शायद दोनों देश अपने-अपने उच्चायुक्तों की बहाली कर सकते हैं.

कश्मीर बनेगा पाकिस्तान

अगस्त, 2019 में जब भारत ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370को हटाया है, पाकिस्तान ने नई दिल्ली से अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया और व्यापारिक रिश्तों को तोड़ने की घोषणा भी की थी. जवाब में भारत ने भी अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया था.

पाकिस्तानी राजनीति में कश्मीर बहुत बड़ा भावनात्मक मसला है. पाकिस्तानियों को कश्मीर को आज़ाद कराने के लिए हर साल एक दिन की छुट्टी मिलती है. 5फरवरी को वे अपने कश्मीर-मिशन से एकजुटता व्यक्त करते हैं.सत्ताधारियों ने जनता को ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान’ का सब्ज़बाग़ दिखा कर फायदा उठाया. वे कहते हैं, कश्मीर हमारी शाहरग (गले की महाधमनी) है, जिसके कट जाने पर इंसान मर जाता है. पर वे कश्मीर के सपने को पूरा करके दिखा नहीं पाए.

भारत से बेहतर रिश्ते तभी संभव हैं, जब वे अपने कश्मीर-उन्माद को त्यागें और माहौल को बेहतर बनाएं. यह काम आसान नहीं है. कश्मीर को भूल जाने का मतलब है, जहर पीना. पाकिस्तानी सियासत के लिए यह बेहद मुश्किल काम है. 

राजनयिक रिश्ते

पिछली 26 फरवरी को साद अहमद वाराइच ने नई दिल्ली में पाकिस्तान उच्चायोग में नए उप-उच्चायुक्त (चार्ज डी अफेयर) का कार्यभार संभाला. यह नियुक्ति तीन साल के लिए हुई है. अभी तक उच्चायोग के प्रभारी एजाज़ खान अस्थायी नियुक्ति पर थे. तब कयास लगाए गए कि संबंधों को सामान्य बनाने की यह शुरुआत हो सकती है.

उसी समय यह खबर भी थी कि मार्च के अंतिम सप्ताह में उच्चायोग में ‘पाकिस्तान दिवस’ कार्यक्रम मनाया जाएगा, जिसमें भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारी भाग ले सकते हैं. गत 28मार्च को यह कार्यक्रम हुआ, पर निमंत्रण के बावजूद भारत के विदेश मंत्रालय का कोई प्रतिनिधि उस कार्यक्रम में शरीक नहीं हुआ.

2019 के बाद यह पहला मौका था, जब पाकिस्तानी उच्चायोग में यह कार्यक्रम हुआ. राजनयिक टकराव और कोविड-19इन दो कारणों से यह कार्यक्रम चार साल तक नहीं मनाया गया. अब पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के बयान और दिल्ली में पाकिस्तानी कार्यक्रम के भारतीय बहिष्कार से यह निष्कर्ष आसानी से निकलता है कि रिश्तों में फौरन सुधार होने वाला नहीं है.

सही समय नहीं

संबंध सुधार के लिए यह उचित समय है भी नहीं. भारत में आम चुनाव होने वाले हैं और देश में नई सरकार जून के दूसरे सप्ताह तक ही गठित हो पाएगी. उसके पहले संबंध सुधार की बातें करने से कुछ भी मिलने वाला नहीं है. समय से पहले उम्मीदों की खेती, फलदायी नहीं होती.

बहरहाल, सब कुछ निराशाजनक भी नहीं है. कुछ दूसरी बातों पर भी ध्यान दें. पाकिस्तान के विदेशमंत्री ने लंदन में कहा था कि देश का व्यापारी समुदाय भारत के साथ व्यापारिक-रिश्तों को फिर से कायम करने का सुझाव दे रहा है. क्या पाकिस्तान की राजनीति में व्यापारियों की कोई भूमिका है?

देश की गठबंधन सरकार में नवाज़ शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नून) का प्रभावी भूमिका है. नवाज़ शरीफ पाकिस्तानी राजनीति में पहले बड़े नेता हैं, जिनकी कारोबारी पृष्ठभूमि है. अन्यथा वहाँ की सत्ता में ज्यादातर जमींदारों का दबदबा रहता है. यह पार्टी देश के अर्धशहरी मध्यवर्ग और कारोबारी वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है. यह तबका जानता है कि आर्थिक-समृद्धि का रास्ता भारत होकर निकलता है.

व्यापारियों का दबाव

पाकिस्तानी व्यापारी, भारत से रिश्ते सुधारना चाहते हैं. पाकिस्तान चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री लंबे अरसे से ऐसी माँग करता रहा है. अक्तूबर, 2013में चैंबर के तत्कालीन अध्यक्ष एसएम मुनीर ने कहा था कि दोनों देशों की समृद्धि और शांति को बढ़ाने वाला रास्ता ही सफल होगा. हमें फ्रांस, जर्मनी और इंग्लैंड के इतिहास से सीख लेनी चाहिए, जो तकरीबन साठ साल पहले तक आपस में लड़ते रहे, पर अब साथ-साथ हैं. दोनों मुल्कों के सामने विकल्प हैं कि बेवकूफों की तरह लड़ें या मिलकर समृद्धि के रास्ते खोजें.

दो और बातों पर ध्यान दें. पिछले तीन-चार वर्षों से पाकिस्तानी सेना भी की राय भी बदल रही है. सेना मानती है कि आर्थिक-सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है. पर जो बात सबसे महत्वपूर्ण साबित हो सकती है, वह है विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का दबाव. क्या वह पाकिस्तान पर दबाव डालेगा?

आईएमएफ का दबाव

2018 में विश्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि यदि दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा दिया जाए, तो पाकिस्तान के निर्यात में 80फीसदी तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है. यानी कि वह 25अरब डॉलर तक का निर्यात कर सकता है.कुछ साल पहले खबर थी कि सुजुकी कार कंपनी ने पाकिस्तान सरकार से अनुरोध किया कि हमें भारत से पुर्जे मँगाने की अनुमति मिल जाए, तो कार की कीमत काफी कम हो सकती है. अनुमति नहीं मिली. अनुमति मिलती, तो लाभ किसका होता ?

पाकिस्तान इस समय आईएमएफ से तीन अरब डॉलर के कर्ज की आखिरी किश्त का इंतज़ार कर रहा है. वह इसके बाद एक और कर्ज़ लेना चाहता है. अस्सी के दशक के बाद से यह पाकिस्तान का आईएमएफ से 14वाँ सहायता पैकेज है. पाकिस्तान के सामने डिफॉल्ट का संकट है. पिछले 10साल में चार बार ऐसी नौबत आई है.

ऐसे में सवाल पैदा होता है कि क्या वजह है कि देश को बार-बार आईएमएफ की शरण में जाना पड़ता है? आईएमएफ के कार्यक्रम में दोष है या पाकिस्तान ने उसे लागू करने में कोई गलती की है ?सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एक रिपोर्ट के अनुसार बढ़ते आयात की वजह से विदेशी भुगतान के कारण ऐसा हुआ है. इसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपैक) को भी एक बड़ा कारण माना गया है. निर्यात कम हुआ है और दूसरे तरीकों से भी उम्मीद से कम धनराशि की आवक हुई.

सेना का बोलबाला

पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली की एक बड़ी वजह वहाँ की सेना है. फौजी-तामझाम और भारत से नफरत पर केंद्रित रक्षा-नीति के कारण देश में सेना सबसे ताकतवर संस्था के रूप में उभरी है और लोकतांत्रिक संस्थाएँ कमजोर बन गईं. पाकिस्तानी डीप-स्टेट’ ने संविधान सहित विभिन्न लोकतांत्रिक संस्थानों में हेरफेर किया. स्वार्थी राजनेताओं को बढ़ावा दिया और लोकतंत्र की कीमत पर वह खुद मजबूत हुई.

हाल में पाकिस्तान को आईएमएफ से मिलने वाले कर्ज की अंतिम किश्त पर विचार के समय भारत ने कहा कि इस कर्ज की निगरानी भी होनी चाहिए. इस धन का इस्तेमाल फौजी खर्चों या दूसरे देशों से लिए गए कर्ज के भुगतान में नहीं होना चाहिए.

हाल में पाकिस्तान ने चीन से जे-10विमान कर्जे पर लिए हैं. चीन से कर्जों का विवरण पारदर्शी नहीं है. ऐसा ही सीपैक से जुड़े कर्जों के साथ भी है. चीनी कर्जों के कारण अनेक देशों की अर्थव्यवस्थाएं संकट में आ गई हैं.

मँझधार में मईशत

पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पिछले कई वर्षों से मँझधार में है. जीडीपी की करीब 10फीसदी राशि ही सरकार टैक्स के रूप में वसूल पाती है. देश में पाँच लाख से भी कम लोग आयकर रिटर्न फाइल करते हैं. पिछले कुछ समय से मुद्राकोष के दबाव में बिजली की कीमत इतनी ज्यादा बढ़ी है कि त्राहि-त्राहि मचने लगी है.

इसकी वजह है एक बड़े तबके को मिलने वाली मुफ्त बिजली. सरकारी और बिजली विभाग से जुड़े कर्मचारियों, न्यायपालिका और सेना से जुड़े लाखों लोगों को अरबों रुपये की बिजली मुफ्त मिलती है. इससे बोझा आम उपभोक्ता और छोटे उद्योगों पर पड़ रहा है, जिसकी कमर टूटी जा रही है.

पाकिस्तान के नेशनल इलेक्ट्रिक पावर रेग्युलेटरी अथॉरिटी (नेपरा) की स्टेट ऑफ इंडस्ट्री रिपोर्ट-2022के अनुसार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों (डिस्कॉम), जेनरेशन कंपनियों, नेशनल ट्रांसमिशन एंड डिस्पैच कंपनी (एनटीडीसी) और वॉटर एंड पावर डेवलपमेंट अथॉरिटी (वापडा) के सेवारत और सेवानिवृत्त कर्मचारी मुफ्त बिजली पाने के हकदार हैं.

वर्ष 2022में इन कर्मचारियों को 6.4अरब रुपये की बिजली मुफ्त में दी गई. इनमें वापडा कर्मियों को दी गई बिजली शामिल नहीं है. उन्हें कितनी बिजली दी गई? किसी को पता नहीं. नेपरा अब पता लगा रहा है. कहने का मतलब है कि व्यवस्था का संचालन अराजक तरीके से हो रहा है और जिसकी जितनी ताकत है, वह उतना नोच ले रहा है. 

( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )


ALSO READ  जोखिमों से घिरी पाकिस्तान की नई सरकार