हरजिंदर
धर्मनिरपेक्षता तो यही कहती है कि सरकार को मजहब से कोई नाता नहीं रखना चाहिए. सरकार का काम है लोगों के धर्म, जाति और उनकी हैसियत की परवाह किए बिना ऐसी नीतियां बनाएं और लागू करे जो सबको फायदा पहंुचाएं, लेकिन भारत में उसका जो रूप अपनाया गया उसमें कोशिश यही रहती है कि सभी तरह के लोगों, धर्मों वगैरह को साथ लेकर चला जाए.
बेशक यह तरीका धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा के लिहाज से भले ही सही न ठहरता हो, लेकिन इस समय जिस तरह से नफरत का माहौल हर तरफ बन रहा है. इस रास्ते को अपनाने में ही समझदारी नजर आने लगी है.
इसकी एक मिसाल पिछले हफ्ते तेलंगाना में देखने को मिली.
तेलंगाना विधानसभा परिसर में एक साथ एक मंदिर, एक मस्जिद और एक चर्च का उद्घाटन किया गया. इन तीनों के लिए वहां अलग-अलग इमारत बनाई गई है. यह जरूर है कि इससे वहां के कर्मचारियों, अफसरों और विधायकों को एक अतिरिक्त सुविधा मिल जाएगी.
आप इससे यह भी समझ सकते हैं कि वहां की सरकार विभिन्न धर्मों में कोई भेदभाव नहीं करती है. राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने इस मौके पर यह कहा भी कि तेलंगाना ने सांप्रदायिक सदभाव की एक मिसाल कायम की है.
ठीक यहीं पर यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि क्या विधानसभा परिसर में इसकी वाकई कोई जरूरत थी ? जब यह नहीं था तो क्या विधायकों, अफसरों, कर्मचारियों को अपनी आस्था के पालन में कोई दिक्कत आती थी.
यह सचमुच में धर्मनिरपेक्षता है या उसका आडंबर ? डर यह भी लगता है कि कहीं इससे कोई स्पर्धा न शुरू हो जाए. कुछ और राज्यों की सरकारें खुद को सबका हितैषी साबित करने के लिए यही रास्ता न अपनाने लगें.
ठीक यहीं पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि तेलंगाना में यह सब तब हो रहा है जब राज्य विधानसभा के चुनाव बहुत दूर नहीं है. विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस का मुख्य मुकाबला कांग्रेस से है और कांग्रेस भी सभी समुदायों के वोट हासिल करने की जुगत भिड़ाने के लिए जानी जाती है. शायद इस होड़ में कांग्रेस को मात देने के लिए ही बीआरएस ने यह रास्ता चुना है.
भारत में जो स्थिति है, उसमें आमतौर पर सभी धर्मों के लोग अपने लिए धर्मस्थल तो खुद ही बना लेते हैं. सरकारों से उम्मीद यह की जाती है कि वह ऐसे इंतजाम करें कि सभी समुदायों की लोगों को उनका हक मिले. यह आसान नहीं है. इसका अहसास पिछले दिनों तेलंगाना में हुआ भी.
पिछले दिनों हैदराबाद मेट्रोपोलिटन विकास प्राधिकरण ने दो बेडरूम फ्लैट की एक योजना निकाली. राज्य सरकार ने यह तय किया कि इस योजना में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को उनकी आबादी के हिसाब से हिस्सा दिया जाएगा. योजना के तहत फ्लैट का अलॉटमेंट लाॅटरी से किया गया. लॉटरी का ड्रॉ जब हुआ तो पता चला कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को उसमें फ्लैट मिले ही नहीं.
राज्य सरकार ने अपनी तरफ से तो घोषणा कर दी थी, लेकिन प्राधिकरण ने उनके लिए अलग से कोई इंतजाम नहीं किया. सरकार अगर ऐसी बाधाओं का ध्यान रखे और उन्हें दूर करे तो वह अल्पसंख्यकों का ज्यादा भले करेगी. फिर शायद उसे आडंबर रचने की भी जरूरत न पड़े.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )