मलिक असगर हाशमी
नॉर्वेजियन नोबेल समिति इस वर्ष के शांति पुरस्कार की घोषणा की तैयारी कर रही है, लेकिन इस बार एक नाम चर्चा के केंद्र में है – अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प. ट्रम्प का दावा है कि उन्होंने विश्व में कई बड़े युद्धों को समाप्त किया है और इसलिए वह इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के सबसे योग्य दावेदार हैं. उन्होंने यहां तक कहा है कि अगर उन्हें यह पुरस्कार नहीं मिला तो यह अमेरिका का अपमान होगा.
ट्रम्प का कहना है कि उन्होंने अब तक कम से कम सात युद्ध समाप्त किए हैं, जिनमें कंबोडिया–थाईलैंड, कोसोवो–सर्बिया, कांगो–रवांडा, भारत–पाकिस्तान, इज़राइल–ईरान, मिस्र–इथियोपिया और आर्मेनिया–अज़रबैजान शामिल हैं. हाल ही में उन्होंने गाज़ा युद्ध पर अपनी 20-सूत्रीय शांति योजना घोषित की, जिसके बाद इज़राइल और हमास के बीच एक युद्धविराम की घोषणा हुई. इस घटनाक्रम को लेकर ट्रम्प दावा कर रहे हैं कि उन्होंने एक और युद्ध को समाप्ति की ओर बढ़ा दिया है.
हालांकि इन दावों को लेकर गंभीर सवाल भी उठ रहे हैं. कई विशेषज्ञों का मानना है कि जिन संघर्षों में ट्रम्प ने मध्यस्थता की, उनमें से कुछ पहले से ही शांत हो चुके थे या कभी पूर्ण पैमाने पर युद्ध में परिवर्तित ही नहीं हुए थे.
मिस्र और इथियोपिया के बीच नील नदी पर बांध को लेकर मतभेद जरूर रहे, लेकिन दोनों देशों में कभी औपचारिक युद्ध नहीं हुआ. इसी तरह, कोसोवो–सर्बिया का विवाद 2000 के दशक की शुरुआत से जारी है, लेकिन ट्रम्प के कार्यकाल में वह पूरी तरह सुलझा नहीं.
वहीं, भारत–पाकिस्तान के बीच मई में हुए सीमा संघर्ष के बाद ट्रम्प द्वारा घोषित युद्धविराम को लेकर पाकिस्तान ने उनका समर्थन किया, लेकिन भारत ने इसमें किसी अमेरिकी भूमिका से इनकार किया. कंबोडिया और थाईलैंड के बीच पांच दिन की झड़प के बाद ट्रम्प की पहल पर युद्धविराम तो हुआ, लेकिन केवल कंबोडिया ने ही उनकी कोशिशों की सार्वजनिक रूप से सराहना की.
ट्रम्प ने ईरान–इज़राइल संघर्ष में भी मध्यस्थता का दावा किया, जिसमें जून में युद्धविराम हुआ. पर इस युद्ध की शुरुआत में अमेरिका की भूमिका भी विवादित रही. इज़राइली हमले के जवाब में अमेरिका ने ईरानी सैन्य ठिकानों पर हमले किए थे.
इससे पहले फरवरी में ट्रम्प ने सोमालिया में ISIS के ठिकानों पर हमले का आदेश दिया, मार्च में यमन के हूथी विद्रोहियों पर अमेरिका ने बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए और सितंबर में वेनेजुएला की तस्करी से जुड़ी नौकाओं को डुबोने का निर्देश दिया. इन कार्रवाइयों ने उनकी "शांति पुरुष" की छवि को संदेह के घेरे में ला दिया है.
नोबेल शांति पुरस्कार, अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के अनुसार, उसे दिया जाना चाहिए जिसने राष्ट्रों के बीच भाईचारे, हथियारों के उन्मूलन या कमी और शांति के प्रचार में सबसे बड़ा योगदान दिया हो. लेकिन ट्रम्प की नीतियाँ , जैसे कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से दूरी बनाना, आक्रामक बयानबाज़ी और घरेलू लोकतांत्रिक संस्थाओं पर दबाव, इन आदर्शों के विपरीत दिखाई देती हैं.
ओस्लो पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की निदेशक नीना ग्रेगर कहती हैं कि ट्रम्प के प्रयासों को एकतरफा तौर पर नहीं देखा जा सकता. उनका मानना है कि गाज़ा में युद्ध समाप्त करने की पहल महत्वपूर्ण है, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह समाधान स्थायी होगा या नहीं. उन्होंने यह भी कहा कि जब नोबेल समिति किसी उम्मीदवार पर विचार करती है, तो वे उसके संपूर्ण रिकॉर्ड को ध्यान में रखती है. केवल एक पहल या समझौते को नहीं.
इतिहास गवाह है कि नोबेल शांति पुरस्कार कई बार विवादास्पद हस्तियों को भी मिला है. 1973 में अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर को वियतनाम युद्ध समाप्त करने में भूमिका के लिए सम्मानित किया गया, जबकि कई विश्लेषकों का कहना था कि उनकी नीतियों ने युद्ध को और लंबा किया. 1991 में म्यांमार की नेता आंग सान सू की को लोकतंत्र के लिए संघर्ष पर नोबेल मिला, लेकिन बाद में रोहिंग्या नरसंहार में उनकी भूमिका को लेकर उनका पुरस्कार विवादों में आया.
बराक ओबामा को 2009 में नोबेल पुरस्कार मिला, जब वह राष्ट्रपति बने कुछ ही महीने हुए थे. ट्रम्प इसी बात को लेकर अक्सर नाराज़ दिखते हैं. उन्होंने हाल ही में कहा, "अगर मेरा नाम ओबामा होता, तो मैं 10 सेकंड में नोबेल पुरस्कार जीत लेता."
इस वर्ष के लिए ट्रम्प को कई देशों और नेताओं से समर्थन प्राप्त है. इज़राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू, कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन, अर्मेनिया और अज़रबैजान के नेताओं, अमेरिकी कांग्रेसी बडी कार्टर और फाइज़र के सीईओ अल्बर्ट बोरलॉग ने उन्हें नामांकित किया है. पाकिस्तान सरकार ने उन्हें 2026 के लिए पहले ही नामांकित कर दिया है. हालांकि 2025 के पुरस्कार के लिए नामांकन की समयसीमा 31 जनवरी को समाप्त हो चुकी थी.
यदि ट्रम्प को यह पुरस्कार नहीं मिला, तो उनकी प्रतिक्रिया को लेकर भी चिंता जताई जा रही है. उन्होंने पहले ही नॉर्वे के निर्यात पर 15 प्रतिशत टैरिफ लगा दिए हैं और यह भी कहा है कि पुरस्कार नहीं मिलना अमेरिका का अपमान होगा. नॉर्वे के विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया है कि उनकी सरकार का नोबेल समिति पर कोई नियंत्रण नहीं है. यह समिति पूरी तरह स्वतंत्र है.
अंततः यह फैसला नोबेल समिति को करना है कि क्या ट्रम्प ने वास्तव में वैश्विक शांति में ऐसा योगदान दिया है जो उन्हें इस पुरस्कार के योग्य बनाता है. ट्रम्प के समर्थकों का मानना है कि उन्होंने कई संघर्षों को खत्म करने की दिशा में ठोस प्रयास किए हैं. वहीं आलोचकों का कहना है कि उनकी विवादास्पद और आक्रामक विदेश नीति, सैन्य हस्तक्षेपों और घरेलू राजनीति में विभाजनकारी रवैये के चलते उन्हें इस पुरस्कार से दूर रखा जाना चाहिए.
यह देखा जाना बाकी है कि क्या नोबेल समिति शांति को लेकर अपने पारंपरिक मानदंडों को ध्यान में रखेगी या फिर ट्रम्प की सक्रिय मध्यस्थता को ऐतिहासिक फैसला मानते हुए उन्हें यह सम्मान देगी. लेकिन इतना तय है कि उनकी दावेदारी ने इस बार के शांति पुरस्कार को सबसे अधिक चर्चित और विवादास्पद बना दिया है.
(स्रोत: अल-जज़ीरा, फॉक्स न्यूज़, ब्लूमबर्ग, सीएनबीसी)