देस-परदेस : गज़ा में अस्थायी युद्ध-विराम के बाद

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 27-11-2023
Des-Pardes: After the temporary ceasefire in Gaza
Des-Pardes: After the temporary ceasefire in Gaza

 

permodप्रमोद जोशी
 
इसराइल और हमास के बीच अस्थायी संघर्ष-विराम के चार दिन इन पंक्तियों के प्रकाशन के समय पूरे हो चुके हैं. इस दौरान दोनों पक्षों ने कुछ कैदियों या बंधकों का आदान-प्रदान किया और हिंसक गतिविधियों को रोककर रखा. सवाल पूछा जा सकता है कि अब आगे क्या होगा और यह भी कि इस आंशिक-विराम से किस को क्या मिला ?  

संभव है कि यह विराम कुछ समय के लिए बढ़ा दिया जाए. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने भी इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू को इस आशय का सुझाव दिया है, ताकि बंधकों की रिहाई कराई जा सके. अस्थायी युद्ध-विराम से स्थायी-समाधान के बारे में सोचने का मौका भी मिलेगा, बशर्ते दोनों पक्षों को हिंसा की निरर्थकता का आभास हो. मिस्री अधिकारियों को इस आशय के संकेत मिले हैं, पर इसराइल और हमास ने ऐसी कोई बात कही नहीं है. 
 
जो भी होगा उसमें इन दोनों पक्षों के अलावा अमेरिका की भूमिका भी होगी. अमेरिका को दो तरह की चिंताएं है. बड़ी संख्या में नागरिकों की मौतों का अमेरिकी जनमत पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. अगले साल चुनाव को देखते हुए बाइडन अपनी छवि को लेकर संवेदनशील हैं. दूसरे लड़ाई खत्म होने के बाद खंडहर में तब्दील हो चुके गज़ा का पुनर्निर्माण. अंततः उसकी काफी कीमत अमेरिका को चुकानी होगी. 
 
इसराइली दावा

इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने 26 नवंबर को कहा कि इस लड़ाई में हमारे तीन लक्ष्य हैं: हमास का सफाया, बंधकों की वापसी और भविष्य में गज़ा को इसराइल के लिए खतरा बनने से रोकना. हम पूर्ण विजय पाने तक लड़ते रहेंगे. 
 
पर्यवेक्षकों के अनुसार लड़ाई का दूसरा दौर शुरू हुआ, तो वह गज़ा के दक्षिणी इलाकों में चलेगा. यह ज्यादा विवादास्पद होगा, क्योंकि यहाँ नागरिकों की ज्यादा मौतें होने का अंदेशा है. कौन सा पक्ष पहले थकेगा, यह भी देखना होगा.
 
हमास की ताकत का पता लगाना आसान नहीं है. उसके काफी लड़ाके अभी सुरंगों में बैठे हैं. अलबत्ता इसराइल का दावा है कि हमास की आधी ताकत खत्म कर दी गई है. लड़ाई खत्म होने के बाद यह भी देखना होगा कि हमास की लोकप्रियता का स्तर क्या है. नागरिकों का एक तबका ऐसा भी है, जो मानता है कि हमास की हरकतों के कारण उनका जीवन खतरे में पड़ गया. 
 
बंधकों की रिहाई

हमास ने शुक्रवार को इसराइल में बंद 39 फ़लस्तीनी कैदियों के बदले 24 बंधकों को रिहा कर दिया, जिनमें 13 इसराइली नागरिक थे. शनिवार को भी 39 फ़लस्तीनी कैदियों के बदले हमास ने 17 बंधकों को रिहा किया, जिनमें चार थाईलैंड के नागरिक थे. 
 
थाईलैंड, फिलीपींस और नेपाल के नागरिकों को बंधक बनाकर रखने से हमास को यों भी कोई लाभ मिलने वाला नहीं था. कुल मिलाकर इस दौरान 50 इसराइली बंधकों के बदले में 150 फलस्तीनियों की रिहाई होनी थी. 
 
चार दिन के इस विराम के दौरान हर दिन राहत सामग्री से लदे दो सौ ट्रकों, ईंधन के चार ट्रक और चार अन्य ट्रकों को ग़ज़ा में दाख़िल होना  था, पर हमास का आरोप था कि इसराइल ने सहायता सामग्री से लदे ट्रकों को उत्तरी ग़ज़ा जाने से रोका और दक्षिणी ग़ज़ा के ऊपर ड्रोन उड़ाए. इसराइल ने कहा, ऐसा कुछ नहीं हुआ, ट्रक गए. 
 
हमास को राहत
 
बहरहाल हमास ने इस बिना पर बंधकों की रिहाई में कुछ विलंब भी किया. विशेषज्ञ मानते हैं कि इस संघर्ष-विराम से हमास को साँस लेने का मौका मिला है. इसराइली हमलों ने उसके अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है. चार दिनों की मोहलत भी अस्तित्व-रक्षा में ‘डूबते को तिनके का सहारा’ बनेगी. वह अपनी रणनीति में बदलाव कर सकता है और अपने लड़ाकों की तैनाती में फेरबदल. 
 
युद्ध विराम से उन्हें शेष बंधकों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने का मौका भी मिलेगा, जहाँ इसराइल की पहुँच न हो. हमास के पास अब भी करीब पौने दो सौ बंधक हैं, जो सौदेबाज़ी में उसके काम आएंगे. पर इतनी बड़ी संख्या में बंधकों को सुरक्षित रखना आसान काम नहीं है. 
 
अस्पताल या ‘मौत का घर’
 
गत 18 नवंबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र की एक टीम ने अल-शिफा अस्पताल का दौरा किया और उसके बाद जारी बयान में कहा कि अस्पताल ‘डैथ ज़ोन’ बन गया है. अस्पताल के प्रवेश द्वार पर ही सामूहिक कब्र बनी हुई है, जिसमें 80 से ज्यादा लोग दफन हैं. 
 
इसराइल ने अल-शिफा अस्पताल के सीसीटीवी कैमरा की 7 अक्तूबर की रिकॉर्डिंग की कुछ फुटेज को जारी किया है, जिसमें हमास के हथियारबंद लोग एक नेपाली और एक थाई बंधक को लाते हुए देखे जा सकते हैं. एक घायल बंधक स्ट्रेचर पर था. 
 
इसका अर्थ यह लगाया गया कि हमास ने इस अस्पताल को अपना ठिकाना बना रखा था और अस्पताल के लोग हमास के कार्यकर्ताओं की तरह काम कर रहे थे. हमास का कहना है कि अल-शिफा अस्पताल सबके लिए खुला था.
 
इलाज करते समय डॉक्टर व्यक्ति की नागरिकता, धर्म वगैरह को नहीं देखते और न वे पुलिस अधिकारी जैसा भूमिका निभाते हैं. हमास मानता है कि 7 अक्तूबर को घायल हुए बंधकों को वे इस अस्पताल में ले गए थे. 
सवाल यह है कि वे मरीज के रूप में ले जाए गए थे या कैदी के रूप में.
 
हमास का कहना है कि कुछ बंधक इसराइली हवाई हमले में भी घायल हुए थे. इसराइल ने अस्पताल और उसके आसपास कुछ बंधकों की लाशें मिलने का दावा किया है और कहा है कि हमास ने उनकी हत्या कर दी. इस प्रकार के आरोपों और प्रत्यारोपों की पुष्टि करना आसान नहीं होता. 
 
इतनी मौतों की जिम्मेदारी
 
इस लड़ाई में 13000 से ज्यादा निर्दोष लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें साढ़े पाँच हजार से ज्यादा बच्चे हैं. इन निर्दोष नागरिकों की मौत के लिए जिम्मेदार हमास और इसराइल दोनों हैं. इस बात की गहराई से तहकीकात की जानी चाहिए कि हमास ने अल-शिफा अस्पताल के नीचे अपना कमांड-सेंटर बनाया था या नहीं. उसका इस्तेमाल ढाल की तरह किया था या नहीं. 
 
इसराइल के पास प्रमाण हैं, तो उन्हें दुनिया के सामने रखा जाना चाहिए. युद्ध के लिए अस्पताल की आड़ लेना युद्ध-अपराध है. युद्ध के दौरान स्त्रियों-बच्चों और निर्दोष नागरिकों की आड़ लेने की प्रवृत्ति दुनियाभर में देखी गई है. श्रीलंका में लिट्टे ने इसका अच्छी तरह से इस्तेमाल किया था. 
 
इसराइल पर भी आरोप है कि वह लड़ाई में फलस्तीनी नागरिकों की आड़ लेता है. इसराइल के मानवाधिकार ग्रुप बी’त्सेलेम ने इस प्रकार के विवरण तैयार किए हैं, जिनसे ज़ाहिर होता है कि इसराइली सेना पश्चिमी किनारे और गज़ा में कई तरह की सैनिक गतिविधियों में फलस्तीनी कामगारों का इस्तेमाल करती है और इस तरह से उसकी सुरक्षा की दीवार तैयार हो जाती है, पर नागरिकों के जीवन पर दोनों तरफ से खतरा पैदा हो जाता है.
 
मानवाधिकार समूह

इसराइल, अक्सर मानवाधिकार समूहों को आतंकवादी संगठन घोषित करके उनपर पाबंदियाँ लगाता रहता है. उनके कार्यालयों पर छापे मारने, संपत्ति जब्त करने, कर्मचारियों को गिरफ्तार करने की कार्रवाइयाँ होती हैं. ये संगठन इसराइल के साथ-साथ फलस्तीनी प्राधिकरण और हमास के मानवाधिकार उल्लंघनों को भी दर्ज करते हैं. ऐसे संगठनों की जरूरत है, जो किसी भी पक्ष के समर्थक नहीं हों. 
 
सबसे ज्यादा आलोचना गज़ा के अल-शिफा अस्पताल में हुई इसराइली सैनिक कार्रवाई को लेकर हुई है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नियम कहते हैं कि यदि किसी अस्पताल के बारे  में संशय हो कि उसका इस्तेमाल लड़ाई के लिए किया जा रहा है, तब भी वह संरक्षित भवन ही माना जाएगा.
 
भले ही ऐसे साफ प्रमाण हों कि उसका दुरुपयोग किया गया है, तब भी. उस स्थिति से जुड़े नियम भी हैं. खासतौर से मरीजों के रूप में मौजूद अबोध नागरिकों की रक्षा होनी चाहिए. उस भवन का संरक्षित स्वरूप खत्म हो जाने के बाद भी उसमें मौजूद नागरिक संरक्षित ही माने जाएंगे. 
 
हमास की ताकत
 
एक सवाल रह-रहकर पूछा जाता है कि हमास के पीछे की ताकत क्या है?  बेशक फलस्तीनियों की भावनाएं उसके साथ हैं, पर आज के ज़माने में केवल भावनाओं के सहारे लड़ाइयाँ नहीं लड़ी जातीं. हथियारों को खरीदने और सैनिकों को वेतन देने के लिए पैसे की जरूरत होती है.
 
चूंकि गज़ा की प्रशासनिक व्यवस्था भी हमास चलाता है, इसलिए उसे अध्यापकों और दूसरे कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी पैसे का इंतजाम करना होता है.ब्रिटिश पत्रिका इकोनॉमिस्ट के अनुसार हमास के हमदर्द दूसरे देशों में कारोबार करते हैं.
 
वे मनी लाउंडरिंग, खनन और दूसरे किस्म की वित्तीय गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं. पश्चिमी देशों की पाबंदियों वगैरह का सामना करते हुए वे हर साल करीब एक अरब डॉलर (करीब आठ हजार करोड़ रुपये) हमास को देते हैं. 
 
करीब 36 करोड़ डॉलर सालाना पश्चिमी किनारे और मिस्र से आने वाले सामान पर आयात कर लगाकर आता है. पर करीब 75 करोड़ डॉलर की धनराशि विदेश से आती है. कुछ धनराशि मित्र देश देते हैं, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा ईरान का बताया जाता है. इसमें ज्यादातर हिस्सा हथियारों के रूप में होता है. 
 
क्रिप्टो करेंसी
 
हमास को करोड़ों डॉलर की रकम क्रिप्टो बाजार से मिलती है. इसके अलावा हमास इस्तानबूल के पर्यटन क्षेत्र से डॉलर को हासिल करके करेंसी जमा करके लाता है. अमेरिका के वित्त विभाग का अनुमान है कि हमास ने इस्तानबूल के रेडिन करेंसी एक्सचेंज के मार्फत करीब दो करोड़ डॉलर की करेंसी हासिल की. 
 
इसराइली सूत्रों के अनुसार सबसे ज्यादा करीब 50 करोड़ डॉलर की सालाना राशि उन कारोबारों से आती है, जो हमास के निवेश से दूसरे देशों में चल रहे हैं. ऐसी ज्यादातर फर्में पश्चिम एशिया और अफ्रीकी देशों सूडान, अल्जीरिया, यूएई, कतर और तुर्की तक में पंजीकृत हैं. 
 
ये फर्में दातव्य संस्थाओं को दान देती हैं, जो हमास के पास जाता है. ऐसी ही एक फर्म सूडान का आफ्रा मॉल चलाती है. ऐसी ही एक माइनिंग कंपनी सूडान की राजधानी खारतूम में है. एक कंपनी शारजाह में भवन निर्माण का काम करती है. इन कारोबारों पर रोक लगाना आसान नहीं है. 
 
हमास के संचालक कतर की राजधानी दोहा में निवास करते हैं. इसराइल का कहना है कि तुर्की की सरकार हमास के लोगों को पासपोर्ट प्रदान करती है और उन्हें अपने यहाँ दफ्तर खोलने देती है. तुर्की की बैंकिंग-व्यवस्था अमेरिकी पाबंदियों से उन्हें बचाकर रखती है. 2021 में जी-7 देशों की फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने तुर्की को ‘ग्रे लिस्ट’ में डाल दिया था, जो आज भी जारी है. 
 
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )