देस-परदेश : एससीओ शिखर-सम्मेलन पर पड़ेंगे वैश्विक-राजनीति के छींटे

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 03-07-2023
देस-परदेश : एससीओ शिखर-सम्मेलन पर पड़ेंगे वैश्विक-राजनीति के छींटे
देस-परदेश : एससीओ शिखर-सम्मेलन पर पड़ेंगे वैश्विक-राजनीति के छींटे

 

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अमेरिका के साथ भारत के सामरिक और हाईटेक-सहयोग को देखते हुए चीनी-प्रतिक्रिया मायने रखती है. इस लिहाज से भारत की अध्यक्षता में हो रहा शंघाई सहयोग संगठन का 22वाँ शिखर सम्मेलन काफी महत्वपूर्ण हो गया है. देखना होगा कि इस संगठन के माध्यम से चीन क्या अपने एंटी-अमेरिका प्रभाव का विस्तार करने की कोशिश करेगा? क्या यूक्रेन-युद्ध की छाया इसमें दिखाई पड़ेगी ?

यह शिखर सम्मेलन सदस्य देशों के नेताओं की व्यक्तिगत उपस्थिति के बजाय, वर्चुअल होने के कारण मीडिया की नजरों में उतना नहीं चढ़ा, जितना गोवा में मई के महीने में हुए विदेशमंत्रियों का सम्मेलन चर्चित हुआ था. फिर भी चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ की उपस्थिति इसे महत्वपूर्ण बना देती है.

भारत-अमेरिका रिश्तों के बदलाव के संदर्भ में इस सम्मेलन के दौरान कुछ बातें सुनने को मिलें, तो हैरत नहीं होगी. रूस-चीन प्रवर्तित इस संगठन का विस्तार यूरेशिया से निकल कर एशिया के दूसरे क्षेत्रों तक हो रहा है.

जब दुनिया में महाशक्तियों का टकराव बढ़ रहा है, तब इस संगठन की दशा-दिशा पर निगाहें बनाए रखने की जरूरत है. इस संगठन से जुड़े ज्यादातर देश चीन की ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल के साथ हैं, पर भारत उसका समर्थक नहीं है.

भारत की भूमिका

भारत दो ध्रुवों के बीच अपनी जगह बना रहा है. एससीओ पर चीन और रूस का वर्चस्व है. यहाँ तक कि संगठन का सारा कामकाज रूसी और चीनी भाषा में होता है. रूस और चीन मिलकर नई विश्व-व्यवस्था बनाना चाहते हैं. यूक्रेन-युद्ध के बाद से यह प्रक्रिया तेज हुई है.

रूस और चीन के बीच भी प्रतिस्पर्धा है. रूस के आग्रह पर ही भारत इसका सदस्य बना है. चीन के साथ भारत दूरगामी संतुलन बैठाता है. सवाल है कि भारत इस संगठन में अलग-थलग तो नहीं पड़ेगा? हमारी दिलचस्पी रूस से लगे मध्य एशिया के देशों के साथ कारोबारी और सांस्कृतिक संपर्क बनाने में है.

भारत क्वाड का सदस्य भी है, जो रूस और चीन दोनों को नापसंद है. अमेरिका, जापान और यूरोप के साथ भारत के अच्छे रिश्ते हैं. इन बातों में टकराव है, जिससे भारत बचता है. फिलहाल संधिकाल है और आर्थिक-शक्ति हमारे महत्व को स्थापित करेगी.

इस प्रक्रिया में एससीओ और ब्रिक्स की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. एससीओ के अलावा भारत, रूस और चीन ब्रिक्स के सदस्य भी हैं. ब्राजील हालांकि चीन प्रवर्तित ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ में शामिल नहीं है, पर वहाँ हाल में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद उसका झुकाव चीन की ओर बढ़ा है.

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ब्रिक्स का विस्तार

रूस और चीन की भूमिका ब्रिक्स में भी है, जिसका प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है. इस समय उसमें पाँच सदस्य हैं, पर बीस से ज्यादा देश इसकी सदस्यता चाहते हैं. खबरें हैं कि इस साल अगस्त में केप टाउन में हो रहे ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन में पाँच नए देशों की सदस्यता की घोषणा हो सकती है.

ये देश हैं सउदी अरब, इंडोनेशिया, यूएई, मिस्र और अर्जेंटीना. अनुमान लगाया जा रहा है कि यह विस्तार रूसी-चीनी प्रभाव के कारण है. इनमें सभी देश भारत के मित्र हैं, पर भविष्य की वैश्विक-राजनीति इन देशों के राष्ट्रीय-हितों पर निर्भर करेगी. क्या चीनी-पूँजी में इतनी सामर्थ्य है कि वह अपने प्रभाव-क्षेत्र का विस्तार कर सके?

ये दोनों संगठन एक प्रकार से पश्चिमी वर्चस्व को चुनौती देने का काम कर सकते हैं. दोनों में भारत की भूमिका है और वह संतुलन बैठाने का काम करेगा. इस लिहाज से इस शिखर सम्मेलन की ‘दिल्ली-घोषणा’ महत्वपूर्ण होगी.

जी-20 की पृष्ठभूमि

एससीओ के बाद सितंबर में जब दिल्ली में जी-20का शिखर सम्मेलन होगा, तब परिस्थितियाँ दूसरी होंगी. उस सम्मेलन में शी चिनफिंग और व्लादिमीर पुतिन के आगमन को लेकर भी कयास हैं. उसमें मीडिया-ऑप्टिक्स भी होगा, क्योंकि उसमें नेता व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होंगे. यह भी कहा जा रहा है कि चीनी राष्ट्रपति दो महीने बाद ही उस समय भारत आएंगे, इसलिए वे अभी नहीं आए हैं. 

एससीओ मूलतः चीन और रूस द्वारा प्रवर्तित संगठन है. दोनों इस समय एक साथ हैं. चीन के ‘बीआरआई’ के कारण यह संगठन एक नए किस्म के ध्रुवीकरण को जन्म दे सकता है. शिखर सम्मेलन के दौरान ईरान और बेलारूस की नई सदस्यता इसका संकेत दे रही है.

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वर्चुअल सम्मेलन

एससीओ सम्मेलन में शी चिनफिंग और व्लादिमीर पुतिन के अलावा भारत-पाकिस्तान रिश्तों को देखते हुए पाकिस्तान के शहबाज़ शरीफ की व्यक्तिगत उपस्थिति सबका ध्यान खींचती. फिर भी इन नेताओं की वर्चुअल-मोड पर भी कही गई बातें महत्वपूर्ण होंगी.  

गत 30 मई को जब भारत की ओर से इस सम्मेलन के वर्चुअल मोड में होने की सूचना दी गई, तब इस बदलाव का कोई कारण नहीं बताया गया था. चूंकि आजकल ऐसी विशेष परिस्थिति नहीं हैं कि नेताओं की व्यक्तिगत उपस्थिति में दिक्कत हो.

अनुमान लगाया गया था कि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ की भारत-यात्रा के कार्यक्रम फाइनल नहीं हो पाए, इसलिए सम्मेलन का प्रारूप बदला गया. दिल्ली के प्रगति मैदान में भी तैयारियाँ पूरी तरह दुरुस्त नहीं थीं.

बहरहाल अब यह सम्मेलन वर्चुअल होगा, जैसाकि 2020में रूसी अध्यक्षता में हुआ था. कोविड-19 के कारण उस समय ऐसा करना स्वाभाविक था. उसके बाद 2021में ताजिकिस्तान में हुआ सम्मेलन हाइब्रिड-मोड में हुआ था. यानी कि कुछ नेता व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए और कुछ वीडियो के मार्फत उसमें शामिल हुए.

2022 का उज्बेकिस्तान का समरकंद-सम्मेलन सभी नेताओं की व्यक्तिगत उपस्थिति में हुआ था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गए थे. वह सम्मेलन इस उस साल शुरू हुए यूक्रेन-युद्ध के कारण महत्वपूर्ण हो गया था.

कजाकिस्तान ने यूक्रेन पर रूसी हमले का समर्थन नहीं किया था. शायद यही वजह थी कि चीनी राष्ट्रपति कोविड-19के बाद से पहली बार देश के बाहर निकल कर उस सम्मेलन में शामिल होने के लिए आए थे.

गोवा-सम्मेलन

गोवा में विदेशमंत्रियों का सम्मेलन पाकिस्तानी विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी की उपस्थिति के कारण भारत-पाकिस्तान रिश्तों पर केंद्रित हो गया था. इस वजह से एससीओ की गतिविधियाँ पृष्ठभूमि में चली गईं.

एससीओ में द्विपक्षीय मसलों को उठाने की व्यवस्था नहीं है. पर दक्षिण एशिया की राजनीति के लिहाज से यह महत्वपूर्ण मौका था. पाकिस्तान का कोई विदेशमंत्री 12साल भारत आया था. प्रत्यक्षतः इस यात्रा ने कुछ दिया नहीं.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ अब दिल्ली आते, तो निश्चित रूप से सारी निगाहें उनपर रहतीं. इतना ही नहीं पूर्वी लद्दाख के गतिरोध और सीमा-विवाद के कारण चीन के राष्ट्रपति की उपस्थिति भी कड़वाहट पैदा कर सकती थी. सीमा विवाद के चलते दोनों देशों के रिश्तों में तनाव कायम है.

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आतंकवाद

आतंकवाद का मुकाबला करना एससीओ के मूल लक्ष्यों में से एक है. पर इस विषय पर भारतीय नज़रिया चीन और पाकिस्तान के दृष्टिकोण से टकराता है. जून के अंतिम सप्ताह में संरा सुरक्षा परिषद से खबर आई थी कि मुंबई हमलों की साजिश के सूत्रधारों में से एक लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी साजिद मीर पर प्रतिबंध लगाने के भारत और अमेरिका के संयुक्त प्रस्ताव को चीन ने रोक दिया.

भारत और अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267अल-कायदा प्रतिबंध समिति में एक प्रस्ताव पेश किया था. इसमें साजिद मीर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने और उस पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई थी. इस प्रस्ताव को पिछले साल सितंबर में चीन ने यह कहते हुए लटका दिया था कि वह मामले पर और विचार करना चाहता है. पिछले महीने 20जून को जब प्रस्ताव फिर से पेश किया, तो चीन ने इसके पक्ष में वोट करने से इनकार कर दिया.

चीन के निर्णय की आलोचना करते हुए संरा में भारत के प्रतिनिधि ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के ढांचे में बड़ी खामी है कि यह प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया. जिन लोगों को पूरी दुनिया ने आतंकवादी मान लिया है और वैश्विक स्तर पर प्रतिबंधित किया है, अगर उन्हें भी छिटपुट भू-राजनीतिक हितों के कारण हम संरा में बैन नहीं कर सकते, तब सच में साबित होता है कि हमारे भीतर आतंकवाद से लड़ने की इच्छा शक्ति नहीं है.

‘सिक्योर’ एससीओ

दिल्ली शिखर सम्मेलन की थीम है, ‘सिक्योर’ एससीओ की दिशा में. प्रधानमंत्री मोदी ने 2018के शिखर सम्मेलन में ‘सिक्योर’ संक्षिप्ताक्षरों का इस्तेमाल किया था. सिक्योरिटी, इकोनॉमी, कनेक्टिविटी, यूनिटी, रेस्पेक्ट और एनवायरनमेंट का संक्षिप्त रूप है ‘सिक्योर’.

शिखर बैठक के दौरान संगठन के नेता वैश्विक और क्षेत्रीय-मसलों पर विचार करेंगे और भविष्य के सहयोग की रूपरेखा भी तैयार करेंगे. इस सम्मेलन के दौरान ईरान का संगठन के नए सदस्य के रूप में स्वागत भी किया जाएगा.

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दिल्ली घोषणापत्र

इस दौरान दिल्ली घोषणापत्र भी जारी होगा, जिसे गोवा की बैठक में अंतिम रूप दिया गया था. इसमें अन्य बातों के अलावा कट्टरता रोकने की रणनीति बनाने, श्रीअन्न और संवहनीय जीवन-शैली को बढ़ावा देने, जलवायु परिवर्तन को रोकने और डिजिटल रूपांतरण को बढ़ावा देने से जुड़े हैं.

सम्मेलन के दौरान आतंकवाद, अलगाववाद, नशीली दवाओं के कारोबार और साइबर अपराधों से मिलकर लड़ने से जुड़े विषयों पर विचार होगा. इसके अलावा परिवहन, ऊर्जा, वित्त, निवेश, मुक्त व्यापार, डिजिटल अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़े विषय भी एजेंडा में हैं.

ईरान और बेलारूस दिल्ली शिखर सम्मेलन के दौरान पूर्णकालिक सदस्य घोषित किए जाएंगे. इस समय आठ देश इसके पूर्ण सदस्य हैं-भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, क़ज़ाक़िस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान. ईरान और बेलारूस के बाद पर्यवेक्षक देश अफ़ग़ानिस्तान और मंगोलिया भी सदस्य बनेंगे.

छह डायलॉग पार्टनर हैं-अजरबैजान, आर्मीनिया, कंबोडिया, नेपाल, तुर्की, श्रीलंका. नए डायलॉग पार्टनर हैं-सऊदी अरब, मिस्र, क़तर, बहरीन, कुवैत, मालदीव, यूएई और म्यांमार.

( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )


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