प्रमोद जोशी
ऐसे मौके पर जब लग रहा है कि रूस ने यूक्रेन में लड़ाई को डिप्लोमैटिक-मोर्चे पर जीत लिया है, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आ रहे हैं. दूसरी तरफ इसी परिघटना के आगे-पीछे भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते की भी संभावना है.
इन दोनों खबरों को मिलाकर पढ़ें, तो भारत की दृष्टि से साल का समापन अच्छे माहौल में होने जा रहा है. यूक्रेन में लडाई खत्म हुई, तो एक और बड़ा काम होगा. वह है रूस पर आर्थिक-पाबंदियों में कमी. इनसे भी भारत का रिश्ता है.
दूसरी तरफ अमेरिका-रूस, अमेरिका-चीन और भारत-चीन रिश्ते भी नई शक्ल ले रहे हैं. अक्सर सवाल किया जाता है कि चीन से घनिष्ठता को देखते हुए क्या रूस भारत के साथ न्याय कर पाएगा. क्यों नहीं? बल्कि रूस संतुलनकारी भूमिका निभा सकता है.
रूसी विदेश मंत्रालय ने दोनों देशों के बीच बहुआयामी सहयोग को मज़बूत करने में इस यात्रा के महत्व पर ज़ोर दिया है. राष्ट्रपति पुतिन, प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के साथ एक अलग बैठक करेंगे, जो उनके सम्मान में एक औपचारिक भोज का आयोजन करेंगी.

व्यापक-सहयोग
परिणामों में कई अंतर-सरकारी और वाणिज्यिक समझौतों के साथ-साथ एक संयुक्त वक्तव्य शामिल होने की उम्मीद है, जिससे साझेदारी की गहराई बढ़ेगी. पुतिन ने आखिरी बार दिसंबर 2021में भारत का दौरा किया था, जो कि फरवरी में रूस द्वारा यूक्रेन में युद्ध शुरू करने से कुछ महीने पहले की बात है.
माना जा रहा है कि पुतिन की यात्रा के दौरान रूसी लड़ाकू जेट और एक मिसाइल रक्षा-प्रणाली की खरीद पर चर्चा शुरू होगी. ब्लूमबर्ग न्यूज ने रविवार को मामले की जानकारी रखने वाले लोगों का हवाला देते हुए इस आशय की रिपोर्ट दी है.
इस दौरान भारत और रूस के बीच अब तक का सबसे बड़ा सैन्य समझौता हो सकता है. दूसरी तरफ रूसी संसद के निचले सदन ‘स्टेट ड्यूमा’ ने पुतिन की भारत-यात्रा से ठीक पहले भारत के साथ एक महत्वपूर्ण सैन्य समझौते को मंजूरी दी है. यह समझौता दोनों देशों के बीच लंबे समय से लंबित ‘रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स एग्रीमेंट’ (रेलोस) है.
यात्रा के ठीक पहले
यह घटनाक्रम पुतिन की भारत की निर्धारित राजकीय यात्रा से ठीक पहले हुआ है. यह यात्रा, वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए है, जिसकी शुरुआत दो दशक पहले हुई थी. तमाम कारणों की वजह से यह सुचारु नहीं हो सकी.
इस साल 18फरवरी को मॉस्को में भारत के राजदूत विनय कुमार और रूस के तत्कालीन उप रक्षामंत्री कर्नल जनरल अलेक्जेंडर फोमिन ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. रूसी समाचार एजेंसी तास के अनुसार, स्टेट ड्यूमा ने रेलोस दस्तावेज को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर संसदीय पुष्टि के लिए अपलोड कर दिया है.
रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने शुक्रवार को नई दिल्ली में कहा, ‘वे (रूस) अच्छे-बुरे, हर समय हमारे मित्र रहे हैं और हम निकट भविष्य में उनके साथ रक्षा सहयोग बंद नहीं करने जा रहे हैं, लेकिन मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूँ कि भारत अपनी नीतिगत स्वायत्तता की नीति का पालन करता है.’
उन्होंने एक उद्योग समारोह में कहा कि भारत अपने आपूर्तिकर्ताओं में विविधता ला रहा है. उन्होंने यह भी कहा: ‘लेकिन किसी भी अन्य चीज से अधिक हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि हम अपना ज्यादातर धन देश के भीतर ही खर्च करें.’
रेलोस का महत्व
रेलोस समझौता रूस-भारत सैन्य सहयोग को और मजबूत करेगा तथा दोनों देशों की सेनाओं के बीच परस्पर लॉजिस्टिक सहायता को सरल बनाएगा. रूस ने अमेरिका, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और वियतनाम जैसे देशों के साथ इसी तरह के लॉजिस्टिक समझौते पहले ही कर रखे हैं.
इस समझौते के बाद संयुक्त सैन्य अभ्यास, मानवीय सहायता एवं आपदा राहत अभियानों, पोतों की मरम्मत, ईंधन भराई तथा चिकित्सा सहायता के लिए एक-दूसरे के सैन्य अड्डों का उपयोग आसान हो जाएगा.
हमारी नौसेना के पास बड़ी संख्या में युद्धपोत, खासतौर से तलवार-श्रेणी के फ्रिगेट और विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य रूसी तकनीक पर आधारित हैं और वे कठिन आर्कटिक परिस्थितियों में भी संचालन में समर्थ हैं. अब ये पोत रूसी उत्तरी बेड़े के बंदरगाहों में लॉजिस्टिक सहायता प्राप्त कर सकेंगे.
दूसरी ओर, रूसी नौसेना भारतीय नौसैनिक अड्डों का उपयोग कर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ा सकेगी, जिसे विशेषज्ञ चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ संतुलन के रूप में देख रहे हैं.
केवल रक्षा-सहयोग ही नहीं
भारत और रूस के रिश्ते केवल रक्षा-तकनीक तक सीमित नहीं हैं. जहाँ दोनों देशों के रक्षा-सहयोग में गिरावट आ रही है, वहीं दूसरे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ रहा है. भारत ने रूस के सुदूर पूर्वी व्लादीवोस्तक में हो रहे नए विकास में भी निवेश किया है.
नरेंद्र मोदी सितम्बर 2019में ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम के सालाना अधिवेशन में शामिल होने के लिए व्लादीवोस्तक गए थे। उन्हें सम्मेलन में मुख्य अतिथि बनाया गया था. 2022में भी उन्होंने फोरम को संबोधित किया था.
एक तरफ भारत ईरान से होकर जाने वाले नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर का सहारा ले रहा है, वहीं चेन्नई-व्लादीवोस्तक समुद्री गलियारे के मार्फत भी दोनों देशों के बीच कारोबार होने लगा है. सितंबर 2019में, व्लादीवोस्तक में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मार्ग के लिए एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे.
वैश्विक-परिवर्तन
दुनिया उत्तर-औपनिवेशिक युग में है. जिस तरह डॉनल्ड ट्रंप ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं, उसी तरह रूस भी अपने पुराने गौरव और प्रतिष्ठा को हासिल करने का प्रयास कर रहा है. यही कोशिश चीन और भारत की भी है. रूस को पूर्व और पश्चिम दोनों तरफ से बढ़ रहे दबाव का सामना करने के लिए भारत और चीन की आवश्यकता है.
बहरहाल पुतिन की यात्रा के अलावा बाकी बातों के साथ कुछ बड़े किंतु-परंतु जुड़े हैं, इसलिए हमें इस बात का इंतज़ार करना होगा कि घटनाक्रम किस तरीके से खुलता है. इतना ज़रूर स्पष्ट है कि इस हफ्ते दोनों देशों के बीच कुछ बड़े समझौते होंगी.
भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग (आईआरआईजीसी) की बैठकें पारंपरिक रूप से आर्थिक और सैन्य सहयोग को शामिल करते हुए होती रही हैं, और इस बार भी उन्होंने सहयोग के नए क्षेत्रों की खोज की होगी, विशेष रूप से 21वीं सदी की आर्थिक, ऊर्जा, प्रौद्योगिकी, रक्षा और सुरक्षा चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए.
ऊर्जा सुरक्षा
भू-राजनीतिक घटनाक्रमों, खासकर रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रत्यक्ष और परोक्ष परिणामों से भारत का ऊर्जा-बाजार फायदे में रहा है, और भारत की ऊर्जा सुरक्षा में रूस फिलहाल सबसे विश्वसनीय साझेदार बन गया है. इधर ट्रंप के टैरिफ-दबाव और दूसरे कारणों से इसमें व्यवधान ज़रूर पैदा हुआ है, पर यह किस रूप में जारी रहेगा, यह देखना होगा.
मॉस्को को विश्वास है कि तेल प्रवाह अपना रास्ता खोज लेगा, और वह भारत की कई मध्यस्थों और वैकल्पिक व्यवस्थाओं के माध्यम से अप्रत्यक्ष खरीद जारी रखने की कोशिश कर रहा है. दूसरे, नई दिल्ली ने राष्ट्रीय हितों से जुड़े क्षेत्रों में अमेरिकी दबाव के आगे झुकने से इनकार किया है.
बदलती परिस्थितियों में अभी निश्चय के साथ कुछ भी कहना संभव नहीं है. पेट्रोलियम के कारोबार में भारत ने अपनी शोधन-क्षमता को बढ़ाया है, जिसके कारण यूरोप और अमेरिका सहित अनेक देशों में भारत भी पेट्रोलियम उत्पादों का प्रमुख निर्यातक बनकर उभरा है. इसके अलावा रूस के साथ व्यापारिक रिश्तों में लगातार सुधार होता गया है.
यह भी खबर है कि रूस का केंद्रीय बैंक मुंबई में दफ्तर खोलने जा रहा है. इससे व्यापार और निवेश को वास्तविक समय में आदान-प्रदान और समर्थन मिल सकता है.
राजनीतिक-सहयोग
दोनों देश, ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन और जी20जैसे कई बहुपक्षीय संगठनों में सहयोग कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र में रूस, सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करता है.
इसके अलावा आरआईसी (रूस, भारत और चीन) त्रिपक्षीय समूह को सक्रिय करने की बातें भी हवा में हैं. यूरेशियन आर्थिक संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर भी बातचीत भारत कर रहा है, जिससे बाज़ार तक पहुँच और सुविधा बढ़ेगी.
रक्षा और अंतरिक्ष
भारत और रूस के बीच रक्षा-तकनीक के क्षेत्र में तो सहयोग हुआ ही है, अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी भारत को रूस का सहारा मिला है. दोनों देशों के संयुक्त उद्यम, ब्रह्मोस मिसाइलों ने न केवल युद्ध में अपनी क्षमता साबित की है, उसके निर्यात की संभावनाएँ भी बढ़ी हैं. फिलीपींस ने तो इन मिसाइलों को खरीदा ही है, इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देशों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई है.
हाल में ऐसी खबरें हैं कि रूस ने भारत में पाँचवीं पीढ़ी के अपने सुखोई-57और एस-500के संयुक्त निर्माण पूरी तकनीक और कोड हस्तांतरण के साथ करने की भी योजना बनाई है. भारत को अभी एस-400की दो बैटरियाँ (दस्ते) और मिलनी हैं. इनके अलावा कुछ और बैटरियों को हासिल करने पर भी बात चल रही है.
अक्षय ऊर्जा, परमाणु सहयोग, शिक्षा और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में समझौते होने की संभावना है, जिससे आर्थिक परस्पर निर्भरता और मज़बूत होगी. 2021के बाद पुतिन की इस पहली भारत यात्रा की पृष्ठभूमि में, चीन में एससीओ शिखर सम्मेलन जैसे हाल के कार्यक्रम भी हैं.
रूसी नीति-निर्माता निश्चित रूप से चाहेंगे कि भारत दीर्घकालिक तेल ग्राहक बना रहे, जिससे बजट अनुमानों को स्थिर करने में मदद मिलेगी तथा सबसे बड़े निर्यात गंतव्य के रूप में चीन पर बढ़ती निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी.
(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)