बजट पर सांप्रदायिकता का बतंगड़ ?

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 27-01-2025
Communalism row over budget?
Communalism row over budget?

 

harjinderहरजिंदर

बजट से पहले का समय सरकार के लिए अलग-अलग तरह के समूहों के मिलने का समय भी होता है. आमतौर पर बजट से काफी पहले से ही विभिन्न तरह के उद्योग संगठन, ट्रेड यूनियन,  सामाजिक संस्थाएं वित्तमंत्री से मिलते हैं और उन्हें बताते हैं कि बजट में वे क्या चाहते हैं. वे अपनी  बात के समर्थन में तर्क पेश करते हैं . आंकड़ें रखते हैं. राज्यों में इस काम के लिए लोग वित्त मंत्री या मुख्यमंत्री से मिलते हैं.

ये हर साल नवंबर से जनवरी तक होने वाली एक सामान्य सी बात है . इसे लेकर कोई विवाद कभी नहीं रहता. कभी कभार कुछ समूहों की तरफ से ये बात जरूर सुनने में आ जाती है कि उसे वित्तमंत्री से मिलने का समय नहीं दिया गया. लेकिन हर बात का बतंगड़ बनाने वाले वर्तमान दौर में ऐसी मुलाकातें भी विवाद का सबब बनने लगी हैं.

पिछले हफ्ते कर्नाटक में मुस्लिम समुदाय के कुछ नेताओं ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से मुलाकात की. मुलाकात क्योंकि बजट के मौसम में हुई थी इसलिए इन नेताओं ने मुख्यमंत्री से कहा कि उन्हें अल्पसंख्यकों के लिए बजटीय प्रावधान बढ़ाने चाहिए. कर्नाटक में अभी तक अल्पसंख्यकों के लिए जो प्रावधान हैं वह कुल बजट के एक फीसदी से भी कम हैं.

इस मुलाकात की खबर बाहर आते ही हंगामा शुरू हो गया. सरकार को लानते दी जाने लगीं कि वह धार्मिक आधार पर बजट बना रही है. यहां तक कह दिया गया कि सरकार उन ताकतों को ज्यादा पैसा देने जा रही है जिन्होंने कभी देश का विभाजन किया था. एक और जुमला यह इस्तेमाल किया गया कि सरकार धार्मिक बजटिंग करने जा रही है.

ऐसी ही एक बात पिछले आम चुनाव के दौरान भी उठी थी. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सभा में यह कहा था कि यूपीए सरकार अल्पसंख्यकों को बजट में से 15 फीसदी हिस्सा देने की तैयारी कर रही थी. फिर यह भी कहा गया कि सांप्रदायिक बजटिंग की तैयारी चल रही थी. यह बात अलग है कि शरत पवार समेत विपक्ष के बहुत सारे नेताओं ने इस आरोप को बेतुका बताया था.

वैसे, धार्मिक बजटिंग जैसा दुनिया में कहीं कुछ होता है.इसकी बहुत जानकारी नहीं है. हां जेंडर बजटिंग जरूर होती है जो भारत में 2005-06 में शुरू हुई थी. इसका मकसद यह होता है कि बजट के प्रावधान तय करते समय यह ध्यान रखना कि इसके नतीजे में महिलाओं और पुरुषों में ज्यादा बराबरी कायम हो. लेकिन जब धार्मिक बजटिंग शब्द का इस्तेमाल होता है तो इसका क्या अर्थ होता है यह पता नहीं.

वैसे बजट और उसके प्रावधानों को लेकर हमेशा से ही विवाद होते रहे हैं. बजट की एक खासियत यह मानी जाती है कि इसके प्रावधानों से कोई भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं होता. हर कोई यही कहता है कि वह जितना चाहता था उससे कम प्रावधान किया गया. लेकिन पिछले कुछ समय से यह नया चलन देखने में आ रहा है. जहां यह कहा जाता है कि फलां के लिए इतना ज्यादा प्रावधान क्यों किया गया. जाहिर है कि यहां फलां से मतलब अल्पसंख्यकों से ही है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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