प्रमोद जोशी
आर्थिक और राजनीतिक-दुर्दशा का शिकार होने के बावजूद पाकिस्तान एक तरफ चीन और दूसरी तरफ तुर्की से हाथ मिलाकर दक्षिण एशिया में भारत को चुनौतियाँ देने में पीछे नहीं है. हाल में उसने सैनिक साजो-सामान की खरीद के अलावा राजनयिक मोर्चे पर भी चुनौतियाँ दी हैं. इस घटनाक्रम में पाकिस्तान के अलावा मालदीव और अफगानिस्तान जैसे देशों की भूमिकाएं भी है. एक तरफ पश्चिम एशिया में इसराइल और हमास का टकराव चल रहा है,
वहीं अदन की खाड़ी और फारस की खाड़ी से लेकर उत्तरी अरब सागर में चीन और पाकिस्तान की नौसेनाओं की गतिविधियाँ बढ़ रही हैं. पिछले कुछ वर्षों में चीन ने पाकिस्तानी नौसेना को खासतौर से उपकरणों और प्लेटफॉर्मों से सजाया है. पाकिस्तानी सेना के आधुनिकीकरण में तुर्की की भूमिका भी है, पर सबसे बड़ा हाथ चीन का है.
नवंबर के दूसरे सप्ताह में चीन और पाकिस्तान की नौसेनाओं ने अब तक का अपना सबसे बड़ा सी गार्डियन-3 नौसैनिक-अभ्यास किया, जो 11 से 17 नवंबर तक चला. आर्थिक बदहाली के बावजूद पाकिस्तान अपनी सैनिक तैयारी में कमी नहीं आने दे रहा हैं.
चीन-तालिबान रिश्ते
हालांकि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के रिश्तों में तल्ख़ी देखी जा रही है, पर चीन ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ अपने रिश्तों को काफी मज़बूत कर लिया है. तालिबान पिछले दो साल से सत्ता में है, किंतु उसे वैश्विक-मान्यता नहीं मिली है, पर चीन के साथ उसके राजनयिक संबंध शुरू हो गए हैं.
गत 1 दिसंबर को तालिबान सरकार ने घोषणा की कि उसने चीन में अपना राजदूत नियुक्त किया है. रायटर्स के अनुसार चीन सरकार ने इस विषय पर कोई टिप्पणी नहीं की. चीन ने तालिबान सरकार को मान्यता देने की औपचारिक घोषणा भी नहीं की है, पर यह साफ है कि दोनों देशों ने एक-दूसरे के यहाँ अपने राजदूतों की नियुक्ति कर दी है और ऐसा करने वाला चीन पहला देश है.
इसके पहले चीन ने सितंबर में अफ़ग़ानिस्तान में अपने राजदूत की नियुक्ति कर दी थी. तालिबानी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी बयान के मुताबिक चीनी विदेश मंत्रालय के प्रोटोकॉल ऑफिस के महानिदेशक हांग लेई ने नव नियुक्त राजदूत असदुल्लाह बिलाल करीमी से परिचय पत्र स्वीकार किया. यह भी साफ है कि तालिबान के नेतृत्व में अफ़ग़ानिस्तान चीन के ‘बॉर्डर रोड इनीशिएटिव’ में शामिल होगा.
पाकिस्तान-तुर्की
हाल में खबरें थीं कि पाकिस्तान अपने दीर्घकालिक सहयोगी तुर्की से एंटी-टैंक गाइडेड वैपन सिस्टम्स (एटीजीडब्ल्यू) खरीदने जा रहा है. इतना ही नहीं वह तुर्की की शस्त्र-निर्माता कंपनी रॉकेटसान के साथ एटीजीडब्ल्यू के सह-उत्पादन पर भी उसकी बातचीत चल रही है.
पाकिस्तान के तुर्की के साथ पुराने रक्षा-संबंध हैं, पर दोनों ने हाल में लड़ाकू जेट विमानों और मिसाइलों के साझा-निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाए हैं. तुर्की इन दिनों पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान टीएफ-एक्स का विकास कर रहा है. खबरें हैं कि पाकिस्तान को भी इस कार्यक्रम में शामिल कर लिया है.
विमान का विकास एक महंगा काम है और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इस समय खराब दौर से गुज़र रही है. पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान का विकास काफी महंगा सौदा होता है. इसके लिए जरूरी तकनीक की कीमत बहुत ज्यादा होती है. हालांकि औपचारिक रूप से कोई घोषणा नहीं है, पर बताया जाता है 200 पाकिस्तानी अधिकारी और इंजीनियर लड़ाकू कार्यक्रम के विकास में शामिल हैं.
पिछले साल नवंबर में तुर्की के सहयोग से बने पाकिस्तान कॉर्वेट पीएनएस खैबर को पाकिस्तानी नौसेना में शामिल किया गया था. पाकिस्तानी नौसेना के लिए तुर्की चार कॉर्वेट बना रहा है. इसी तरह पाकिस्तानी नौसेना की फ्रांस में बनी अगोस्ता 90बी (खालिद-क्लास) डीजल-इलेक्ट्रिक अटैक पनडुब्बी के मिड-लाइफ अपग्रेड का काम तुर्की की एक कंपनी कर रही है.
तुर्की की केमनकेस क्रूज मिसाइल पाकिस्तान ने खरीदी है. पाकिस्तान ने तुर्की से तीन प्रकार के बेरक्तर ड्रोन हासिल किए हैं. पश्चिमी देशों के साथ तनावपूर्ण संबंधों के कारण पाकिस्तान की तुर्की पर निर्भरता बढ़ गई है. तुर्की की एक कंपनी ने 2009के एक अनुबंध के तहत पाकिस्तान वायुसेना के 41एफ-16विमानों को अपग्रेड किया था. मालदीव-तुर्की
अब एक नज़र मालदीव पर डालें, जिसके नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू को ‘चीन समर्थक’ माना जाता है. हाल में उन्होंने इस किस्म के बयान दिए थे कि उनकी दिलचस्पी मालदीव के हित में है और वे भू-राजनीति के पचड़ों में पड़ना नहीं चाहेंगे.देश का राष्ट्रपति बनने के बाद अपने पहले इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि वे चीन या भारत समर्थक नहीं बल्कि मालदीव समर्थक हैं. बहरहाल उन्होंने अपनी पहली विदेश-यात्रा के लिए तुर्की को चुनकर अपनी प्राथमिकताओं को स्पष्ट किया है.
बताया जा रहा है कि मुइज़्ज़ू पहले अपने आधिकारिक विदेश दौरे के लिए सऊदी अरब जाना चाहते थे, पर वह कार्यक्रम अंतिम रूप नहीं ले सका. इसका एक मतलब यह है कि वे हिंद महासागर क्षेत्र के भौगोलिक-यथार्थ से हटकर इस्लामिक-दृष्टि से देख रहे हैं. इस्लामी लॉबी का असर उनपर है. पहले मालदीव का नया राष्ट्रपति शपथ लेने के बाद भारत का दौरा किया करता था.
भारत-विरोधी छवि
उन्होंने इस चलन को तोड़कर यह ज़ाहिर कर दिया कि वे अपनी ‘भारत विरोधी’ छवि से बाहर आना नहीं चाहते हैं. उन्होंने अपने देश में तुर्की का दूतावास खोलने की पहल भी शुरू कर दी है. 2004में आई सुनामी के बाद मालदीव में सऊदी अरब और यूएई का प्रभाव बढ़ा है.
इन देशों ने मालदीव के पुनर्निर्माण में काफ़ी मदद भी की है. मुइज़्ज़ू इनकी ओर आर्थिक कारणों से भी देख रहे हैं. पर्यटन के अलावा मालदीव में कोई बड़ी आर्थिक-गतिविधि नहीं होती है. वह दूसरे देशों पर निर्भर है. सवाल केवल आर्थिक नहीं हैं. मालदीव की भौगोलिक स्थिति सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है.
हिंद महासागर में चीन की सक्रियता के अलावा पाकिस्तान-चीन गठबंधन भी महत्वपूर्ण है. मालदीव में जब चीन-समर्थक सरकार होती है, तभी पाकिस्तानी-प्रशासन के रिश्ते भी मालदीव के साथ मधुर हो जाते हैं. मालदीव, सेशेल्स, नेपाल, भूटान और श्रीलंका जैसे हमारे छोटे पड़ोसी देश वैश्विक-राजनीति में अपने महत्व को तोलने का प्रयास कर रहे हैं.
इनके पास आर्थिक-संसाधन भी कम हैं और विकास के लिए साधनों की जरूरत है. भू-राजनीति के मकड़जाल में ये देश भी शामिल होना चाहते हैं. इसकी वजह है इनकी भौगोलिक स्थिति, जिसकी लाभ सभी देश उठाना चाहते हैं. आने वाले वर्षों में देश के पश्चिम में ईरान, सऊदी अरब, यूएई, क़तर, तुर्की और पूर्व में थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया की ताकत और उनकी भूमिकाएं बढ़ेगी.
ऐसे में ये छोटे देश भारत के हितों और खासतौर से सुरक्षा-दायित्वों की अनदेखी कर देते हैं. दूसरी तरफ तुर्की की महत्वाकांक्षा भी बढ़ रही है. हालांकि प्रकट रूप में वह भारत का प्रखर-विरोधी नहीं है, पर पाकिस्तान के साथ रिश्तों के कारण हम उसे भारत-विरोधी खेमे में मानते रहे हैं.
दूसरे कई कारणों से भी वह भारत-विरोधी खेमे में है. कश्मीर के मामले में वह पाकिस्तान का समर्थक है. उसने पाकिस्तान और अज़रबैजान के साथ मिलकर तीन देशों का एक गठबंधन बना लिया है. बांग्लादेश और अफगानिस्तान में भी वह सक्रिय है. तुर्की बड़ी तेजी से शस्त्र-निर्यातक देश के रूप में उभर रहा है. खासतौर से पाकिस्तान के साथ वह रक्षा-तकनीक में सहयोग कर रहा है.
भारत ने आर्मीनिया को शस्त्र-सामग्री देकर अपने इरादे भी स्पष्ट कर दिए हैं. इसी तरह तुर्की के पड़ोसी-प्रतिस्पर्धी ग्रीस के साथ हमारे अच्छे रिश्ते हैं. तुर्की की सायप्रस-नीति से हम सहमत नहीं हैं.भारत को अब मालदीव की गतिविधियों पर नज़र रखनी होगी.
तुर्की के दौरे के बाद वे कॉप-28में भाग लेने के लिए दुबई गए, जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी मुलाकात हुई. दोनों ने आपसी सहयोग बढ़ाने के सिलसिले में बात की और इसके लिए एक कोर ग्रुप के गठन पर भी सहमति बनी है. मुइज़्ज़ू ने पद संभालते ही भारत से कहा था कि वह अपने ‘सैनिकों’ को हटा ले. उस दिशा में क्या हुआ, अभी यह भी स्पष्ट नहीं है, पर संकेत इस बात के हैं कि मालदीव रक्षा से जुड़ी अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए तुर्की की सहायता ले सकता है.
इस बिंदु पर हमें भी विचार करना होगा. दूसरी तरफ यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि इस्लामिक देशों में तुर्की और सऊदी अरब एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी हैं. यूएई के साथ भारत के अच्छे रिश्ते हैं. इनमें रक्षा-सहयोग भी शामिल है.
यूनेस्को में चुनाव
गत 24 नवंबर को हुए यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड के उपाध्यक्ष पद के चुनाव में भारत को हराकर पाकिस्तान ने एक प्रकार की चुनौती दी है. हालांकि इस प्रकार के चुनावों के पीछे राजनीति के अलावा दूसरे कारण भी होते हैं. उपाध्यक्ष के ज्यादातर पद महत्वहीन होते हैं और अक्सर उनकी नियुक्ति आमराय से हो जाती है, चुनाव नहीं होते. पर ऐसे मौके पर जब भारत ‘ग्लोबल साउथ’ के नेतृत्व का प्रयास कर रहा है, यह चुनाव एक प्रकार की चुनौती थे. इससे पाकिस्तान का मनोबल भी बढ़ा है.
इस चुनाव में हार के अंतर ने ध्यान खींचा है. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में पाकिस्तान को मिला यह समर्थन कुछ सोचने को मज़बूर करता है. यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड की हाल में पेरिस में हुई बैठक में एशिया-प्रशांत ग्रुप की ओर से भारत को हराकर पाकिस्तान उपाध्यक्ष बना है.
58 सदस्यों वाले कार्यकारी बोर्ड में से 38ने पाकिस्तान के पक्ष में वोट डाला और भारत को 18वोट मिले. भारत को पश्चिमी देशों के वोट मिले, वहीं एशिया, अफ्रीका, अरब और लैटिन अमेरिकी देशों के वोट पाकिस्तानी खाते में गए. इन देशों को ‘ग्लोबल-साउथ’ की श्रेणी में रखा जाता है.
( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )
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