एहसान फाजिली/ श्रीनगर
नसीम शाफ़ेई का तीसरा कश्मीरी संकलन बे वनिथ ज़ानी कुस (किसको मुझे बताना चाहिए) एक महीने पहले श्रीनगर में जारी किया गया था. कश्मीरी साहित्य में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित एकमात्र महिला के काव्य संग्रह का विमोचन उन भाषाओं के लिए संजोने का क्षण था जो मूल निवासियों द्वारा हिंदुस्तानी (कश्मीरी इसे उर्दू कहते हैं) बोलने के बढ़ते चलन के कारण चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.
कश्मीर की प्रमुख साहित्यिक संस्था अदबी मरकज़ कामराज़ की वार्षिक साहित्यिक बैठक में जब 72 वर्षीय कवि ने अपनी नवीनतम पुस्तक का विमोचन किया तो जम्मू-कश्मीर कला, संस्कृति और भाषा अकादमी का पुनर्निर्मित टैगोर हॉल तालियों से गूंज उठा.
कश्मीरी भाषा में नसीम शाफ़ेई का योगदान बहुत बड़ा है. कश्मीरी साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें टैगोर पुरस्कार, राज्य पुरस्कार और कई अन्य सम्मानों से सम्मानित किया गया है.
नसीम शाफ़ेई समकालीन यूरोपीय महिला लेखकों के साथ तुलना किये जाने पर गर्व महसूस करती हैं.
नसीम ने आवाज द वॉयस को बताया कि यह किताब वर्षों से उनके कविता संग्रह का ही हिस्सा है. “नातिया कलाम (पैगंबर मोहम्मद की स्तुति में) और हुसैनी (इमाम की स्तुति) को इस संग्रह में शामिल नहीं किया गया है. आने वाले महीनों के दौरान अलग-अलग से प्रकाशित किया जाएगा.
नसीम पिछले तीन दशकों से अधिक समय से श्रीनगर के पास शिया बहुल बडगाम जिले में मुहर्रम के दौरान हुसैनी मुशायरों (पैगंबर मुहम्मद की संतान की प्रशंसा में आयोजित काव्य संगोष्ठी) में नियमित रूप से भाग ले रहीं हैं. उन्होंने कहा, "नातिया और हुसैनी शायरी के प्रकाशन के लिए लगभग 60 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है", जिसे अगले कुछ महीनों में प्रकाशित किया जा रहा है.
एक अन्य परियोजना जिसमें वह वर्तमान में लगी हुई है, वह है "शास्त्रीय कश्मीरी वानवुन (कश्मीर में शादियों और अन्य सामाजिक अवसरों के दौरान महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला कोरस, जैसा कि उन्होंने आवाज़-द वॉयस को बताया था) के संकलन पर प्रयास कर रही है.
नसीम की कविता कश्मीरियों, विशेषकर महिलाओं की करुणा और साहस की कहानी है. उनके संग्रह में कश्मीर में तीन दशक की उथल-पुथल और महिलाओं की पीड़ा को दर्ज किया गया है. ना थसे ना अक्स (न तो छाया और न ही प्रतिबिंब) उन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता, वो उस समय में परिवार और उनके व्यक्तित्व के प्रबंधन के संघर्ष में फंसी कश्मीरी महिलाओं के मन और भावनाओं को भी दर्शाता है, जब कश्मीर हिंसा और सामाजिक उथल-पुथल के बीच में था.
उन्होंने कहा, "मैं अपनी धरती और अपने लोगों से हूं और मैं आम आदमी, खासकर कश्मीरी महिलाओं की तकलीफों को महसूस करती हूं और यह मेरे लेखन के केंद्र में रहा है." उनकी कविता में महिला "एक कश्मीरी महिला के अंदर" देखने की कोशिश करती है. उन्होंने कहा कि आमतौर पर कविता में महिलाओं को बहुत कम जगह दी गई है.
नसीम ने टिप्पणी की, "कश्मीर की हर महिला एक रचनाकार है, क्योंकि वह हर स्थिति में गाती और कुछ कहती है, चाहे वह खुशी हो या दुख." इस प्रकार, वह कश्मीरी वानवुन (विवाह) गीतों या किसी प्रियजन की मृत्यु का उल्लेख करती है. "यहां तक कि जब वह (कश्मीरी महिला) अपनी गोद में एक बच्चा रखती है, तब भी महिला अपनी आंतरिक भावनाओं को प्रकट करती है".
नसीम ने न केवल कश्मीर बल्कि पूरे देश में महिला लेखकों का जिक्र करते हुए टिप्पणी की, "वह अपने अस्तित्व को पंजीकृत करना चाहती है."
वह कहती हैं कि वह कश्मीर में पिछले तीन दशकों की अशांति के दौरान एक मां, बहन या बेटी के रूप में कश्मीरी महिला की तकलीफों को महसूस कर सकती हैं.
नसीम का सबसे बड़ा दुख उन्हीं लोगों द्वारा कश्मीरी भाषा की उपेक्षा है जिनकी यह भाषा है. वह कहती हैं कि कश्मीर में स्कूल जाने वाले बच्चों के अधिकांश माता-पिता उन्हें घर पर उर्दू (हिंदुस्तानी) में बात करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.
32 वर्षों से अधिक समय तक कश्मीर के विभिन्न कॉलेजों में कश्मीरी भाषा पढ़ाने के बाद, वह अलग-अलग तरीकों से कश्मीरी कविता में योगदान दे रही हैं और न केवल घाटी के भीतर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर मुशायरों में भी भाग लेने में व्यस्त रही हैं. उनकी कविता का इटली, जर्मनी और नेपाल तक विभिन्न विदेशी भाषाओं में अनुवाद किया गया है.
कश्मीरी भाषा को बढ़ावा देने के समर्थक, नसीम शाफ़ेई उन लोगों में से हैं जिन्होंने पहली बार स्नातकोत्तर स्तर पर औपचारिक शिक्षा प्राप्त की जब 1970 के दशक के अंत में कश्मीर विश्वविद्यालय में इसकी शुरुआत हुई थी. उन्हें इस बात पर गर्व है कि उन्हें प्रोफेसर रहमान राही जैसे दिग्गजों द्वारा पढ़ाया जाता है, जो कश्मीरी भाषा के लिए एकमात्र ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता हैं.
इस वर्ष के दौरान, नसीम शफाई ने कोलकाता, शिमला और भोपाल में विभिन्न स्तरों पर आयोजित कम से कम तीन राष्ट्रीय स्तर के साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लिया है. भारत सरकार और साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित पहला सात दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय साहित्य महोत्सव 23 मार्च को शिमला में शुरू हुआ. इसका दूसरा आयोजन सितंबर में भोपाल में हुआ, जहां भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सम्मानित अतिथि थीं.
उनके पहले के दो काव्य संग्रहों में 1999 में प्रकाशित डेर्चे माक्रिथ (ओपन विंडोज़) और ना थसे ना अक्स (नाइदर शैडो नॉर रिफ्लेक्शन (2009) शामिल हैं, जिनमें से बाद वाले ने 2011 में साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता था.
शाफ़ेई के अन्य संकलन हैं 1999 में प्रकाशित डेरचे माक्रिथ (ओपन विंडोज़), और ना थसे ना अक्स (न तो शैडो ऑर रिफ्लेक्शन, 2009), बाद में उन्हें कश्मीरी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला.
उसी वर्ष उद्घाटन टैगोर साहित्य पुरस्कार के आठ विजेताओं में ना थसे ना अक्स भी शामिल थे. उनकी कविता का अंग्रेजी, उर्दू, कन्नड़, तमिल, मराठी और तेलुगु में अनुवाद किया गया है.