योग की सकारात्मक आभा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अंतिम समाधान

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari • 2 Months ago
Yoga and Ayurveda are ancient Indian systems
Yoga and Ayurveda are ancient Indian systems

 

श्री निवास पांडे

योग और आयुर्वेद एक ऐसी पुरातन भारतीय विधा है जो सम्पूर्ण मानव प्रजाति के लिए वरदान है. मन और शरीर ये दोनो रोग के स्थान हैं तथा सुख का आश्रय भी ये मन और शरीर ही हैं, जहाँ योग चित्त और मन  के विकारों के शमन का उपाय बताता है वही आयुर्वेद विस्तृत रुप से शरीर के विकार के प्रकार और उन सभी विकारों के पुर्ण रुप से निदान और स्वस्थ जीवन जीने की विधि बताता है,

हजारो वर्ष पूर्व आचार्य सुश्रुत ने स्वास्थ्य की एक अद्वितीय परिभाषा प्रदान किया है. वे कहते हैं कि- 

सम दोष: समानाग्निश्च समधातुमलक्रिया:.

प्रसन्नात्मेन्द्रियमना: स्वस्थ इत्यभिधियते..

जो व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रुप से दोष रहित हो अर्थात जिसकी सप्त धातुएँ- रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र,  और मल, मूत्र, स्वेद (पसीना)  विकार रहित हो, तथा जिसका इंद्रियाँ, मन और आत्मा प्रसन्न हो वही स्वस्थ है.

वर्तमान में  विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO )भी कुछ ऐसा ही स्वास्थ्य को परिभाषित करता है-

‘‘Health is a state of complete physical mental & social well being

and not merely an absence of disease or infirmity.’’

यदि हम WHO के स्वास्थ की परिभाषा को भी ले तो भारतीय प्राचीन पद्धति योग और आयुर्वेद उसकी कसौटी पर पूरी तरह से खरा उतरते हैं. शायद इसीलिए आज पूरे विश्व में योग और आयुर्वेद पर चर्चा और बड़े बड़े रिसर्च हो रहे है और विश्व की अधिकाधिक आवादी योग और आयुर्वेद की पद्धतियों को अपना रहे है.

आयुर्वेद मे जिस तरह से स्वस्थ मनुष्य की विस्तृत एवं सर्वांगीण व्याख्या की गयी है वैसी विस्तृत व्याख्या अन्यत्र  तथाकथित चिकत्सा शास्त्र के किसी सहित्य मे नही मिलती.

आधुनिक चिकित्सा पद्धति हर किसी के लिए सहज नही है हर व्यक्ति इसके उपचार का अर्थिक बोझ उठाने में सक्षम नहीं होता, तमाम ऐसे उदाहरण देखने को मिलता है कि परिवार का कोई सदस्य यदि किसी गम्भीर बिमारी से ग्रसित हो गया तो उसके उपचार मे परिवार के अन्य सदस्य आर्थिक तंगी के कारण मानसिक रूप से बिमार हो जाते हैं और कुछ समय अंतराल  उनमें भी कुछ शारीरिक बिमारी के लक्षण दिखाई देने लगता है.

अत: आधुनिक चिकत्सा पद्धति इतना विकसित होते हुए भी WHO के मानदण्ड पर भी रोगों के सम्पूर्ण उपचार में सफलता हासिल नही कर सका है बल्कि एक रोग के उपचार में किसी अन्य शारीरिक या मानसिक रोग की संभावना बनी रहती है.

आयुर्वेद में सिर्फ रोगों के उपचार ही नही बल्कि स्वस्थ जीवन जीने के तरीके और स्वस्थ बने रहने की एक सम्पूर्ण विधि की विस्तृत व्याख्या की गयी है. यदि व्यक्ति आयुर्वेद में बताए गए नियमो का नियमित पालन करे तो उसे किसी गम्भीर रोग के होने की संभावना बहुत कम होती है.

योग एक ऐसी विधा है जो सहज ही उप्लब्ध है. ये स्वयं से स्वानुभूति तक की एक यात्रा है जिसमें शरीर मन इंद्रिय आत्मा तक का अनुभव और उनके विकारों के स्वरुप के साथ साथ कारण और उसका निदान ( उपचार) तक संभव है और नियमपूर्वक  इस पद्धति को अपनाने से ना अर्थिक बोझ के बढ़ने की चिन्ता है ना ही किसी अन्य रोग के उत्पन होने की संभावना. साथ ही साथ स्वयं के मन मे उत्पन्न प्रसन्नता का सकारत्मक  असर अपने आसपास के लोगों और सम्पूर्ण मानव समाज पर पड़ता है.

आयुर्वेद और योग प्रकृति और समाज का दोहन नही करता बल्कि सम्पूर्ण विश्व के मानव प्रजाति पर शारीरिक मानसिक, आध्यात्मिक  रुप से सकारत्मक प्रभाव डालती है और मनुष्य को समाज तथा प्रकृति के साथ जोड़कर त्रिविध दुखों आध्यात्मिक, आधिभौतिक और अघिदैविक  से मुक्त हो आनन्दमय जीवन जीने को प्रेरित करता है.