मंच और उर्दू को समर्पित एक कलाकार टॉम ऑल्टर

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 22-06-2021
टॉम ऑल्टर
टॉम ऑल्टर

 

शाइस्ता फातिमा

नब्बे के दशक में टीवी पर एक चेहरा बार-बार नमूदार होता था, टॉम ऑल्टर का.  22 जून थॉमस बेक ऑल्टर उर्फ टॉम ऑल्टर की 71वां जन्मदिन है. 1950 में पैदा हुए टॉम के माता पिता कैथोलिक मिशनरी थे और टॉम उर्दू, उर्दू थियेटर और खासतौर पर क्रिकेट के प्रति अपनी मुहब्बत के लिए जाने जाते हैं. हालांकि यह एक जानी हुई बात है कि वह न केवल उर्दू में नाटकों या फिल्मों की स्क्रिप्ट पढ़ना पसंद करते थे, बल्कि उन्होंने मौलाना आजाद, मिर्जा गालिब, बहादुर शाह जफर जैसे कई चरित्रों को मंच पर जीवंत भी किया था. टॉम के सहज अभिनय ने इन चरित्रों को और भी बेहतर और वास्तविक बना दिया.

टॉम को देखेंगे तो नीली आंखों वाला एक गोरा, लंबा आदमी दिखाई देगा, लेकिन दिल से वह भारतीय थे. उन्होंने हाइस्कूल की पढ़ाई भारत से की और फिर उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए, लेकिन वहां उनका मन नहीं रमा और फिर हमेशा के लिए उस देश से जुड़ गए, जहां वे पैदा हुए और पले-बढ़े और यहां तक कि अपना अमेरिकी पासपोर्ट भी सरेंडर कर दिया.

मितभाषी और विनोदी शख्सियत के मालिक टॉम ऑल्टर की जड़ें संयुक्त राज्य अमेरिका में ओहियो से हैं और उनका जन्म मसूरी में हुआ. उनके घर में बाइबिल हमेशा अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू में मौजूद रहता था. अक्सर वह अपने माता-पिता से अनुवादों के पीछे का तर्क पूछते रहते थे. इतने सारे अनुवादों के पीछे, जिनसे उन्हें संचार की कला, इसे सभी के लिए सुलभ बनाने में आसानी हुई. उनके बेटे जेमी ऑल्टर के पास उनसे जुड़ी यादें है कि कैसे उनके पिता पचास और साठ के दशक के भारत में बड़े हो रहे थे और उनके पास देशी शब्दों का जखीरा था.

1972 में, एक्टिंग की पढ़ाई के लिए उन्होंने एफटीआइआइ में दाखिला लिया और वहां उर्दू उनके पाठ्यक्रम का हिस्सा था और पहली दफा वह इस भाषा से परिचित हुए.

उन्होंने अपने लिए एक उर्दू उस्ताद भी 1980 के दशक में रखा जिससे वह उर्दू भाषा पर पकड़ बनाने में कामयाब हो गए और इससे उन्हें मशहूर थियेटर कलाकार डॉ. एम. सईद आलम के साथ काम करने में मदद मिली. जैमी बताते हैं कि इस जोड़ी के काम की वजह से ही उनेक पिता को पद्मश्री मिला.

डॉ. सईद आलम कहते हैं, “माफ कीजिएगा, लेकिन हिंदी सिनेमा में उनका अभिनय बेकार कर दिया.” 15 साल तक के रिश्तों पर डॉ. आलम कहते हैं कि 2008 में, 25 जनवरी को टॉम मस्कट, ओमान में मौलाना आजाद की प्रस्तुति कर रहे थे.  और वहीं उन्हें पद्मश्री मिलने की खबर मिली. डॉ आलम के मुताबिक, टॉम की उर्दू पर कुदरती पकड़ थी और मौलाना आजाद नाटक में चरित्र को जीवंत करने के लिए यह जरूरी था. उन्होंने अपनी इस क्षमता का प्रदर्शन 1977 की फिल्म शतरंज के खिलाड़ी में कैप्टन वॉटसन के किरदार में भी किया था.

इस जोड़ी ने करीबन 11 प्रोडक्शन और करीबन 400 शो साथ में किए थे, जिसमें 118 तो सिर्फ मौलाना आजाद के ही थे. 2017 में कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद उनका निधन हो गया डॉ. आलम 2019 में आकर ही मौलाना आजाद को दोबारा शुरू कर पाए. उनके मुताबिक, “मौलाना आजाद और टॉम दोनों कद्दावर लोग थे.”

डॉ. आलम के मुताबिक, टॉम जमीन से जुड़ी शख्सियत थे और उन्होंने कभी अपने पास सेलफोन नहीं रखा. इसकी बजाए वह ईमेल के जरिए बातचीत किया करते थे. उनका अनुशासन अद्वितीय है और वह अपनी बात के पक्के थे.

टॉम ऑल्टर के साथ अपनी पहली मुलाकात को याद करते हुए, वे कहते हैं कि जिस सप्ताह वे एक साथ थे, टॉम ने उर्दू के बारे में अपने ज्ञान के बारे में एक अचूक छाप छोड़ी और आखिरी दिन ही उन्होंने मौलाना आज़ाद की लिपि के लिए डॉ आलम से पूछा कि क्या यह उर्दू में लिखा है. और तब से उन्होंने उर्दू नाटकों की पटकथा पर काम किया था, उन्हें मूल लिपि में प्रस्तुत किया गया था. वह कहते हैं,"टॉम उर्दू के बारे में बहुत अजीब थे और इसे रोमन या देवनागरी में पढ़ना कभी पसंद नहीं था."

ग्रीन रूम के माहौल के बारे में डॉ. आलम उनके विनोदी स्वभाव के बारे में बताते हैं. पेशेवर मोर्चे पर बेशक उनके मतभेद रहे हों, लेकिन यह सब बेहतरी के लिए था. वह याद करते हैं कि कैसे वे छोटी-छोटी बातों पर झगड़ते थे लेकिन अंत खेल भावना से होता था.

टॉम ऑल्टर को उनके जन्मदिन पर उनकी श्रद्धांजलि के बारे में बताते हैं, "कुछ टॉम अल्टेरी करो, उनके नाटकों के टिकट 1 रुपये में खरीदो". टिकट की कीमत के बारे में उनका तर्क है कि  टॉम का टिकट शो के लिए प्यार है और यह शुल्क देखभाल की अमर भावना को भी दर्शाता है.

टॉम ऑल्टर एक निर्देशक, अभिनेता और एक इंसान के तौर पर ईमानदार थे, जो वादे निभाने में सक्षम थे और विकट परिस्थितियों में भी शांत रहते थे. ऐसी ही एक घटना थी जब लाल किले में "लाल क़िले का आखिरी मुशायरा" का पहला शो किया जाना था और दर्शकों में अख्तरुल वासे जैसे उर्दू के दिग्गज और अन्य शामिल थे.

मंच पर दोनों के बीच की केमिस्ट्री में इम्प्रोवाइजेशन होता रहता था. ऐसी ही एक घटना है, जब गालिब के एक संवाद में उन्होंने कहा था, "दाग साहब मैं आप गोरा हूं सफेद मोहरे लुंगा, सफेद मोहरा तो काले पे सजता है, आप छोटे हैं, आपकी ख्वाइश मुझे मंजूर है" डॉ. आलम कहते हैं, "उनके बयान जैसे "सबसे अच्छा व्यायाम मंच पर अपना समय बिताना है और" "बाई बार मेरी फीस सिर्फ एक रूपये होगी" और कई और मेरे मन में गूंजते हैं.

मंच के लिए उनका अटूट सम्मान कुछ ऐसा था जो उनके समवय सितारों में काफी कम दिखता है.

अंत में सईद आलम कहते हैं, "टॉम ऑल्टर उर्दू नाटकों के सबसे सक्षम अभिनेता थे जिन्होंने अपनी इच्छा और रुचि से ऐसा करने का फैसला किया था."