अंतरधार्मिक शांति सम्मेलन: अभद्र भाषा की घटना रोकने को आगे आएं सूफीवादी और धर्माचार्य

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 04-09-2022
राष्ट्रीय अंतरधार्मिक शांति सम्मेलन: सूफीवादियों और धर्माचार्यों को अभद्र भाषा की घटनाएं रोकने को आना होगा आगे
राष्ट्रीय अंतरधार्मिक शांति सम्मेलन: सूफीवादियों और धर्माचार्यों को अभद्र भाषा की घटनाएं रोकने को आना होगा आगे

 

गुलाम कादिर /नागपुर

सूफीवाद के मानने वालों और धर्माचार्यों को देश में फैल रही अभद्र भाषा की घटनाओं को रोकने के लिए आगे आना होगा. यह बात यहां आयोजित अंतरधार्मिक सद्भाव सम्मेलन में वक्ताओं ने एक सुर में कही. 

नागपुर में यह सम्मेलन देश-दुनिया में शांति की कामना के उद्देश्य से विश्व सूफी मंच, अखिल भारतीय उलेमा और मशाइख बोर्ड (एआईयूएमबी) और बाबा ताजुद्दीन ट्रस्ट, नागपुर के सहयोग से आयोजित किया गया. 
 
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यह आयोजन दक्षिण-पश्चिम भारत के प्रसिद्ध सूफी फकीर बाबा ताजुद्दीन के उर्स के मौके पर किया गया. इसमें सभी धर्मों के आध्यात्मिक गुरुओं, सूफी-संतों, खानकाहों के सज्जादानशीन,प्रमुख विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया.
 
कार्यक्रम के एक हिस्से में केंद्रीय मंत्री और नागपुर से बीजेपी सांसद नितिन गडकरी भी मौजूद रहे. 03 सितंबर को नेशनल इंटरफेथ कॉन्फ्रेंस की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावत यानी पाठ और नात से हुई.
 
उसके बाद वक्ताओं ने पैगंबर की शख्सियत, सूफीवाद के महत्व, मौजूदा समय में अंतर-धार्मिक संवाद की आवश्यकता और अभद्र भाषा के कारण धर्मों के बीच विभाजन और शांति भंग के मुद्दे पर गहन चर्चा हुई.
 
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आयोजन का असली मकसद नफरत और सांप्रदायिक वैमनस्य के बढ़ते माहौल को खत्म करना था. इसके कारण भारत की प्राचीन समन्वित संस्कृति को नुकसान पहुंचा रहा है.
 
वक्ताओं ने एक सुर से कहा, भारत बौद्ध, जैन और सिख धर्म के ऋषियों, सूफियों और संतों सहित सभी धर्मों के मनीषियों की भूमि रही है. वस्तुतः भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक पारिस्थितिकी तंत्र का मूल तत्व विविधता में एकता है, जिसे सूफी शब्दावली में ‘कसरत में वहदत’ कहा जाता है.
 
इसी पवित्र मंशा से प्रेरित होकर, अखिल भारतीय उलेमा और मशाइख बोर्ड और बाबा ताजुद्दीन ट्रस्ट द्वारा राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया, ताकि लोगों को आपसी समझ को आत्मसात करने, धैर्य -संयम बरतने, आपसी भाईचारे और प्यार को अपनाने का आग्रह किया जा सके.
 
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सम्मेलन में प्रमुख वक्ता के तौर पर हाजी सैयद सलमान चिश्ती (चिश्ती फाउंडेशन, अजमेर शरीफ), सैयद शमीमुद्दीन अहमद मुनेमी, सूफी विद्वान और अध्यक्ष, लेखक और सज्जादानशीन खानक-ए-मुनेमी ), गोस्वामी सुशील महाराज आध्यात्मिक गुरु. सुवीर सरन लेखक, शिक्षक, प्रेरक वक्ता, डॉ ख्वाजा मो. इकरामुद्दीन शिक्षाविद, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, सद्गुरु ब्रह्मेशानंद आचार्य स्वामी (भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित, सद्गुरु ब्रह्मेशानंद आचार्य स्वामी, स्वामी सारंग जी महाराज (प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु और लखनऊ में श्री स्वामी सारंग ग्लोबल पीस फाउंडेशन के संस्थापक), परमजीत सिंह चंडोक ( दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति के सलाहकार और कार्यकारी सदस्य), आचार्य राम गोपाल दीक्षित ( प्रसिद्ध योग गुरु और ध्यान विशेषज्ञ, मोहनजी (अम्मुकेयर चैरिटेबल ट्रस्ट एंड एसीटी फाउंडेशन), नजीब जंग (पूर्व आईएएस और उपराज्यपाल दिल्ली), सैयद मोहम्मद अशरफ (सज्जादानशीन किछौछा शरीफ),सैयद तनवीर अशरफ , आलमगीर अशरफ ,बीजेपी नेता शाजिया इल्मी आदि मौजूद रहे.
 
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इस मौके पर मोहम्मद अशरफ ने कहा, अगर मौजूदा धार्मिक असामंजस्य को नहीं रोका गया तो भारत की संस्कृति पर गहरा असर पड़ेगा. सैयद सलमान चिश्ती ने जोर देकर कहा कि अभद्र भाषा एक गंभीर मुद्दा है. इसे अंतर-धार्मिक संगोष्ठियों के माध्यम से तत्काल ठीक करने की आवश्यकता है.
 
स्वामी सारंग जी महाराज ने कहा कि हमारा देश भारत दुनिया भर में एकता और विविधता के लिए जाना जाता है. हम इसे बनाए रखने के लिए काम करना होगा. डॉ ख्वाजा मोहम्मद इकरामुद्दीन ने कहा कि सूफीवाद सभी धर्मों का सम्मान करना सिखाता है.
 
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बाबा ताजुद्दीन की दरगाह पर आयोजित यह राष्ट्रीय सम्मेलन दो भागों में हो रहा है. एक सर्व धर्म सम्मेलन या अंतरधार्मिक शांति सम्मेलन और दूसरा अंतरराष्ट्रीय सूफी सम्मेलन.
 
उन्होंने कहा कि सूफिज्म को मानने वाले और धर्माचार्यों को एक साथ देश में फैल रही अभद्र भाषा की घटनाओं को रोकने के लिए आगे आना होगा. विचारों और मार्गदर्शन को सामने रखना होगा. इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य सभी के लिए प्रेम और किसी के प्रति द्वेष के सूफी संदेश को आम बनाना है.