मिथिला का खास व्यंजन तरूआ, जो दिखता पकौड़ा जैसा है पर होता नहीं

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 27-09-2023
मिथिला के खानपान में व्यंजन तरूआ की खास अहमियत है
मिथिला के खानपान में व्यंजन तरूआ की खास अहमियत है

 

मंजीत ठाकुर

बारिश हो या बादल छाएं, सोशल मीडिया पर पकौड़े ट्रेंड करने लग जाते हैं. कुछ साल पहले, सड़क से लेकर संसद तक हर तरफ पकौड़ा प्रकरण चर्चे में आ गया था. पकौड़े को लेकर कोई तंज कर रहा था, कोई आलोचना. कोई समर्थन में था तो कोई मुखालफत में.

लेकिन, सोशल मीडिया पर चल रही चटखारेदार चर्चा, तमाम राजनीति और आलोचनाओं को किनारे करके आज हम पकौड़े के जिस भाई से आप का परिचय करवा रहे हैं वह असल में पकौड़े जैसा दिखता तो है, पकौड़ा नहीं है. यह है मिथिला क्षेत्र का मशहूर व्यंजन का तरूआ.

इसको बनाने की विधि भी अलग है और किन सब्जियों से तरूआ बनता है उसका रेंज तो खैर विविधता भरा है ही.

mithila ka taruwa

इससे पहले कि आप मिथिला के खान-पान के महत्वपूर्ण हिस्से तरूआ से परिचित हो, उससे पहले मिथिला के खान-पान के बारे में एक मशहूर लोकोक्ति जानना दिलचस्प होगा. मिथिला में खान-पान की संस्कृति में तीन चीजों का होना बेहद जरूरी हैः

मिथिलाक भोजन तीन, कदली, कबकब मीन

 


"तरूआ तो तकरीबन सभी सब्जियों का बनता है. आलू, बैंगन, गोभी, लौकी, कुम्हड़ा (काशीफल), परवल, खम्हार, ओल (सूरन), अरिकंचन (अरबी के पत्ते). लेकिन मिथिला में अतिथि के सत्कार में सबसे महत्वपूर्ण तरूआ होता है तिलकोर का. तिलकोर एक किस्म का कुंदरू जैसे फल का पत्ता होता है, जिसके औषधीय गुण भी होते हैं."


 

यहां कदली यानी केला, कबकब यानी ओल या सूरन, और मीन यानी मछली. लेकिन यह जो ओल है उसे तलकर पकौड़े की तरह भी यानी तरूआ बनाकर भी खाया जाता है. शायद अचंभा लगे पर मिथिला के भोजन भंडार का यह तो महज एक नमूना है. तरूआ को लेकर एक अन्य लोकगीत है,

भिंडी भिनभिनायत भिंडी के तरुआ,

आगु आ ने रे मुँह जरुआ

हमरा बिनु उदास अछि थारी,

करगर तरुआ रसगर तरकारी

पूरा अर्थ न जानिए बस इतना ध्यान रखिए कि इस गीत में भिंडी से लेकर काशीफल तक के तरूए का जिक्र है.

Mithila cuisin

मिथिला में कहते हैं कि किसी अतिथि का स्वागत तरुआ के साथ भोजन परोसे बिना पूरा नहीं होता है, जो मिथिला क्षेत्र की पाक परंपरा में इस व्यंजन के महत्व को दर्शाता है.

तरूआ तो तकरीबन सभी सब्जियों का बनता है. आलू, बैंगन, गोभी, लौकी, कुम्हड़ा (काशीफल), परवल, खम्हार, ओल (सूरन), अरिकंचन (अरबी के पत्ते). लेकिन मिथिला में अतिथि के सत्कार में सबसे महत्वपूर्ण तरूआ होता है तिलकोर का. तिलकोर एक किस्म का कुंदरू जैसे फल का पत्ता होता है, जिसके औषधीय गुण भी होते हैं.


मिथिला में तिलकोर की बेल आपको हर घर की बाड़ी में मिल जाएगा. जानकारों का दावा है कि तिलकोर टाईप वन डायबिटीज के लिए प्राकृतिक चिकित्सा का रामबाण है. मैथिल लोग बताते हैं कि तिलकोर के नियमित सेवन से पेनक्रियाज से इंसुलिन का स्राव नियमित हो जाता है.


 

बहरहाल, मिथिला में तिलकोर ही नहीं बाकी सब्जियों का तरूआ बनाने की विधि तकरीबन एक जैसी है. इसके लिए अमूमन बेसन या चावल के आटे (जिसको मैथिली में पिठार कहा जाता है) का इस्तेमाल किया जाता है.

 

Tilkor ka taruwa

तरुआ को तलने का तरीका अलग-अलग हो सकता है, कुछ परिवार कटी हुई और लेपित सब्जियों को तवे पर भूनना पसंद करते हैं जिसका उपयोग चपाती बनाने के लिए किया जाता है, जबकि कुछ इसे कड़ाही में डीप फ्राई करते हैं जो बाद में पकौड़े जैसा दिखता है।

मिसाल के तौर पर आलू के तरुए की बात की जाए तो उसे पतले टुकड़ों में स्लाइस की तरह काटकर रख लिया जाता है. इस तरह जैसे कि चिप्स के लिए काटा जाता है. बेसन फेंटकर उसमें नमक हल्दी मिला दी जाती है और तैयार हो जाता है बैटर. अगर इच्छा हो तो थोड़ी लाल मिर्च का पाउडर भी. नमक आप स्वाद के मुताबिक डाल सकते हैं.

फिर आलू के फ्लेक को उस बेसन के बैटर में डुबोकर कड़कते तेल में तल लिया जाता है. आंच धीमी रखने से तरूआ अच्छे से पकता है.

ऐसा ही, बैंगन और तिलकोर समेत अन्य सब्जियों के लिए भी किया जाता है.

कुछ अन्य अपरंपरागत विविधताओं में नदी के झींगा और छोटी मछलियों से बने तरूआ शामिल हैं.

यह कहना बहुत मुश्किल है कि इस व्यंजन का आविष्कार कब हुआ. लेकिन कुछ ऐसे ही व्यंजनों का मैथिली क्लासिक साहित्य में उल्लेख है.

Taruwa

तरूआ को आमतौर पर विशेष अवसरों पर तैयार किया जाता है और यहां तक कि देवता और कुलदेवी को भी प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. दिवाली की रात खास व्यंजन काली देवी को उत्सर्ग करने के लिए तैयार किए जाते हैं और तरुआ इस भोजन का मुख्य आकर्षण है. इसे परिवार के सदस्यों के भोजन करने से पहले सबसे पहले देवी को अर्पित किया जाता है.

इसी तरह छठ पूजा के समापन की पूर्व संध्या पर, जब व्रती अपना उपवास तोड़ती है, तो उसके भोजन में तरूआ शामिल होता है. उस दिन बाद में, जब दोस्त और रिश्तेदार प्रसाद खाने आते हैं, तो उन्हें तरुआ परोसा जाता है.

तो अगली दफा आप जब भी किसी मैथिल दोस्त से मिलें तो उससे तरूआ खाने की फरमाईश जरूर करें. लेकिन याद रखिए, तरूआ तरूआ है, यह पकौड़ा नहीं है.