-फ़िरदौस ख़ान
इस्लाम में उदारता और सामाजिक समरसता को बहुत ज़्यादा अहमियत दी गई है. इस्लाम में हर चीज़ का हक़ है. यहां तक कि रास्ते यानी सड़क का भी हक़ है. क़ुरआन और बहुत-सी मोतबिर हदीसों में इसका ज़िक्र मिलता है.अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि सड़कों पर बैठने से बचो. सहाबा ने अर्ज़ किया कि हम लोग वहीं बैठने के लिए मजबूर हैं. ये वह जगह है, जहां हम बैठते हैं और जहां हम बात करते हैं.
इस पर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अगर तुम वहां बैठने के लिए मजबूर हो, तो रास्ते का हक़ अदा करो.
सहाबा ने पूछा कि रास्ते का हक़ क्या है?
इस पर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अपनी निगाहें नीची रखो, किसी को तकलीफ़ पहुंचाने से बचो, सलाम का जवाब दो, लोगों को अच्छे काम करने का हुक्म दो और उन्हें बुरे कामों से रोको. (सही बुख़ारी और मुस्लिम)
दरअसल इस्लाम में सबका ख़्याल रखा गया है. नीची निगाहें रखने के हुक्म से महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराध रुकते हैं, क्योंकि नज़रें नीची न करने से बेहयाई का रास्ता खुलता है.
क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है- “ऐ रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ईमान वाले मर्दों से कह दो कि वे अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करें. यह उनके लिए पाकीज़ा बात है. बेशक अल्लाह उन आमाल से बाख़बर है, जो वे लोग किया करते हैं.“ (क़ुरआन 24:30)
किसी को तकलीफ़ न पहुंचाने के हुक्म से लोगों की ज़िन्दगी बेहतर होगी. इस्लाम में हर छोटी से छोटी अच्छी बात को सदक़ा माना गया है. हज़रत अबुज़र रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया है-
☆ अपने किसी भाई के सामने तुम्हारा मुस्करा देना भी सदक़ा है.
☆ और किसी को अच्छी बात का हुक्म देना और बुरी बात से रोकना भी सदक़ा है.
☆ और किसी भटके हुए मुसाफ़िर को रास्ता बता देना भी सदक़ा है.
☆ और किसी को सवारी दिला देना, उसे सहारा देकर सवारी पर सवार कर देना और उसका सामान उठाकर उस पर रख देना भी सदक़ा है.
☆ और किसी नेत्रहीन की मदद करना भी सदक़ा है.
☆ और रास्ते से पत्थर, कांटा और हड्डी वग़ैरह हटा देना भी सदक़ा है.
☆ और अपने डोल में से अपने भाई के डोल में पानी डाल देना भी सदक़ा है.
(मिश्कात शरीफ़ और बुख़ारी शरीफ़)
इस्लाम में सलाम को बहुत अहमियत दी गई है, क्योंकि सलाम करने से लोगों में मुहब्बत, भाईचारा और सद्भाव बढ़ता है. क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है- “और जब कोई तुम्हें सलाम करे, तो तुम भी उसके जवाब में उससे बेहतर तरीक़े से सलाम किया करो या वही अल्फ़ाज़ जवाब में कह दो. बेशक अल्लाह हर चीज़ का हिसाब करने वाला है.“ (क़ुरआन 4:86)
बहुत-सी हदीसों में सलाम का ज़िक्र आया है. एक हदीस के मुताबिक़ जब एक मुसलमान दूसरे मुसलमान को सलाम कहे और वह किसी वजह से उसका जवाब न दे पाए, तो फ़रिशते उसका जवाब देते हैं. (मुसनद अल बज़्ज़र)
हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “ऐ लोगो ! सलाम को आम करो, खाना खिलाओ और रिश्तेदारों के साथ अच्छा बर्ताव करो." (सुनन इब्न माजह)
हदीसों में कहा गया है कि सलाम करने से नेकियां मिलती हैं. एक हदीस के मुताबिक़ जिसने अस्सलामु अलैकुम कहा, उसके लिए दस नेकियां लिखी जाती हैं, और जिसने अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह कहा, उसके लिए बीस नेकियां लिखी जाती हैं, और जिसने अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुह कहा, उसके लिए तीस नेकियां लिखी जाती हैं. (तबरानी कबीर)
लोगों को अच्छे काम का हुक्म देने और बुरे कामों से रोकने से माहौल ख़ुशगवार बनेगा. इस्लाम एक बेहतर समाज का हिमायती रहा है, जिसमें सब लोग मिलजुल कर रहें. क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है- “और अच्छाई और बुराई कभी बराबर नहीं हो सकती. इसलिए बुराई को अच्छाई से दूर किया करो. फिर तुम्हारे और जिसके दरम्यान दुश्मनी थी, वह तुम्हारा गहरा दोस्त बन जाएगा." (क़ुरआन 41: 34)
बेशक एक दूसरे को सलाम करने और एक दूसरे की मदद करने से सबका भला ही होगा. इससे रंजिशें ख़त्म होंगी और भाईचारा बढ़ेगा. इस्लाम में सड़कों पर गंदगी फैलाने से भी सख़्ती से मना किया गया है. इन सब बातों पर अमल करके ही रास्ते का हक़ अदा किया जा सकता है.
(लेखिका आलिमा, शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)