जुमे की नमाज़ और उमड़ने वाली भीड़ का मसला

Story by  फिदौस खान | Published by  [email protected] | Date 20-03-2024
How to find a solution to the crowd gathering in Friday prayers?
How to find a solution to the crowd gathering in Friday prayers?

 

 -फ़िरदौस ख़ान

गुज़श्ता कुछ बरसों से देश में सड़कों पर जुमे की नमाज़ पढ़ने को लेकर विवाद हो रहा है. दरअसल मुसलमानों की आबादी के लिहाज़ से मस्जिदों की तादाद बहुत कम है. आम दिनों में नमाज़ियों की तादाद कम होती है, इसलिए मस्जिदों में ही नमाज़ अदा हो जाती है. लेकिन जुमे के दिन ज़्यादा लोग नमाज़ अदा करते हैं. इस वजह से मस्जिदों में जगह कम पड़ जाती है और मजबूरन उन्हें सड़कों पर नमाज़ पढ़नी पड़ती है. रमज़ान के महीने में तो नमाज़ियों की तादाद बहुत ज़्यादा हो जाती है. नमाज़ की वजह से सड़कों पर आवागमन बाधित होता है.

अब सवाल ये है कि इस मसले को कैसे हल क्या जाए ? इस बारे में समाज के मुअज़्ज़िज़ लोगों से बात की गई. इस बारे में सबने अपने-अपने ख़्यालात ज़ाहिर किए. ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन के सदस्य व हरियाणा के करनाल शहर के वरिष्ठ अधिवक्ता मोहम्मद रफ़ीक़ चौहान कहते हैं कि जिन इलाक़ों में मस्जिदें नहीं हैं या ज़रूरत से बहुत कम हैं, तो उन इलाक़ों में मस्जिदों की तामीर करवाई जाए.

इसके लिए समाज के साहिबे हैसियत लोगों को आगे आना चाहिए. जिन मुसलमानों के पास कुछ ख़ाली जगह है, वहां भी जुमे की नमाज़ का अस्थाई इंतज़ाम हो सकता है. अगर मुस्लिम इदारों के पास जगह है, तो वे भी जुमे की नमाज़ का इंतज़ाम कर सकते हैं.

इसके अलावा संबंधित अधिकारियों को लिखित आवेदन देकर उनसे पार्कों या ख़ाली सरकारी ज़मीन पर नमाज़ पढ़ने की इजाज़त ली जा सकती है. सड़कों पर जुमे की नमाज़ की समस्या के निराकरण के लिए भविष्य की योजना तैयार की जानी चाहिए.

उत्तर प्रदेश के फ़र्रूख़ाबाद ज़िले के गांव गंगाइच में चिश्ती आश्रम, दरगाह रहमतुल्लाह शाह रहमतुल्लाह अलैह की मियां मस्जिद के ख़तीबो-इमाम हज़रत मौलाना मोहम्मद वसीम अहमद राजेपुरी साहिब कहते हैं कि मस्जिदों में जगह न होने की वजह से ही मुसलमानों को सड़कों पर नमाज़ अदा करनी पड़ती है.

इस मसले का हल निकाला जाना चाहिए. मस्जिदों में एक से ज़्यादा जमातें भी खड़ी की जा सकती हैं. इस्लामी तारीख़ गवाह है कि जब भी इस तरह का कोई मसला पेश आया है, तो उसका हल आम सहमति से ही निकाला गया है. अगर मस्जिद बहुत छोटी है और उसके बाहर सड़क पर नमाज पढ़ना मजबूरी है, तो इसके लिए प्रशासन से लिखित आवेदन देकर अनमुमति ली जा सकती है.

मोहम्मद शारिक कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के नोएडा के सेक्टर-31में स्थित मदीना मस्जिद में जुमे के दिन दो जमाते खड़ी होती हैं. एक जमात पौने एक बजे खड़ी होती है और दूसरी जमात डेढ़ बजे खड़ी होती है. इस तरह मस्जिद में ही नमाज़ हो जाती है. दीगर मस्जिदों में भी ऐसा होना चाहिए, ताकि नमाज़ियों को सड़कों पर नमाज़ न पढ़नी पड़े.    

समाजशास्त्री क़ुतुब जहां किदवई कहती हैं कि कुछ साम्प्रदायिक ताक़तें माहौल बिगाड़ने का मौक़ा तलाश रही हैं. इसलिए मुसलमानों को उन बातों से बचना चाहिए, जिनसे उन्हें माहौल ख़राब करने का मौक़ा मिले. हमारे नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि उन बातों से बचो, जिनकी वजह से सामाज में तनाव बढ़े.

हुदैबिया का वाक़िया इसकी मिसाल है. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक रहनुमा होने के बावजूद बड़ी आजिज़ शर्तों को माना और मक्का से हज किए बग़ैर ही लौट गए. इसमें बहुत बड़ी अमले हिकमत थी. उन्होंने कोई ख़ून-ख़राबा नहीं होने दिया और अपने लोगों को लेकर वापस मदीना लौट आए. मुसलमानों को हमेशा की तरह ही सब्र-ओ-तहम्मुल से काम लेना होगा.

कुछ लोग नमाज़ के वक़्त मस्जिदों के आसपास खड़े होने वाले नमाज़ियों के वाहनों को मुद्दा बना रहे हैं. इस बारे में मस्जिदों के क़रीब के घरों के बाशिन्दों से बात की गई, तो उनका कहना था कि मस्जिदों में ज़्यादातर इलाक़े के ही लोग नमाज़ अदा करते हैं. ऐसे में वे पैदल ही आते हैं.

अगर कोई दूर का बन्दा है और नमाज़ का वक़्त हो गया है. ऐसे में उसने अपने क़रीब की किसी मस्जिद के बाहर वाहन खड़ा कर दिया है, तो कोई मुद्दा नहीं है. कोई भी किसी के घर के दरवाज़े के बिलकुल सामने वाहन खड़ा नहीं करता है. अगर घर के पास किसी ने वाहन खड़ा भी कर दिया है, तो कोई बात नहीं है. नमाज़ के बाद वाहन हट ही जाएगा.

(लेखिका आलिमा, शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)