नई दिल्ली
बचपन से ही बच्चे को अलग कमरे में सुलाने को लेकर हमेशा बहस रही है। पश्चिमी देशों में बच्चों को बहुत कम उम्र से ही अलग कमरे में सुलाना आम बात है। वहीं, बंगाली संस्कृति सहित भारत के कई परिवारों में बच्चे अक्सर बड़े होने तक माता-पिता के साथ ही एक ही कमरे में सोते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि बच्चे को अलग कमरे में सुलाना उसकी स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता के विकास के लिए ज़रूरी है।
लेकिन सवाल यह है कि कब और कैसे बच्चे को अलग कमरे में सुलाना शुरू करें? आइए जानते हैं विशेषज्ञों के 5 अहम सुझाव—
आमतौर पर, तीन महीने की उम्र से ही शिशु को माँ के साथ एक ही बिस्तर पर सुलाने के बजाय पालने में लिटाना बेहतर होता है। छह-सात महीने की उम्र में उन्हें छोटे बिस्तर पर सुलाना शुरू किया जा सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि 1 से 3 साल की उम्र के बीच धीरे-धीरे बच्चों को बिल्कुल अलग कमरे में सुलाने की आदत डालनी चाहिए।
बच्चों को अचानक अलग कमरे में भेजने के बजाय उन्हें धीरे-धीरे इसकी आदत डालनी चाहिए। शुरुआत में उनके साथ बैठकर कहानियाँ सुनाएँ या लोरी गाएँ। फिर धीरे-धीरे अपनी मौजूदगी कम करते जाएँ। इस तरह बच्चा आत्मविश्वास के साथ अकेले सोना सीख जाएगा।
बच्चे को अलग कमरे में सुलाना कभी भी दंड की तरह न लगे। उन्हें समझाएँ कि यह एक नई उपलब्धि है। इसके लिए उन्हें स्टिकर, खिलौना या उनकी पसंद का कोई तोहफ़ा देकर प्रोत्साहित करें। इससे बच्चा इसे सकारात्मक अनुभव की तरह लेगा।
अलग कमरे में सोते समय बच्चे की सुरक्षा सबसे अहम है। कमरे का तापमान ठीक हो, बिस्तर और तकिए सुरक्षित हों और आस-पास कोई ख़तरा न हो। इसके अलावा, बेबी मॉनिटर या सीसीटीवी कैमरे के ज़रिए बच्चे पर नज़र रखी जा सकती है।
अगर बच्चा बीमार है या अकेले सोने से डरता है, तो माता-पिता उसके कमरे में अस्थायी तौर पर अलग सोने की व्यवस्था कर सकते हैं। इससे बच्चा सुरक्षित महसूस करेगा और माता-पिता भी निश्चिंत रहेंगे।
बच्चे मिट्टी की तरह होते हैं—जैसा माहौल उन्हें दिया जाता है, वे उसी के अनुसार ढल जाते हैं। अगर शुरुआत से ही धीरे-धीरे अलग कमरे में सोने की आदत डाली जाए, तो वे इसे आसानी से स्वीकार कर लेते हैं और आत्मनिर्भर भी बनते हैं।