नई दिल्ली
अक्सर लोग मानते हैं कि वे सीधे तौर पर चीनी नहीं खाते, लेकिन हकीकत यह है कि सॉस, पैकेज्ड जूस, केक और तमाम प्रोसेस्ड फूड्स में छिपी हुई एडेड शुगर मौजूद रहती है। ज़्यादा चीनी का सेवन न सिर्फ़ वज़न बढ़ाता है बल्कि शरीर में सूजन, टाइप-2 डायबिटीज़ और हृदय रोग जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है। धीरे-धीरे यह जिगर और पाचन तंत्र पर भी बोझ डालती है।
हालाँकि शुगर छोड़ना आसान नहीं है, लेकिन थोड़ी जागरूकता और नियंत्रण से यह संभव है। अगर आप चीनी का सेवन पूरी तरह बंद कर दें, तो महज़ 4 हफ़्तों में शरीर में चौंकाने वाले बदलाव देखने को मिल सकते हैं। आइए हफ़्ते-दर-हफ़्ता समझते हैं—
जैसे ही शुगर का स्तर कम होता है, रक्त शर्करा स्थिर होने लगता है। अचानक लगने वाली भूख और थकान कम होती है। इंसुलिन संतुलित होने से अग्न्याशय पर दबाव घटता है। इस दौरान अधिक भूख लग सकती है, लेकिन यही स्थायी मेटाबॉलिक स्वास्थ्य की नींव है। शरीर इस समय डोपामाइन (फील-गुड हार्मोन) रिलीज़ करता है। पर्याप्त पानी, संतुलित आहार और नींद बेहद ज़रूरी है।
जब शरीर से शुगर निकल जाती है, तो यह जटिल कार्बोहाइड्रेट और हेल्दी फैट्स से स्थिर ऊर्जा लेना शुरू करता है। नतीजतन, पूरे दिन एनर्जी बनी रहती है। कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) संतुलित होता है, जिससे नींद बेहतर होती है और मूड स्विंग्स घटते हैं। पाचन तंत्र मज़बूत होने लगता है और गैस, पेट फूलना जैसी समस्याएँ कम हो जाती हैं।
तीसरे हफ़्ते तक शरीर में सूजन कम होनी शुरू हो जाती है। इससे त्वचा साफ़ दिखने लगती है, जोड़ों की तकलीफ़ घटती है और आंतों का स्वास्थ्य सुधरता है। लीवर, जो अतिरिक्त शुगर की वजह से फैट जमा करता है, अब हल्का होकर डिटॉक्स और अपने सामान्य कार्य करने लगता है। साथ ही रक्तचाप भी संतुलित होने लगता है।
महज़ 30 दिनों में शुगर छोड़ने का असर प्रतिरक्षा प्रणाली पर दिखने लगता है। अतिरिक्त चीनी अब श्वेत रक्त कोशिकाओं की कार्यक्षमता को प्रभावित नहीं करती। इंसुलिन संवेदनशीलता सुधरती है, जिससे टाइप-2 डायबिटीज़ का खतरा कम हो जाता है। लिपिड प्रोफाइल में सुधार आता है और धमनियों पर दबाव कम होता है।
यानी, चीनी छोड़ने का यह छोटा कदम आपके पूरे स्वास्थ्य के लिए बड़ा बदलाव ला सकता है।