बिहार का अनवर शाह शहीद दरगाह:  हिंदू निगहबान,दिलचस्प दास्तान

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 31-08-2022
बिहार का अनवर शाह शहीद दरगाह:  हिंदू निगहबान,दिलचस्प दास्तान
बिहार का अनवर शाह शहीद दरगाह:  हिंदू निगहबान,दिलचस्प दास्तान

 

सेराज अनवर /पटना
 
इसी मौके के लिए सम्भवतः लता हया ने यह शेर लिखी होगी.
 
ऐ काश अपने मुल्क में ऐसी फिजा बने

मंदिर जले तो रंज मुसलमान को भी हो

पामाल होने पाए न  मस्जिद की आबरू

ये फिक्र मंदिरों के निगहबान की भी हो

भारत की साझी संस्कृति की नजीर देखनी हो तो बिहार के गया जिले के केंदुई गांव चले आएं.यहां एक मुस्लिम फकीर का मजार है.पांच सौ घरों की  हिंदू बस्ती में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं,लेकिन सैंकड़ों वर्षों से अनवर शाह शहीद मजार की निगाहबानी हिंदू समाज ने संभाल रखी है.आज के माहौल में जहां साम्प्रदायिकता के नाम पर असामाजिक प्रवृति के लोग जहर उगलते घूम रहे हैं, ऐसे में एक मुस्लिम बाबा के मजार का हिंदू परिवार के द्वारा देखभाल करना न सिर्फ सामाजिक सद्भाव की मिसाल है,दिलों को जोड़ने वाला भी है.

कहां है यह मजार?
 
गया शहर से सटे बोधगया मार्ग पर है केंदुई गांव. इस गांव में चार सौ साल प्राचीन अनवर शाह शहीद का मजार है.मजार का क्षेत्रफल पांच हेक्टर में फैला है.लेकिन मजार का परिसर एक कट्ठा में है. परिसर में एक कुंआ भी है.जो दाता अनवर शाह के जमाने का बताया जाता है.
 
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कुंआ में पानी नहीं है. जिस जगह पर मजार है,वह सड़क से बिलकुल सटा हुआ है. जमीन बेशकीमती है. यह गांव राजपूतों का है.लंबे अर्से तक गांव के मुखिया रहे विनोद सिंह का परिवार काफी रसूख वाला है.केंदुई विनोद सिंह के नाम से भी पहचाना जाता है.अब वह इस दुनिया में नहीं हैं.
 
उनके नाम पर वेलफेयर सोसायटी चलती है.चूंकि यहां मुस्लिम आबादी नहीं है, इसलिए विनोद सिंह वेलफेयर सोसायटी मजार का देखभाल करती है.केंदुई का असल नाम स्वराजपुरी भी बताया जाता है.कहते हैं कि यह स्वतंत्रता सेनानियों की बस्ती हुआ करती थी. एक चर्चा यह भी है कि स्वतंत्रता सेनानी यहां शरण लिया करते थे.
 
आसपास के मुस्लिम गांव के लोग केंदुई को अच्छी निगाह से देखते हैं.वजह यह है कि नफरत के माहौल में भी यहां के लोगों ने भाईचारा का दामन नहीं छोड़ा है. कभी माहौल को बिगड़ने नहीं दिया. इसकी बेहतरीन मिसाल अनवर शाह की दरगाह है,जहां सैंकड़ों सालों से हिंदू परिवार चिराग रौशन कर रहा है.
 
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कौन थे दाता अनवर शाह शहीद?

अनवर शाह शहीद एक प्रसिद्ध सूफी संत थे.दाता अनवर शाह शहीद कहां से आए.इसके पुख्ता सबूत नहीं हैं.1800 ईस्वी के पूर्व के कागजात से मालूम होता है कि अनवर शाह का खानदानी निस्बत हजरत ख्वाजा मोइन उद्दीन चिश्ती से मिलती है.
 
कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब के जमाने के यह बुजुर्ग हैं और केंदुई में उन्होंने अपना ठिकाना बना लिया.अनवर शाह के साथ उनके शागिर्द भी यहीं रहते थे.उनकी मृत्यु के बाद उन्हें उसी जगह दफन किया गया जहां उन्होंने अपना ठिकाना बनाया था.
 
मजार और उसकी जमीन के बारे में बताया जाता है कि यह बिहार राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड पटना में रजिस्टर्ड है.लेकिन,स्थानीय हिंदू समुदाय का कहना है कि यह अनवर शाह की जमीन है.यहां पर किसी का कब्जा नहीं है.
 
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दाता अनवर शाह अपनी जिंदगी में सभी धर्मों का सम्मान करते थे. दूसरे मजहब के मानने वालों अपनी जगह पर धार्मिक रीति को अदा करने की इजाजत दे रखी थी.लेकिन,व्यक्तिगत कार्य करने की मनाही थी.इसलिए आज भी इस अहाता में कोई भी व्यक्तिगत काम नहीं करता.
 
यहां पूरी होती हैं मन्नतें

अनवर शाह मजार को लेकर हिंदुओं की आस्था ऐसी है कि उनकी मांगी मन्नतें यहां पूरी होती हैं. गया और आसपास के जिलों से लोग मन्नत मांगने के लिए यहां आते है. मजार में जाकर उनकी मनोकामनाएं जल्द ही पूरी होती हैं.
 
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केंदुई और आसपास के हजारों लोगों की गहरी आस्था इस मजार के प्रति है.होली-दिवाली का शुभारम्भ यहीं से होता है. दिवंगत मुखिया विनोद सिंह के बेटे और पूर्व वार्ड पार्षद संतोष सिंह कहते हैं, ‘‘हम हमेशा अपनी होली या दिवाली इसी जगह से शुरू करते हैं. फिर मंदिर जाते हैं.’’
 
वह बताते हैं कि त्योहार हो या शादी का मौका पहली हाजिरी मजार पर होती है.उसके बाद मंदिरों में पूजा के लिए जाते हैं.होली के मौके पर होलिका दहन मजार के सामने होती है और होली की सुबह पहले मजार पर हाजिरी दी जाती है.
 
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फिर वहीं से केंदुईवासी होली का आगाज करते हैं.संतोष सिंह के मुताबिक,चूंकि गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है, इसलिए इसे आबाद रखने की जिम्मेदारी हमारे उपर है.सुबह-शाम मजार की सफाई और चिराग रौशन करने की जिम्मेवारी केंदुई के पांच सौ हिंदू घरों पर है.
 
अनवर शाह के करामात के किस्से

कहते हैं कि एक बार गांव में भयानक अकाल पड़ा.लोग बहुत परेशान थे.बाबा ने कहा कि निराश होने कि बात नहीं.लाठा कुड़ी यानी कुएं से पानी भरने का यंत्र और सामान, में आटा रख दो,गीला होगा तो उसी की रोटी खाएंगे.
 
santosh singhउन्होंने यह भी कहा कि जब तक यह बारिश से भीगेगा नहीं,तब तक अनवर भूखे रहेगा. आटा की पोटली बांध कर रख दी गई.खुदा का करिश्मा बारिश शुरू हो गई और इतनी बारिश हुई कि लोगों ने उनसे बारिश बंद होने की दुआ करने की गुजारिश की.
 
आज भी जब क्षेत्र में बारिश की कमी होती है,तो ग्रामीण बाबा अनवर शाह के सामने बारिश के लिए प्रार्थना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि बाबा केंदुई के लोगों का हर कष्ट दूर करते हैं.संतोष सिंह कहते हैं कि दाता अनवर शाह शाहीद इस क्षेत्र के एक प्रसिद्ध फकीर थे और हमारे पूर्वजों के मन में उनके लिए बहुत सम्मान है.यह सम्मान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंच गया है. भविष्य में भी यह जारी रहेगा.
 
कुआं को जलमग्न बनाने की पहल

मजार अहाता में स्थित कुआं को पुनर्जीवित करने की पहल तेज हो गई है.संतोष सिंह ने जल-जीवन-हरियाली योजना के तहत इसको आबाद करने के लिए नगर निगम और जिला प्रशासन से दरखास्त की है.स्थानीय निवासी विजय कुमार सिंह के मुताबिक, मजार की इमारत जर्जर हुई तो संतोष सिंह के दिवंगत पिता विनोद सिंह और स्थानीय लोगों ने व्यक्तिगत चंदा से छत का निर्माण कराया और परिसर को घेर कर उसमें दरवाजा लगाया ताकि उसमें जानवर न घुस सके.