आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को छठवें राष्ट्रीय जल पुरस्कार प्रदान करते हुए निजी व्यक्तियों और सार्वजनिक निकायों से जल को एक पवित्र और सीमित राष्ट्रीय संसाधन मानने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि दीर्घकालिक जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सतत प्रबंधन और सामुदायिक भागीदारी आवश्यक है। साथ ही उन्होंने आगाह किया कि भारत को अपने मीठे पानी के सीमित भंडार पर बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
एक बयान के अनुसार राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हजारों साल पहले हमारे पूर्वजों ने ऋग्वेद में कहा था, अप्सु अन्तः अमृतम् (जल में अमरता है)।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जल ही जीवन है। एक व्यक्ति भोजन के बिना कुछ दिन जीवित रह सकता है लेकिन पानी के बिना नहीं। हमें याद रखना चाहिए कि हम एक बहुत ही मूल्यवान संसाधन का उपयोग कर रहे हैं।’’
मुर्मू ने नागरिकों, संस्थाओं और सरकारों से जल को ‘‘पवित्र एवं सीमित राष्ट्रीय संसाधन’’ मानने का आग्रह किया।
राष्ट्रपति ने 10 श्रेणियों में 46 पुरस्कार विजेताओं को संरक्षण, नवाचार और कुशल जल उपयोग में उनके योगदान के लिए बधाई दी।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं उन सभी व्यक्तियों और संगठनों को बधाई देती हूं जिन्हें आज यह पुरस्कार मिला है। आप जल के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं और आपके प्रयास हमारे राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण हैं।’’
मुर्मू ने कहा कि जलवायु परिवर्तन जल चक्र को बाधित कर रहा है, जिससे पहले से ही सीमित जल संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में सरकार और लोगों को जल की उपलब्धता और जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।’’
उन्होंने भूजल को संरक्षित करने, चक्रीय जल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और उद्योगों में पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया।