आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आज़मी ने राज्य सरकार के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि मराठी पहली भाषा होनी चाहिए, अंग्रेज़ी दूसरी और हिंदी तीसरी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी मांग की कि हिंदी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाना चाहिए.
मुंबई में पत्रकारों से बातचीत करते हुए अबू आज़मी ने कहा, “मराठी हमारी मातृभाषा है, इसलिए वह पहली होनी चाहिए। अंग्रेज़ी को लोग गुलामी की मानसिकता से दूसरी भाषा बना लेते हैं, लेकिन मैं हमेशा कहता हूं कि तीसरी भाषा हिंदी होनी चाहिए. संसद में एक समिति है जो पूरे देश में हिंदी को बढ़ावा देती है। केंद्र सरकार के ज़्यादातर काम भी हिंदी में ही होते हैं. कुछ लोग इस पर राजनीति करते हैं, लेकिन मैं कहता हूं कि हिंदी को 100% राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाना चाहिए। यह एक ऐसी भाषा है जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक बोली और समझी जाती है. अगर मैं असम जाऊं तो क्या असमिया सीखूं?”
इस मुद्दे पर राज्य सरकार की ओर से भी गतिविधियां तेज़ हो गई हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि तीन-भाषा फॉर्मूले पर अंतिम निर्णय साहित्यकारों, भाषा विशेषज्ञों, राजनीतिक नेताओं और अन्य सभी संबंधित पक्षों से परामर्श के बाद ही लिया जाएगा। रविवार रात मुख्यमंत्री आवास 'वर्षा' पर इस विषय पर एक अहम बैठक हुई, जिसमें उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे, राज्य मंत्री डॉ. पंकज भोयर और शिक्षा विभाग के अधिकारी मौजूद थे.
बैठक में यह तय किया गया कि सभी राज्यों की स्थिति की समीक्षा की जाएगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नई शिक्षा नीति के संदर्भ में 'अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट' के तहत मराठी छात्रों को कोई नुकसान न हो. साथ ही अन्य संभावित विकल्पों की भी खोज की जाएगी. सभी संबंधित पक्षों को एक विस्तृत प्रस्तुति दी जाएगी, और उनके साथ गहन चर्चा की जाएगी. मुख्यमंत्री फडणवीस ने यह स्पष्ट किया कि जब तक यह सलाह-मशविरा पूरा नहीं हो जाता, तब तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया जाएगा. अब स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे इस प्रक्रिया के अगले चरण की शुरुआत करेंगे.
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र सरकार को अपनी भाषा नीति को लेकर पहले भी आलोचना का सामना करना पड़ा है. 16 अप्रैल को सरकार ने एक आदेश जारी कर हिंदी को मराठी और अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में अनिवार्य तीसरी भाषा बना दिया था. इसके बाद हुई आलोचना को देखते हुए सरकार ने अपने फैसले में संशोधन किया और कहा कि हिंदी तीसरी भाषा रहेगी, लेकिन अगर कोई छात्र अन्य भाषा पढ़ना चाहता है, तो कम से कम 20 छात्रों की मांग ज़रूरी होगी.
हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने की मांग पर राजनीति तेज़ हो गई है, लेकिन अबू आज़मी का बयान इस बहस को और गति दे सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य और केंद्र सरकार इस दिशा में क्या कदम उठाती हैं.