आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
कश्मीर में थियेटर की परंपरा फिर से रफ्तार पकड़ रही है। घाटी के कई हिस्सों में इन दिनों रंगमंच की रिहर्सलें जोर-शोर से चल रही हैं, जहां युवा कलाकार मंच पर अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए तैयार हो रहे हैं। यह पहल न केवल कला को पुनर्जीवित करने की दिशा में कदम है, बल्कि कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास भी है.
कश्मीर का थियेटर हजारों वर्षों पुराना इतिहास समेटे हुए है। यह केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं रहा, बल्कि समाज के मुद्दों को उठाने और संवाद का जरिया भी रहा है। इसी परंपरा को जीवित रखने में कई वरिष्ठ कलाकार और फिल्म निर्देशक लगातार जुटे हैं। इनमें ‘कश्मीर कला मंच’ का नाम सबसे प्रमुख है, जो 1983 से सक्रिय है और मुश्किल हालातों में भी कला की लौ जलाए रखे हुए है.
इस मंच ने कई युवा कलाकारों को प्रशिक्षित किया है। रिहर्सल के दौरान उन्हें संवाद अदायगी, अभिव्यक्ति, समय-निर्धारण और मंच संचालन की बारीकियां सिखाई जाती हैं। कलाकारों का कहना है कि थियेटर केवल मंच पर अभिनय भर नहीं, बल्कि टीमवर्क की मिसाल है — जहां मेकअप आर्टिस्ट, मंच सज्जा और तकनीकी टीम का समान योगदान होता है.
युवा कलाकार बीनीश मंज़ूर कहती हैं, “लोग समझते हैं कि नाटक कुछ दिनों में तैयार हो जाते हैं, जबकि हम महीनों तक मेहनत करते हैं। कश्मीर की संस्कृति सिर्फ खाने तक सीमित नहीं, बल्कि थियेटर इसकी आत्मा है।” वहीं स्टेज एक्टर जहांगीर फराश मानते हैं कि “थियेटर सबसे बड़ा स्कूल है, जो अनुशासन और टीम भावना सिखाता है.