तिरुवनंतपुरम
केरल की वामपंथी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव केरल (IFFK) में फिल्मों के प्रदर्शन को लेकर केंद्र सरकार को सीधी चुनौती दी है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और केरल चलचित्र अकादमी ने स्पष्ट कर दिया है कि 30वें आईएफएफके में चयनित सभी फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा, चाहे उन्हें केंद्र सरकार से अनुमति मिली हो या नहीं।
यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है, जब केंद्र सरकार पर आरोप है कि उसने महोत्सव में दिखाए जाने वाली एक दर्जन से अधिक फिल्मों को मंजूरी देने से इनकार कर दिया। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने फेसबुक पोस्ट में इसे “अस्वीकार्य” करार देते हुए कहा कि यह फैसला रचनात्मक स्वतंत्रता पर हमला है।
विजयन ने आरोप लगाया कि फिल्म महोत्सव में की जा रही सेंसरशिप, “संघ परिवार के शासन की तानाशाही प्रवृत्ति का प्रतिबिंब है, जो देश में विविध विचारों और रचनात्मक अभिव्यक्ति को दबाने का काम कर रही है।”उन्होंने कहा, “जागरूक केरल इस तरह की सेंसरशिप के आगे झुकेगा नहीं। जिन फिल्मों को दिखाने की अनुमति नहीं दी गई है, वे सभी महोत्सव में प्रदर्शित की जाएंगी।”
इससे पहले, केरल चलचित्र अकादमी के अध्यक्ष और ऑस्कर विजेता रेसुल पुकुट्टी ने भी कहा कि सभी चयनित फिल्मों को दिखाने का फैसला एक “अभूतपूर्व लेकिन जरूरी कदम” है। उन्होंने इसे संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा से जोड़ा।
एक वीडियो संदेश में पुकुट्टी ने कहा, “यह एक असाधारण स्थिति है और ऐसे समय में असाधारण फैसले लेने पड़ते हैं। महोत्सव के आयोजक और केरल सरकार होने के नाते हमारी जिम्मेदारी है कि हम कलाकारों और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करें।”
पुकुट्टी ने बताया कि आयोजकों को उस समय झटका लगा, जब कई फिल्मों को यह कहकर अनुमति नहीं दी गई कि उन्हें देर से मंजूरी के लिए भेजा गया। उन्होंने दावा किया कि फिल्मों को वही प्रक्रिया अपनाकर भेजा गया, जो पिछले वर्षों में अपनाई जाती रही है।
उन्होंने कहा कि इस बार केंद्र सरकार ने यह शर्त रखी कि सभी विदेशी फिल्मकार कॉन्फ्रेंस वीज़ा के जरिए ही आएं, न कि सामान्य वीज़ा पर। इस प्रक्रिया का सख्ती से पालन किया गया, इसके बावजूद कई फिल्मों को मंजूरी नहीं मिली।
पुकुट्टी के मुताबिक, बातचीत के बाद पहले 100 फिल्मों को, फिर एक और बैच को अनुमति दी गई, लेकिन महोत्सव शुरू होने तक 19 फिल्में अब भी विदेश मंत्रालय (MEA) की मंजूरी के इंतजार में थीं। उन्होंने सवाल उठाया कि सीमित और जानकार दर्शकों के लिए दिखाई जाने वाली फिल्मों को विदेश मंत्रालय के पास क्यों भेजा जा रहा है।
उन्होंने इसे और भी चौंकाने वाला बताया कि सर्गेई आइज़ेनस्टीन की 100 साल पुरानी क्लासिक फिल्म ‘बैटलशिप पोटेम्किन’—जो दुनिया भर के फिल्म स्कूलों में पढ़ाई जाती है—को भी अनुमति नहीं दी गई।
हालांकि बाद में चार फिल्मों—‘बीफ’, ‘ईगल्स ऑफ द रिपब्लिक’, ‘हार्ट ऑफ द वुल्फ’ और ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन गाज़ा’—को मंजूरी मिल गई, जबकि 15 फिल्में अब भी लंबित हैं।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने ‘बैटलशिप पोटेम्किन’ को अनुमति न दिए जाने को “हास्यास्पद” बताते हुए इसे “सिनेमाई अशिक्षा और नौकरशाही अति-सतर्कता” करार दिया। उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर और सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव से हस्तक्षेप की अपील की।
केरल के संस्कृति मंत्री साजी चेरियन ने भी केंद्र के फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि इससे राज्य की सिनेमा पर्यटन पहल और आईएफएफके के भविष्य पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
गौरतलब है कि 30वां अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव केरल (IFFK) 12 से 19 दिसंबर तक आयोजित किया जा रहा है, जिसमें देश-विदेश से हजारों फिल्म प्रेमी, छात्र, फिल्मकार और आलोचक हिस्सा लेते हैं।






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