नई दिल्ली
दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से वित्तपोषित संस्था में कार्यरत एक वरिष्ठ वैज्ञानिक की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कार्यालय परिसर में खराब वायु गुणवत्ता के चलते वर्क फ्रॉम होम (WFH) की अनुमति देने का अनुरोध किया था।
अदालत ने स्पष्ट कहा कि याचिकाकर्ता का यह तर्क कि वह चरणबद्ध प्रतिक्रिया कार्य योजना (GRAP) दिशानिर्देशों के आधार पर घर से काम करने के ‘हकदार’ हैं, “कानूनी रूप से गलत” है। अदालत के अनुसार, GRAP का उद्देश्य केंद्र सरकार को परिस्थितियों के अनुरूप कर्मचारियों को घर से काम की सुविधा देने का विवेकाधिकार प्रदान करना है—यह कोई अनिवार्य प्रावधान नहीं बनाता।
चिकित्सीय समस्याएँ, तो स्थानांतरण का विकल्प खुला
न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा बताई गई स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को देखते हुए कहा कि यदि उनकी चिकित्सा स्थिति वास्तव में इसका औचित्य प्रस्तुत करती है, तो वह दिल्ली से बाहर स्थानांतरण (ट्रांसफ़र) का अनुरोध अपने नियोक्ता से कर सकते हैं। न्यायालय ने यह भी कहा कि नियोक्ता को ऐसे किसी अनुरोध पर सकारात्मक दृष्टिकोण से विचार करना चाहिए।
न्यायमूर्ति सचिन दत्त ने 9 दिसंबर को पारित आदेश में टिप्पणी की,
"GRAP लागू करने का उद्देश्य किसी एक कर्मचारी को व्यक्तिगत कानूनी अधिकार देना नहीं है। यह संस्थानों, प्राधिकरणों और नागरिकों पर जिम्मेदारी डालता है कि वे प्रदूषण नियंत्रण उपायों का पालन करें और उनके प्रभावी क्रियान्वयन में सहयोग दें।"
वैज्ञानिक की याचिका — क्या था अनुरोध?
याचिकाकर्ता, सी-डॉट (C-DOT) में 'वैज्ञानिक–E' पद पर कार्यरत हैं और उन्होंने खतरनाक वायु गुणवत्ता तथा अपनी श्वसन समस्याओं का हवाला देते हुए WFH की अनुमति मांगी थी।
इसके साथ ही उन्होंने आग्रह किया था कि:
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) के GRAP आदेशों का कार्यालय में अनुपालन सुनिश्चित किया जाए,
कार्यालय परिसर का निरीक्षण कराया जाए,
और जब तक वायु गुणवत्ता "सुरक्षित सीमा" में प्रमाणित न हो जाए, तब तक उन्हें घर से काम करने की अनुमति दी जाए।
याचिकाकर्ता का दावा था कि डॉक्टर ने उन्हें “धूल और धुएं के संपर्क से बचने” की सलाह दी है।
अदालत ने कहा कि प्रस्तुत याचिका में कोई कानूनी आधार नहीं है, इसलिए इसे खारिज किया जाता है।