उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी है. संसद के मानसून सत्र की शुरुआत से पहले ही आई इस खबर ने न केवल सत्तापक्ष बल्कि विपक्ष को भी चौंका दिया.74 वर्षीय धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना त्यागपत्र सौंप दिया. अगस्त 2022 में पद संभालने वाले धनखड़ का कार्यकाल 2027 तक था, लेकिन उन्होंने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही पद छोड़कर इतिहास रच दिया. इससे पहले केवल वी.वी. गिरि और आर. वेंकटरमन ने ही उपराष्ट्रपति का पद बीच में छोड़ा था.
धनखड़ के इस्तीफे के बाद यह सवाल तेजी से उठने लगा है कि देश का अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा. राजनीतिक गलियारों में नामों की चर्चाएं तेज हैं, हालांकि अभी तक किसी का नाम तय नहीं है. इस बीच यह समझना भी जरूरी है कि उपराष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है और यदि उपराष्ट्रपति बीच में इस्तीफा दे दें तो संवैधानिक प्रक्रिया क्या होती है ?
भारत का उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है. इसका चुनाव संसद के दोनों सदनों—लोकसभा और राज्यसभा—के निर्वाचित और मनोनीत सदस्यों द्वारा किया जाता है. यह चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत एकल संक्रमणीय मत (सिंगल ट्रांसफरेबल वोट) प्रणाली से होता है और मतदान गुप्त रखा जाता है.
चुनाव आयोग ही उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव कराता है. यह प्रक्रिया राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952 के प्रावधानों के तहत संचालित होती है. चुनाव में उम्मीदवार बनने के लिए कम से कम 20 सांसदों का प्रस्तावक और 20 सांसदों का समर्थन आवश्यक है. मतदान और मतगणना पूरी होने के बाद परिणाम आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किए जाते हैं.
उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है, लेकिन यदि वे इस्तीफा दे दें, निधन हो जाए या उन्हें पद से हटाया जाए, तो यह पद खाली हो जाता है. ऐसे में राज्यसभा के उपसभापति अस्थायी रूप से उपराष्ट्रपति के कार्यभार को संभालते हैं.
वर्तमान में यह जिम्मेदारी हरिवंश नारायण सिंह निभाएंगे. संविधान में उपराष्ट्रपति का पद खाली होने पर नए चुनाव की कोई तय समयसीमा नहीं है. नए उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पदभार ग्रहण करने की तिथि से पूरे पांच वर्ष का होगा.
अब सवाल यह है कि धनखड़ के बाद यह पद किसे मिलेगा. बीजेपी और एनडीए को नए उपराष्ट्रपति का नाम तय करने के लिए कई राजनीतिक समीकरण साधने होंगे. खासतौर पर बिहार का समीकरण चर्चा में है क्योंकि राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
कुछ सहयोगी दलों के नेता चाहते हैं कि बिहार से किसी नेता को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाए. एनडीए के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि धनखड़ का इस्तीफा हुए अभी एक ही दिन हुआ है और इतनी जल्दी किसी नाम पर फैसला लेना संभव नहीं. जब चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी, तभी इस पर गंभीर चर्चा होगी..
फिर भी, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उम्मीदवार का चयन आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर किया जाएगा. बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, असम और तमिलनाडु जैसे राज्यों में होने वाले चुनावों को देखते हुए बीजेपी यह संदेश देना चाहेगी कि वह क्षेत्रीय और सामाजिक संतुलन बनाए रख रही है. दलित या ओबीसी समुदाय से किसी नाम पर विचार किए जाने की संभावना भी जताई जा रही है.
बीजेपी के अंदर कुछ नेता मानते हैं कि किसी केंद्रीय मंत्री को उम्मीदवार बनाना व्यावहारिक नहीं होगा क्योंकि इससे लोकसभा की सीट खाली हो सकती है. पार्टी सहयोगी दलों की इच्छाओं का भी ध्यान रखेगी. खासकर बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के सहयोगी दल चाहते हैं कि उनके क्षेत्र से किसी योग्य उम्मीदवार का चयन हो.
उपराष्ट्रपति का पद केवल संवैधानिक औपचारिकता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति संसद की कार्यवाही का संचालन करते हैं और ऊपरी सदन की गरिमा बनाए रखने की जिम्मेदारी संभालते हैं.
धनखड़ का इस्तीफा एक बार फिर इस पद की गंभीरता और संवैधानिक महत्व को चर्चा के केंद्र में ले आया है. अब चुनाव आयोग आने वाले हफ्तों में नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की तारीख की घोषणा कर सकता है. बीजेपी और एनडीए के साथ अन्य दल भी अपने-अपने उम्मीदवारों के नाम पर मंथन शुरू करेंगे.
इस बार उम्मीदवार का चयन केवल संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने के लिए नहीं होगा, बल्कि इसका चुनाव 2026 के लोकसभा चुनावों और आने वाले विधानसभा चुनावों की राजनीतिक रणनीति को भी प्रभावित करेगा.धनखड़ के इस्तीफे ने न केवल एक खाली पद छोड़ा है, बल्कि एक राजनीतिक जंग का आगाज भी कर दिया है.
अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि इस प्रतिष्ठित पद के लिए कौन-सा नाम उभरकर सामने आएगा और बीजेपी इस चुनाव से क्या राजनीतिक संदेश देना चाहेगी.