ब्रिटिश एफ-35 ने मॉरीशस में फंसे भारतीय वायुसेना के मिराज की यादें ताजा कीं

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 23-07-2025
British F-35 brings back memories of IAF Mirage stranded in Mauritius
British F-35 brings back memories of IAF Mirage stranded in Mauritius

 

नयी दिल्ली

तिरुवनंतपुरम में फंसे ब्रिटेन के ‘एफ-35बी’ लड़ाकू विमान की मरम्मत के बाद वापसी की घटना ने भारतीय वायुसेना के सामने दो दशक पहले आई एक ऐसी ही समस्या की यादें ताजा कर दीं। उसका एक मिराज-2000 लड़ाकू विमान बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था और 22 दिनों तक मॉरीशस में फंसा रहा था। हालांकि वायुसेना के एक जोखिम भरे और साहसिक अभियान के जरिए उस लड़ाकू विमान को भारत वापस लाया गया।

संयोग से वायुसेना का वह लड़ाकू विमान भी तिरुवनंतपुरम में ही उतरा था। विमान को वापस लाने का यह मिशन भारतीय विमानन इतिहास में भारतीय वायुसेना के इंजीनियरों के पायलटिंग कौशल, साहस और तकनीकी कुशलता के सबसे प्रशंसित प्रदर्शनों में से एक के रूप में दर्ज होगा।

भारतीय वायुसेना के इंजीनियरों ने मॉरीशस में ‘बेली लैंडिंग’ (विमान को बिना लैंडिंग गियर खोले या बिना पूरी तरह से खोले हुए जमीन पर उतारना) के कारण हुए व्यापक नुकसान के बाद भी विमान को कम समय में उड़ान भरने लायक बना दिया था।

इसने पायलट, स्क्वाड्रन लीडर जसप्रीत सिंह के साहस और योजना कौशल को भी उजागर किया, जिन्होंने खतरनाक मौसम का सामना करते हुए मरम्मत किए गए मिराज को वापस लाने के लिए हवा में तीन बार ईंधन भरा। उन्होंने 26 अक्टूबर, 2004 को हिंद महासागर के ऊपर पांच घंटे और 10 मिनट तक बिना रुके उड़ान भरी, जहां रास्ते में कोई भी खराबी लगभग निश्चित आपदा का कारण बन सकती थी।

भारतीय वायुसेना से 2018 में सेवानिवृत्त हुए जसप्रीत ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘मुझे वह दिन इतनी अच्छी तरह याद है जैसे कल की ही बात हो।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे महासागर के पार इस जोखिम भरी उड़ान को लेकर पूरा विश्वास था क्योंकि मुझे असाधारण तकनीकी कर्मियों की टीम पर पूरा भरोसा था जिन्होंने विमान की मरम्मत के लिए दो हफ्तों से ज्यादा समय तक बिना रुके काम किया था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘सैन्य विमानन का मतलब है मिशन की मांग के अनुसार सोच-समझकर जोखिम उठाना, सभी संभावित आकस्मिक स्थितियों के लिए तैयार रहना और अपनी वैकल्पिक योजनाएं तैयार रखना।’’

फ्रांस निर्मित ‘मिराज-2000‘ चार अक्टूबर को एक ‘एयर शो’ में भाग लेने के बाद पोर्ट लुई के सर शिवसागर-रामगुलाम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस लैंडिंग से विमान को खासकर उसके ‘अंडरबेली सहायक ईंधन टैंक’, ‘एयरफ्रेम’, ‘एवियोनिक्स’ और ‘कॉकपिट इंस्ट्रूमेंटेशन’ को काफी नुकसान पहुंचा था।

दूसरी ओर, 11 करोड़ अमेरिकी डॉलर के एफ-35बी लड़ाकू विमान को हिंद महासागर में एक समुद्री अभ्यास के दौरान तकनीकी खराबी का सामना करना पड़ा और 14 जून को तिरुवनंतपुरम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी।

यह लड़ाकू विमान ब्रिटेन के ‘रॉयल नेवी’ के एचएमएस प्रिंस ऑफ वेल्स कैरियर स्ट्राइक ग्रुप का हिस्सा था।

ब्रिटिश इंजीनियरों की एक टीम को इस लड़ाकू विमान को ठीक करने के लिए भेजा गया और अंततः लगभग 37 दिनों के बाद मंगलवार की सुबह यह विमान डार्विन, ऑस्ट्रेलिया के लिए उड़ान भर सका।

इसी प्रकार, इंजीनियरों और पायलटों के एक समूह, एक आईएल-76 परिवहन विमान, जिसमें पुर्जे थे, तथा एक आईएल-78 ईंधन भरने वाले टैंकर विमान ने मिराज को ठीक करने तथा उसे वापस लाने में मदद करने के लिए भारत से मॉरीशस के पोर्ट लुईस के लिए उड़ान भरी थी।

सुधार दल ने 13 अक्टूबर तक विमान को ज़मीन पर दौड़ने के लिए तैयार कर दिया और मिराज ने लैंडिंग दुर्घटना के ठीक 10 दिन बाद, 14 अक्टूबर को अपनी पहली परीक्षण उड़ान भरी। टीम के सामने एक ऐसा काम था जो पहले कभी नहीं हुआ था, क्योंकि मिराज-2000 को निर्माता कंपनी डसॉल्ट आपात स्थिति में भी बिना पहियों के लैंडिंग की अनुमति नहीं देती है।

इस मिशन को याद करते हुए, एक भारतीय वायुसेना अधिकारी ने बताया कि उस समय मध्य क्षेत्र में एक लड़ाकू स्क्वाड्रन में तैनात जसप्रीत को विमान को भारत वापस लाने के लिए विशेष रूप से पायलट के रूप में चुना गया था। अधिकारी ने बताया कि इसके लिए जो हवाई मार्ग था वह हिंद महासागर के सबसे निर्जन क्षेत्रों में से एक है और पूरी तरह से सेवा योग्य एकल इंजन वाले लड़ाकू विमान के लिए भी यह एक बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य माना जाता है। उन्होंने बताया कि इस मार्ग में कई बार हवा से हवा में ईंधन भरना भी शामिल था, जिससे कुल मिलाकर कठिनाई और बढ़ गई।

वायु सेना मुख्यालय ने 26 अक्टूबर 2004 को उड़ान के लिए मंजूरी दे दी।

जसप्रीत और लड़ाकू विमान ने सुबह 7.55 बजे गीले रनवे से बहुत कम ईंधन के साथ उड़ान भरी ताकि एयरफ्रेम पर ज़्यादा दबाव न पड़े। वह लगभग तुरंत ही बादलों में पहुँच गए। लेकिन उन्हें उड़ान भरने के 11 मिनट बाद पहली बार ईंधन भरना सुनिश्चित करना था। गलती की कोई गुंजाइश नहीं थी। मिराज ने समय पर ईंधन भरा और सुरक्षित रूप से 25,000 फुट की ऊँचाई तक पहुँच गया। दूसरी बार भी ईंधन भरने का काम सफलतापूर्वक किया गया।

चूँकि खराब मौसम के कारण अंतिम चरण में ईंधन भरना संभव नहीं था, इसलिए टीम ने एक योजना बनाई: जसप्रीत तिरुवनंतपुरम से 1100 नॉटिकल मील दूर रहते हुए आईएल-78 से ईंधन भरेंगे और 40,000 फुट से ऊपर की ऊँचाई पर चढ़ेंगे ताकि बाकी रास्ता बिना किसी सहायता के उड़ सकें। ज़्यादा ऊँचाई और इष्टतम गति से उड़ान भरने से मिराज कम ईंधन की खपत करेगा।

लेकिन इसका मतलब यह भी था कि आखिरी दो घंटे 43,000 फुट की ऊँचाई पर 0.92 मैक गति (या ध्वनि की गति का 0.92 प्रतिशत) पर उड़ान भरनी पड़ी। यह उस क्षमता से कहीं ज़्यादा था जिसके लिए विमान का उड़ान परीक्षण किया गया था। अगर गणनाएँ गलत होतीं या किसी खराबी के कारण ईंधन की खपत ज़्यादा होती, तो मिराज मुश्किल में पड़ जाता।

इस उपलब्धि के बारे में बताते हुए एक विशेषज्ञ ने कहा कि एकल इंजन, एकल पायलट वाले मिराज जेट ने बिना किसी वैकल्पिक लैंडिंग क्षेत्र (आपात स्थिति में) के, बिना रडार वाले हवाई क्षेत्र में अकेले उड़ान भरी। इस बीच ज़मीनी नियंत्रण से सीधे कोई रेडियो संपर्क नहीं था और मौसम भी खराब था।

रास्ते में जसप्रीत के लिए सब कुछ ठीक नहीं था। उनका एक रेडियो सेट खराब हो गया, ईंधन गेज गलत संकेत दे रहा था और कॉकपिट में ऑक्सीजन लगभग खत्म हो गई थी। फिर भी, मिराज दोपहर 2.50 बजे तिरुवनंतपुरम में सुरक्षित रूप से उतर गया।

अगले दिन, जसप्रीत मिराज को बेंगलुरु स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के हवाई अड्डे पर ले गए, जहाँ इसकी पूरी तरह से मरम्मत की गई और लगभग चार महीने बाद यह फिर से परिचालन में आ गया।

जसप्रीत को उनकी ईमानदारी, असाधारण साहस और कर्तव्य से परे पेशेवर रवैये के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा 'वायु सेना' (वीरता) पदक से सम्मानित किया गया।

सिंह के प्रशस्ति पत्र में लिखा है, "2126 समुद्री मील की दूरी तय करके मिराज-2000 को उड़ाना, भारतीय वायुसेना के इतिहास में किसी लड़ाकू विमान द्वारा किए गए अब तक के सबसे चुनौतीपूर्ण, साहसिक और जोखिम भरे शांतिकालीन अभियानों में से एक था।"

इस मिशन का दस्तावेजीकरण करते हुए, भारतीय वायुसेना के एक आंतरिक नोट में कहा गया है: "इस स्थिति को देखते हुए, दुनिया की बहुत कम वायुसेनाएँ इस उड़ान को अंजाम देने का साहस कर पातीं। भारतीय वायुसेना को इस मिशन और अपने कर्मियों द्वारा दिखाए गए पेशेवरपन और साहस पर गर्व होना चाहिए।"