Sheikh Hasina sentenced to death after court found her guilty of crimes against humanity
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
बांग्लादेश की राजनीति में भूचाल ला देने वाले ऐतिहासिक फैसले में देश की एक विशेष अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के विरुद्ध अपराधों का दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई है। यह फैसला केवल राजनीतिक घटनाक्रम नहीं, बल्कि आधुनिक बांग्लादेश के इतिहास में एक ऐसा मोड़ माना जा रहा है, जिसने सत्ता, कानून और मानवाधिकारों के संबंधों को नए सिरे से परिभाषित किया है।
फैसले में अदालत ने माना कि 5 अगस्त को ढाका के चंखरपुल क्षेत्र में छात्र-नेतृत्व वाले आंदोलन के दौरान 6 प्रदर्शनकारियों को घातक हथियारों से मार दिया गया था। अदालत के अनुसार, ये हत्याएं किसी आकस्मिक हिंसा का परिणाम नहीं थीं, बल्कि व्यवस्थित और योजनाबद्ध दमन का हिस्सा थीं। न्यायाधीश ने अपने निर्णय में कहा कि तत्कालीन गृह मंत्रालय और पुलिस अधिकारियों ने न केवल यह हिंसा रोकने में विफलता दिखाई, बल्कि उनके आदेशों से ही छात्रों पर हमला किया गया। अदालत ने स्पष्ट उल्लेख किया कि यह सब प्रधानमंत्री शेख हसीना के सीधे निर्देशों और उनकी पूरी जानकारी में हुआ।
अदालत ने कहा, “प्रदर्शन में शामिल नागरिकों और छात्रों की हत्या एक सोची-समझी कार्रवाई थी, जिसका उद्देश्य आवाज उठाने वालों को कुचलना था। इस कार्रवाई से स्पष्ट होता है कि तत्कालीन सरकार ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए मानवता के विरुद्ध अपराध किया।” फैसले में हसीना की भूमिका को “प्रमुख षड्यंत्रकारी” बताया गया है।
विपक्ष ने फैसले का स्वागत किया, अवामी लीग ने कहा—‘राजनीतिक प्रतिशोध’
इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद बांग्लादेश की राजनीति में प्रतिक्रियाओं का सैलाब आ गया। विपक्षी दलों तथा छात्र संगठनों ने अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए इसे “न्याय की जीत” बताया। उनका कहना है कि आंदोलन के दौरान शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाया गया था और कई युवाओं की जान गई थी, जिसके लिए जिम्मेदार लोगों को सजा मिलनी ही चाहिए थी।
Bangladesh's special tribunal sentences deposed prime minister Sheikh Hasina to death for crimes against humanity.
दूसरी ओर हसीना की पार्टी अवामी लीग ने इस फैसले को सख्त शब्दों में खारिज करते हुए कहा कि यह “राजनीतिक बदले की कार्रवाई” है। पार्टी नेताओं का कहना है कि हसीना के खिलाफ मुकदमा राजनीतिक विरोधियों द्वारा गढ़ा गया है और सत्ता परिवर्तन के बाद न्यायपालिका को प्रभावित करके इस तरह का फैसला दिलवाया गया है। उन्होंने इस मामले को उच्च अदालत में चुनौती देने की घोषणा की है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और मानवाधिकार संगठनों की चिंता
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह फैसला बड़े ध्यान का केंद्र बना है। कई मानवाधिकार संगठनों ने इस घटना से जुड़े तथ्यों पर चिंता जताई है और कहा है कि मामले की जांच पारदर्शी होनी चाहिए। कुछ देशों ने बांग्लादेश से आग्रह किया है कि वह इस फैसले की न्यायिक समीक्षा सुनिश्चित करे और दोष सिद्धि के सभी पहलुओं की दोबारा जांच कराए।
विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला बांग्लादेश के राजनीतिक भविष्य पर गहरा असर डाल सकता है। देश में पहले से ही ध्रुवीकरण गहराया हुआ है, और ऐसे में इस तरह के निर्णय से राजनीतिक हिंसा और तनाव बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
ढाका में सुरक्षा कड़ी, संवेदनशील इलाके सील
फैसले के बाद ढाका सहित देश के कई इलाकों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। चंखरपुल, शाहबाग, गाजीपुर और विश्वविद्यालय परिसरों में पुलिस और रैपिड एक्शन बटालियन की भारी तैनाती की गई है। प्रशासन को आशंका है कि फैसले के विरोध में कहीं हिंसा भड़क सकती है या समर्थकों और विरोधियों के बीच टकराव हो सकता है।
अदालत द्वारा फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद अब अगला चरण उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में अपील का होगा। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अंतिम निर्णय आने में समय लग सकता है, लेकिन वर्तमान फैसला बांग्लादेश के संवैधानिक इतिहास में एक मील का पत्थर के रूप में दर्ज हो चुका है।
देश की राजनीति में नया अध्याय
शेख हसीना, जो कई वर्षों तक बांग्लादेश की सबसे प्रभावशाली नेता रहीं, अब मानवता-विरोधी अपराधों में दोषी करार दी गई हैं। यह फैसला न केवल उनकी राजनीतिक विरासत पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि बांग्लादेश की शासन व्यवस्था, अधिकारों और लोकतंत्र की दिशा को भी गहरे स्तर पर प्रभावित करता है।
Bangladesh's special tribunal sentences deposed prime minister Sheikh Hasina to death for crimes against humanity
देश की जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब आगे की कानूनी प्रक्रिया पर नज़र रखे हुए है, जबकि बांग्लादेश एक बार फिर अपने इतिहास के सबसे संवेदनशील मोड़ों में से एक पर खड़ा है।