सूफीवाद और प्रेम का संगम: ‘पद्मावत’ में छुपा आध्यात्मिक संदेश

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 14-11-2025
'Padmavat' is not just a romance, it is a 16th century Sufi philosophy of love: Prof. Agarwal
'Padmavat' is not just a romance, it is a 16th century Sufi philosophy of love: Prof. Agarwal

 

आवाज द वाॅयस/ हैदराबाद

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने हाल ही में हैदराबाद स्थित मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (MANUU) में आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक सम्मेलन में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा 1540 में अवधी में लिखा गया महाकाव्य 'पद्मावत' केवल एक ऐतिहासिक प्रेम कहानी या रोमांस नहीं है, बल्कि यह 16वीं सदी का गहरा सूफी और आध्यात्मिक प्रेम दर्शन है।

प्रो. अग्रवाल ने अपने मुख्य भाषण को "पद्मावत: प्रारंभिक आधुनिक भारत के अस्तित्वगत ब्रह्मांड की एक झलक" शीर्षक दिया। उन्होंने सम्मेलन में जोर देकर कहा कि आज के दौर में युवा पीढ़ी के लिए धार्मिक प्रतीक और नाम—राम और अल्लाह—अक्सर संघर्ष और वैमनस्य के प्रतीक बन गए हैं, जबकि 'पद्मावत' जैसे ग्रंथ हिंदू और इस्लामी रहस्यवाद को मिलाकर प्रेम और आध्यात्मिक एकता का संदेश देते हैं।

प्रो. अग्रवाल के अनुसार, 'पद्मावत' में प्रस्तुत प्रेम केवल काल्पनिक नहीं है; यह वास्तविक, ईश्वरीय प्रेम की ओर आत्मा की यात्रा का प्रतीकात्मक चित्रण है। यह महाकाव्य वहदत-उल-वजूद, अर्थात् अस्तित्व की एकता के सिद्धांत पर आधारित है, और मानता है कि ईश्वर की उपस्थिति प्रत्येक चीज़ में व्याप्त है। उनके अनुसार, प्रेम ही मानव आत्मा के लिए मोक्ष प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग है।

प्रो. अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि 'पद्मावत' में सूफी दर्शन और धार्मिक सहिष्णुता का अद्वितीय मिश्रण है। उन्होंने कहा कि यह ग्रंथ हमें यह समझने की प्रेरणा देता है कि धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेदों के बावजूद प्रेम और आत्मिक एकता संभव है। उन्होंने इस महाकाव्य को उस समय के प्रारंभिक आधुनिक भारत की सांस्कृतिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक व्यापकता का दर्पण बताया। प्रो. अग्रवाल ने सम्मेलन में उपस्थित विद्वानों और शोधार्थियों से आग्रह किया कि वे ऐसे ग्रंथों का अध्ययन करें, जो धार्मिक और सांस्कृतिक सह-अस्तित्व की प्रेरणा देते हैं।

सम्मेलन का आयोजन "उर्दू, हिंदी, अरबी और फारसी – भाषाई, साहित्यिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक आदान-प्रदान से सभ्यतागत सामंजस्य" विषय पर किया गया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता MANUU के कुलपति प्रो. सैयद ऐनुल हसन ने की, जबकि प्रो. नाइल ग्रीन (UCLA, USA) ने भी ऑनलाइन माध्यम से मुख्य भाषण प्रस्तुत किया। प्रो. ग्रीन ने इस्लामी विश्वास और संस्कृति के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए सूफी मठों की ऐतिहासिक भूमिका और उनके सामाजिक-आर्थिक योगदान पर प्रकाश डाला।

प्रो. अग्रवाल के भाषण को मंच पर अन्य विद्वानों ने भी सराहा। कुलपति प्रो. सैयद ऐनुल हसन ने कहा कि सूफीवाद भारतीय गंगा-जमुनी सभ्यता का प्रमुख वाहक रहा है, और इसकी शिक्षाएँ आज भी हमें मानवता, सहिष्णुता और प्रेम की दिशा दिखाती हैं। प्रो. अग्रवाल ने विशेष रूप से यह रेखांकित किया कि 'पद्मावत' जैसे ग्रंथ केवल साहित्यिक रचना नहीं हैं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मार्गदर्शन का एक मूल स्रोत हैं।

सम्मेलन का समापन 14 नवंबर को जौनकोपिंग यूनिवर्सिटी, स्वीडन की प्रो. संगीता बग्गा-गुप्ता के भाषण के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने भाषा विज्ञान में मानवतावाद को पुनर्स्थापित करने और सभ्यतागत सामंजस्य पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

प्रो. अग्रवाल की प्रस्तुति ने सम्मेलन को एक विशेष दिशा दी, क्योंकि उनके विचारों ने स्पष्ट किया कि मध्यकालीन महाकाव्य केवल इतिहास या रोमांस नहीं हैं, बल्कि वे धर्म और प्रेम के माध्यम से सामाजिक और आध्यात्मिक एकता का संदेश देते हैं। उनके अनुसार, 'पद्मावत' आज भी समाज को यह सिखाने में सक्षम है कि प्रेम, सहिष्णुता और आत्मा की उच्च यात्रा किसी भी धार्मिक या सांस्कृतिक भेदभाव से परे है।