आरएसएस नेता होसबाले बोले—बाज़ार आधारित जीवनशैली ने रिश्तों को बना दिया है 'लेन-देन'

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 25-06-2025
RSS leader Hosabale said- Market based lifestyle has made relationships 'transactional'
RSS leader Hosabale said- Market based lifestyle has made relationships 'transactional'

 

मुंबई

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा है कि ई-कॉमर्स और बाजार-केन्द्रित जीवनशैली ने समाजिक संबंधों की बुनियाद को कमजोर कर दिया है और मानवीय रिश्तों को सिर्फ लेन-देन का माध्यम बना दिया है।

मुंबई में ‘इंटीग्रल ह्यूमनिज़्म: ए डिस्टिंक्ट पैराडाइम ऑफ डेवलपमेंट’ नामक पुस्तक पर चर्चा करते हुए होसबाले ने यह बात कही। यह पुस्तक डॉ. अशोक मोडक द्वारा लिखी गई है और इसका प्रकाशन भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) ने किया है।

होसबाले ने कहा,“बाजार आधारित और सरकार-निर्भर जीवन समाज के लिए घातक है। ई-कॉमर्स इसका एक बड़ा उदाहरण है, जिसने मानवीय संबंधों को सिर्फ आर्थिक लेन-देन तक सीमित कर दिया है।”

रिश्तों में अब नहीं रही वह आत्मीयता

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा,“अगर मुझे तमिलनाडु के किसी गांव में मोडक जी की किताब चाहिए, तो मैं ऑनलाइन ऑर्डर कर देता हूं और वह मुझे मिल जाती है। यह सुविधा जरूर है, लेकिन क्या यह रिश्ता है? पहले जब कोई किसान किसी दुकानदार से उधार लेता था, तो वह दुकानदार वर्षों से उसके परिवार को जानता था। क्या अमेज़न उस भरोसे को समझ सकता है? यह सब अब ‘फेसलेस’ हो गया है।”

होसबाले ने यह भी कहा कि अमेरिका जैसे देशों में ‘समाज’ लगभग समाप्त हो चुका है, अब केवल व्यक्ति और राज्य रह गए हैं।

“वेलफेयर स्टेट और बाजार-केंद्रित जीवनशैली का मॉडल एक स्वस्थ समाज के लिए टिकाऊ नहीं है।”

प्राकृतिक संसाधनों और जीवनशैली को लेकर भी चिंता

आरएसएस नेता ने आधुनिक जीवनशैली और प्रकृति के प्रति दृष्टिकोण पर भी चिंता जताई।

“बिजली के बिना हम नहीं रह सकते, लेकिन हमें यह भी सोचना होगा कि इसे किस तरह से पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए उत्पन्न किया जाए।”

उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल सूचना देना नहीं, बल्कि मूल्य आधारित जीवन निर्माण होना चाहिए।

‘करुणा और समरसता’ पर आधारित है भारतीय दृष्टिकोण

होसबाले ने कहा कि पश्चिमी दृष्टिकोण व्यक्तिगत अधिकार, शक्तिशाली की जीत और प्रकृति के शोषण पर आधारित है, जबकि भारत की विचारधारा करुणा, समरसता और अनुकूलता को प्राथमिकता देती है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि मनुष्य समाज का हिस्सा है, और समाज प्रकृति से अलग नहीं रह सकता।

भूटान का ‘हैप्पीनेस मॉडल’ सराहनीय

होसबाले ने भूटान के ‘ग्रोस नेशनल हैप्पीनेस मॉडल’ की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह आर्थिक विकास के संख्यात्मक मॉडल से बेहतर विकल्प है।

“व्यक्ति और समाज की भलाई एक-दूसरे की पूरक हैं, और दोनों प्रकृति के बिना अधूरी हैं।”

भारत विचारधारा नहीं, दर्शन की भूमि है

कुछ लोगों द्वारा भारत को हाल के वर्षों में “आइडियोलॉजिकल वैक्युम” कहे जाने पर उन्होंने असहमति जताते हुए कहा,

“पश्चिमी दुनिया—विशेषकर यूरोप—ने साम्यवाद, पूंजीवाद और नारीवाद जैसी विचारधाराएं दीं। लेकिन भारत ने दर्शन दिया है।”

उन्होंने कहा कि विचारधाराएं बंद ढांचे होती हैं जो स्वतंत्र चिंतन में बाधा डालती हैं, जबकि दर्शन मार्गदर्शन करता है और हर व्यक्ति को अपना रास्ता खोजने की प्रेरणा देता है।

“बुद्ध, महावीर और स्वामी विवेकानंद विचारक थे, विचारधारावादी नहीं। भारत कभी भी जड़ विचारधाराओं की भूमि नहीं रहा है।”

अंत में उन्होंने कहा कि

“भारत ने कभी सिर्फ अपने लिए नहीं जिया, वह हमेशा दुनिया के कल्याण के लिए जिया है। अतीत से सीख लेकर वर्तमान में जीते हुए भविष्य की दिशा में बढ़ना ही भारतीय दृष्टिकोण है।”