महाबोधि मंदिर का प्रबंधन बौद्धों को सौंपे जाने की मांग

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 06-10-2025
RPI factions seek permission for Mumbai rally – demand that the management of the Mahabodhi Temple be handed over to Buddhists
RPI factions seek permission for Mumbai rally – demand that the management of the Mahabodhi Temple be handed over to Buddhists

 

मुंबई

भारतीय राजनीतिक एवं सामाजिक परिदृश्य में एक ऐतिहासित प्रयास के तौर पर, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) की विभिन्‍न गुटों के नेता आज मुंबई पुलिस आयुक्त देवेन् भारती से मिले और शहर में एक विशाल रैली की अनुमति देने की मांग पेश की। इस रैली का उद्देश्य है — बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर (Mahabodhi Temple) के प्रबंधन को पूर्णतः बौद्ध समुदाय को सौंपे जाने की मांग को जोर देना।

रैली 14 अक्टूबर को आयोजित करने की योजना है। यह रैली वीर जीजामाता उद्यान (Byculla Zoo) से शुरू होगी और दक्षिण मुंबई के आज़ाद मैदान (Azad Maidan) तक जाएगी। इस रैली का नाम है “महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन”, और यह आयोजन बोधगया महाबोधि महाविहार कार्रवाई समिति द्वारा किया जा रहा है। सभी RPI गुट, बौद्ध नेता, बौद्ध संस्थाएँ एवं भिक्षु संघ इसमें हिस्सा लेंगे – यह आयोजनकर्ता की ओर से कहा गया।

मौके पर एक वक्तव्य में आयोजकों ने बताया कि 14 अक्टूबर की तिथि इसीलिए चुनी गई है क्योंकि इसी दिन डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया था। इस तरह, वह दिन बौद्धों के लिए एक प्रतीकात्मक महत्व भी रखता है।

“हमने सहमति से तय किया है कि इस दिन रैली होनी चाहिए,” उनके बयानों में आया।

महाबोधि मंदिर का महत्व

बोधगया (बिहार) में स्थित महाबोधि मंदिर वह स्थल माना जाता है जहाँ सिद्धार्थ गौतम ने सूतम् बोधि (प्रबोध) प्राप्त किया। यह बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल है। मंदिर और परिसर को एक विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) के रूप में भी स्वीकृति प्राप्त है।

लेकिन लंबे समय से इस मंदिर के प्रबंधन को लेकर विवाद बना हुआ है। विवाद इस बात पर केंद्रित है कि वर्तमान में प्रबंधन समिति (BTMC – Bodhgaya Temple Management Committee) में बौद्ध और हिंदू दोनों समुदायों के प्रतिनिधि हैं, और यह संरचना बौद्ध पक्ष द्वारा असंतोष का विषय रही है।

Bodh Gaya Temple Act, 1949

इस विवाद का कानूनी आधार है बोधगया मंदिर प्रबंधन अधिनियम, 1949 (Bodh Gaya Temple Act, 1949)। इस अधिनियम के तहत, महाबोधि मंदिर की देखभाल एवं प्रबंधन के लिए एक नौ सदस्यीय समिति गठित की गई है। इस समिति में शामिल सदस्य इस प्रकार हैं:

  • चार (4) बौद्ध प्रतिनिधि

  • चार (4) हिंदू प्रतिनिधि

  • जिला मजिस्ट्रेट, गय़ा (District Magistrate, Gaya) को स्वचालित अध्यक्ष (ex-officio chairman) बनाया गया

इस प्रकार, अधिकतम प्रभाव हिंदू एवं जिला प्रशासन के पक्ष में माना जाता है। कई बौद्ध संगठनों का तर्क है कि इस प्रबंधन व्यवस्था में बौद्ध समुदाय को पर्याप्त अधिकार नहीं दिए गए हैं।

2013 में इस अधिनियम में एक संशोधन हुआ, जिसके तहत यह तय किया गया कि जिला मजिस्ट्रेट किसी भी धर्म का हो सकता है — पहले यह आवश्यक था कि वे हिंदू हों। 

लंबित मांगें, प्रदर्शनों की श्रृंखला

पिछले कुछ वर्षों से, बौद्ध धर्म समुदाय, भिक्षु संघ और समर्थक संगठनों ने समय-समय पर आंदोलन किए हैं। इनमें मुख्य मांग रही है:

  1. Bodh Gaya Temple Act, 1949 का निरसन ( repeal )

  2. महाबोधि मंदिर के प्रबंधन को पूर्णतः बौद्ध समुदाय को सौंपना

  3. राज्य और केंद्र सरकारों से कानूनी, प्रशासनिक एवं संवैधानिक सुधार की मांग

इस तरह की मांगें न केवल बिहार में, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी उठी हैं — जैसे महाराष्ट्र, सिक्किम आदि। सिक्किम के जनजातीय नेताओं ने भी इस रैली का समर्थन किया है।मार्च 2025 में महाराष्ट्र के ठाणे में भी बौद्ध भिक्षुओं ने रैली निकाली, जिसमें उन्होंने महाबोधि मंदिर के प्रबंधन हस्तांतरण की मांग की और नोटिस सौंपा। 

फरवरी 2025 में, बोधगया में कई भिक्षु और समर्थक अनिश्चितकालीन उपवास आंदोलन (indefinite hunger strike) पर बैठ गए और इस मांग को बल दिया।सरकार प्रायः इन प्रदर्शनों के चलते प्रस्तावों, बैठकों और वार्ताओं की बात करती रही है। लेकिन अभी तक कोई निर्णायक विधायी परिवर्तन नहीं हुआ है। 

राजनीति और सार्वजनिक प्रतिबद्धता

इस रैली में RPI की सभी गुटों, बौद्ध संगठनों और भिक्षु संघ का शामिल होना इसे एक व्यापक जन आंदोलन के रूप में प्रस्तुत करता है। इससे यह संकेत मिलता है कि शैक्षिक और धार्मिक मांगें अब राजनीतिक सत्ता के केंद्र में आ रही हैं।

विशेष रूप से, केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने पहले ही इस मुद्दे को राष्ट्रीय मंच पर उठाया है और इस रैली का नेतृत्व करने की बात कही थी। उन्होंने कहा कि महाबोधि मंदिर प्रबंधन अधिनियम को संशोधित कर बौद्ध प्रतिनिधियों को पूर्ण अधिकार मिलने चाहिए। 

इसके अलावा, अठावले ने बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार से इस अधिनियम को निरस्त करने की मांग की थी। उन्होंने यह आश्वासन लिया कि कुमार ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।

संवेदनशीलता एवं कानून का प्रस्तावित असर

महाबोधि मंदिर विवाद धार्मिक-आस्था, सांस्कृतिक पहचान, राजनीतिक सत्ता और संवैधानिक अधिकारों के बीच एक जटिल जाल है। इस रैली को मंज़ूरी मिलने पर कुछ संवेदनशील मुद्दे सामने आ सकते हैं:

  • धार्मिक तनाव: हिंदू–बौद्ध दृष्टिकोणों का टकराव गहरा धार्मिक विवाद बन सकता है।

  • कानूनी बाधाएँ: 1947 के बाद धार्मिक स्थानों का स्वाभाविक परिवर्तन करने वाले कानून (Places of Worship Act, 1991) जैसे प्रावधान बाधा बन सकते हैं।

  • राजनीतिक प्रतिबद्धता: सरकार को निर्णय लेने में जाति, धर्म, राजनीति और संवैधानिक सीमाएँ ध्यान में रखनी होंगी।

  • राज्य का संतुलन: बिहार सरकार और केंद्र को संतुलन बनाना पड़ेगा – धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए प्रबंधन सुधार करना जाएंगे।

कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह आंदोलन केवल बौद्ध समुदाय के धार्मिक अधिकारों तक सीमित नहीं रहेगा — यह दलित, ओबीसी और संप्रदाय आधारित सामाजिक न्याय की राजनीति से जुड़ सकता है। 


रैली मार्ग और आयोजन

  • प्रारंभ: वीर जीजामाता उद्यान (Byculla Zoo), मुंबई

  • समाप्ति: आज़ाद मैदान (Azad Maidan), दक्षिण मुंबई

  • तारीख: 14 अक्टूबर 2025

  • उद्देश्य: महाबोधि मंदिर के प्रबंधन को पुनर्स्थापित करने की मांग को सार्वजनिक और राजनीतिक दबाव देना

इस रैली में जुड़ने वाली संस्थाएँ और समूह:

  • सभी RPI गुट

  • बौद्ध नेता एवं संस्थाएँ

  • भिक्षु संघ

  • बौद्ध आंदोलन द्वारा गठित कार्रवाई समिति

सामाजिक और राजनीतिक दबाव

इस तरह की बड़ी रैली सामाजिक और राजनीतिक दबाव उत्पन्न कर सकती है:

  • सार्वजनिक और मीडिया जागरूकता बढ़ेगी

  • सरकारों को इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए मजबूर किया जाएगा

  • अन्य राज्यों में बौद्ध समुदाय और उसके समर्थक आंदोलनों का उत्थान

  • राजनीतिक दलों को अपनी पॉलिसियों पर पुनर्विचार करना पड़ेगा

चुनौतियाँ और जोखिम

  • अनुमति और सुरक्षा: पुलिस और प्रशासन को रैली की अनुमति और सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी

  • विरोध और प्रतिरोध: अन्य सांप्रदायिक समूह या विरोधी राजनीतिक दल इस पर हमला कर सकते हैं

  • विपरीत प्रतिक्रिया: विवादों, कानून-व्यवस्था की समस्या या तनाव फैलने की आशंका

  • कानूनी जटिलताएँ: विधायी संशोधन के लिए प्रस्ताव, संसद या राज्य विधानमंडल में लंबी प्रक्रिया

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